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अब हेल्थ इंश्योरेंस में कवर होंगी मानसिक बीमारियां, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें

नए हेल्थकेयर एक्ट के तहत सभी बीमा कंपनियों को मेडिकल इंश्योरेंस में मानसिक बीमारियों के उपचार के लिए प्रावधान करने होंगे।

By Pramod Kumar Edited By: Published: Wed, 03 Oct 2018 02:16 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 07:32 PM (IST)
अब हेल्थ इंश्योरेंस में कवर होंगी मानसिक बीमारियां, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें
अब हेल्थ इंश्योरेंस में कवर होंगी मानसिक बीमारियां, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। इस साल मई में हेल्थकेयर एक्ट, 2017 लागू हो गया है। इसके तहत सभी बीमा कंपनियों को मेडिकल इंश्योरेंस में मानसिक बीमारियों के उपचार के लिए प्रावधान करने होंगे। इसका मतलब यह है कि मानसिक बीमारियों के उपचार पर होने वाला खर्च बीमित व्यक्ति को मिलेगा। अभी तक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में शारीरिक बीमारियां शामिल होती थी। अब मानिसक बीमारियां भी इस दायरे में आएगी।

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इसे देखते हुए बीमा नियामक इरडा ने एक सर्कुलर जारी किया है। इस सर्कुलर में बीमा कंपनियों को तुरंत मेंटल हेल्थकेयर एक्ट के इस प्रावधान का अनुपालन करने के लिए कहा गया है। इसके बाद हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में शारीरिक बीमारियों के उपचार के लिए जो लाभ मिलते थे, वो सारे लाभ मानसिक बीमारियां होने पर भी मिलेंगे।

एक्ट में परिभाषित है मानसिक बीमारी

नए एक्ट में मानसिक बीमारी की परिभाषित किया गया है। एक्ट में दी गई परिभाषा के मुताबिक, "मानसिक बीमारी का मतलब सोच, मनोदशा, धारणा या याददाश्त का विकार है जो व्यवहार को प्रभावित करता है। इसके चलते वास्तविकता या जीवन की सामान्य मांगों को पूरा करने और नशीली दवाओं के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियों को पहचानने की क्षमता खत्म हो जाती है। लेकिन, इसमें मेंटल रिटार्डेशन (मानसिक मंदता) शामिल नहीं है। यह स्थिति पूरा मानसिक विकास न होने के कारण बनती है।"

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस परिभाषा में मेंटल रिटार्डेशन को शामिल नहीं किया गया है और दूसरा, इसमें शराब और दूसरी नशीली दवाओं के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियां शामिल हैं। बीमा कंपनियां दूसरी स्थिति को एक्सक्लूजन लिस्ट में रख सकती हैं।

मौजूदा पॉलिसी पर क्या असर होगा

इसके लिए बीमा कंपनियों को अपने मौजदा प्लानों को दोबारा नियामक के पास भेजना पड़ सकता है। इससे पॉलिसी की मौजूदा कीमतों में बदलाव हो सकता है। एक्स्पर्ट्स का मानना है कि इससे पॉलिसी की कीमत बढ़ सकती है। बीमा कंपनियां 6 से 10 महीनों में प्रीमियम बढ़ाने का फैसला कर सकती है।  


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