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इस बीमारी का कोई हेल्थ बीमा नहीं

मेरे एक मित्र ने मुझे एक ईमेल फॉरवर्ड किया, जो उसे इस महीने की पहली तारीख को एक ई-कॉमर्स वेबसाइट पेपरफ्राइ ने भेजा था। ईमेल के विषय में लिखा था- ‘सैलरी क्रेडिटेड? पेपरफ्राइ पर खर्च कीजिए’ वास्तव में लोगों को खर्च के लिए प्रेरित करने में पेपरफ्राइ छोटी कंपनी है।

By Edited By: Published: Mon, 19 Oct 2015 08:35 AM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2015 10:00 AM (IST)
इस बीमारी का कोई हेल्थ बीमा नहीं

मेरे एक मित्र ने मुझे एक ईमेल फॉरवर्ड किया, जो उसे इस महीने की पहली तारीख को एक ई-कॉमर्स वेबसाइट पेपरफ्राइ ने भेजा था। ईमेल के विषय में लिखा था- ‘सैलरी क्रेडिटेड? पेपरफ्राइ पर खर्च कीजिए’ वास्तव में लोगों को खर्च के लिए प्रेरित करने में पेपरफ्राइ छोटी कंपनी है। इस खेल के बड़े खिलाड़ी अमेजन, फ्लिपकार्ट और स्नैपडील है। इस तरह के संदेश विज्ञापन और संचार के प्रत्येक माध्यम से प्रसारित किए जा रहे हैं।

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दरअसल, मूल संदेश यह है कि आप आगामी महीनों में आने वाले धार्मिक व सांस्कृतिक त्योहारों पर बड़ी धनराशि खर्च करें। बस आप पैसा खर्च कीजिए भले ही आपके पास हो या नहीं। ऐसे अधिकांश मामलों में कंपनियां क्रेडिट काड्र्स के साथ करार करके रखती हैं, जिससे कि आप मासिक किस्त पर भी सामान खरीद सकते हैं।

इस प्रवृति को वास्तविकता की कसौटी पर रखकर देखिए। हमारे समाज में लगातार ऐसे युवाओं की आबादी बढ़ रही है, जो कर्ज ले रहे हैं और वे बचत के बारे में तथा खर्च के बारे में अधिक सोचते हैं। इस संबंध में कोई आंकड़े नहीं हैं कि युवाओं के बचत व्यवहार में किस तरह बदलाव आ रहा है, लेकिन अगर इस आयु वर्ग के लोग आपके आसपास हैं तो आप खुद ही इसका अंदाजा लगा सकते हैं। वास्तव में, ई-कॉमर्स कंपनियां तुरंत ही कहेंगी कि वे किसी भी व्यक्ति को खर्च करने के लिए मजबूर नहीं कर रही हैं। लोगों के पास बचत करने या खर्च करने का विकल्प है।

लेकिन हकीकत यह है कि ये कंपनियां जितनी धनराशि विज्ञापन और प्रचार पर खर्च कर रही हैं, उससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बहुत से लोग बचत के बजाय खर्च के बारे में सोच सकते हैं।
वास्तव में यह मूल समस्या ई-कॉमर्स कंपनियों से भी आगे है। एक समाज के तौर पर हमारा संदेश विरोधाभाषी है- बचत करनी चाहिए या खर्च पर जोर देना चाहिए। छह साल पहले, 2008 या 2009 में सरकार ने अपने कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग का भारी भरकम एरियर दिया। उस समय कारोबारी, मीडिया व वित्त मंत्री ने इस तरह के बयान दिए कि सरकारी कर्मचारी यह धनराशि खर्च करेंगे जिससे देश की अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी।

तब मैंने लिखा था कि सरकारी कर्मचारियों को इस धनराशि का इस्तेमाल कर्ज चुकाने व बचत करने के लिए करना चाहिए न कि खर्च करने के लिए। सबसे पहले आप अपनी अर्थव्यवस्था पर ध्यान देते हैं। अगर व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति बेहतर है तो देश की वित्तीय स्थिति भी बेहतर होगी। आपको आज उसी तरह विचार करने की जरूरत है।

जिस टीवी की कीमत 40,000 रुपये है वह फ्लिपकार्ट या अमेजन पर 30,000 रुपये में मिल रही है। लेकिन आप अगर 30 हजार रुपये का निवेश करेंगे तो अगले पांच या छह साल में यह बढ़कर 50 हजार हो जाएंगे। क्या वास्तव में आपको टीवी की जरूरत है? जैसा कि किसी ने कहा है, हम भले ही कितना पैसा कमाएं, लेकिन हमारा खर्च ही तय करता है कि हम गरीब होंगे या अमीर।
धीरेंद्र कुमार

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