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माइक्रो इंश्योरेंस वित्तीय समावेश के लिए अहम

वित्तीय समावेश में माइक्रो फाइनेंस की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है। गांवों व शहरों में बड़ी संख्या में निवास करने वाले गरीबों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने के लिए माइक्रो इंश्योरेंस जरूरी है, खासकर जब थोड़े से प्रीमियम के जरिये गरीबों का जीवन सुरक्षित बनाया जा सकता ह

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 07 Oct 2014 12:03 AM (IST)Updated: Tue, 07 Oct 2014 12:03 AM (IST)
माइक्रो इंश्योरेंस वित्तीय समावेश के लिए अहम

वित्तीय समावेश में माइक्रो फाइनेंस की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है। गांवों व शहरों में बड़ी संख्या में निवास करने वाले गरीबों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने के लिए माइक्रो इंश्योरेंस जरूरी है, खासकर जब थोड़े से प्रीमियम के जरिये गरीबों का जीवन सुरक्षित बनाया जा सकता हो।

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देश के समग्र विकास के सिलसिले में वित्तीय समावेश की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। समाज के सर्वागीण विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस पर बड़ा बल दे रही है। गांवों व शहरों में बड़ी संख्या में निवास करने वाले गरीबों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने के लिए माइक्रो इंश्योरेंस जरूरी है। बीमा नियामक इरडा की ओर से 2005 में घोषित नियमों के अनुसार 50 हजार रुपये या इससे कम राशि की जीवन बीमा या सामान्य बीमा पॉलिसियां माइक्रो इंश्योरेंस के दायरे में आती हैं। आम तौर पर इनका प्रीमियम 500 रुपये से 1,000 रुपये तक होता है। वैसे, इरडा के संशोधित मसौदा नियमों के अनुसार माइक्रो लाइफ इंश्योरेंस की अधिकतम सीमा दो लाख व प्रीमियम 6,000 रुपये कर दिया गया है।

ये उत्पाद ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले अल्प आय वर्ग के लोगों को कवर करने के लिए बनाए गए हैं। इनसे बीमा कंपनियों को अछूते ग्रामीण बाजारों में पैठ बढ़ाने में मदद मिलेगी। नियामक ने बीमा कंपनियों के लिए अपने कुल व्यवसाय का एक हिस्सा ग्रामीण बाजारों से प्राप्त करने का लक्ष्य दिया है। इसके लिए उन्हें माइक्रो इंश्योरेंस उत्पादों की बिक्री करनी होगी।

दो तिहाई लोग वित्तीय सेवा से वंचित:

माइक्रो इंश्योरेंस में विकास के जबरदस्त अवसर हैं। यूएनडीपी के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि 66 फीसद भारतीय किसी भी प्रकार की वित्तीय सेवा से वंचित हैं। उनके पास बैंक खाता तक नहीं है। 90 फीसद भारतीयों के पास कोई बीमा पॉलिसी नहीं है। चूंकि अब भी बहुसंख्य भारतीय गांवों में रहते हैं, लिहाजा ग्रामीण बीमा बाजार में संभावनाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही वह क्षेत्र है, जहां माइक्रो इंश्योरेंस को भूमिका निभानी है।

ग्रामीण क्षेत्रों में वितरण की चुनौती:

इरडा की सिफारिशों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रो इंश्योरेंस उत्पादों का वितरण ग्रामीण बैंकों, माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं, सहकारी बैंकों, गैर सरकारी संगठनों, सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी), डेयरी फेडरेशनों वगैरह के जरिये होता है। लेकिन इसमें चुनौतियां भी हैं। बीमा कंपनियां नियमित रूप से माइक्रो इंश्योरेंस उत्पादों की ऑपरेशनल लागत घटाने का प्रयास कर रही हैं। छोटा प्रीमियम, अनियमित आय के कारण पॉलिसी लैप्स होने की ऊंची दर के चलते बीमा कंपनियों को ग्रामीण लोगों को बीमा कवर प्रदान करने की प्रक्रिया में अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है। माइक्रो इंश्योरेंस में दखल रखने वाली बजाज आलियांज लाइफ इंश्योरेंस भी ऐसी कई चुनौतियों से दो-चार है। इनमें दस्तावेजों में कमी व जागरूकता के अभाव जैसी समस्याएं शामिल हैं। वित्तीय शिक्षा व बीमा के फायदों की जानकारी न होने से ग्रामीणों को यह समझाना काफी मुश्किल होता है कि परिवार में किसी की मृत्यु होने पर वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करने के लिए बीमा कितना जरूरी है। इन मसलों के समाधान के लिए हमें नित नए-नए उपाय ईजाद करने पड़ते हैं।

नए वितरण चैनलों का इस्तेमाल:

बिजनेस करेस्पॉन्डेंट, राष्ट्रीय ई-गवर्नेस योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) व सहकारी बैंक जैसे नए वितरण चैनलों के जरिये ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बीमा की पहुंच बढ़ाई जा सकती है। साथ ही, सेवाओं में सुधार किया जा सकता है। पोस्टर, फ्लिप चार्ट, जिंगल, नाटक जैसे नए-नए माध्यमों से जन जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं। इससे बीमा की अवधारणा को सरल, ध्यानाकर्षक व बातचीत के अंदाज में समझाया जा सकेगा। स्वयं सहायता समूहों की मदद से ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित करने का प्रयोग भी पूर्व में सफल रहा है। इसी के साथ यह भी जरूरी है कि समस्त प्रचार सामग्री को क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार कराया जाए, ताकि पूरे देश की जनता माइक्रो इंश्योरेंस के महत्व को समझ सके।

दस्तावेजों की उपलब्धता:

गांवों में माइक्रो इंश्योरेंस की पहुंच बढ़ाने में एक बड़ी समस्या आयु, स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य ब्योरों के संबंध में आधिकारिक दस्तावेज उपलब्ध न होने की है। एनजीओ, माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं, एसएचजी या अन्य स्थानीय निकायों की मदद से इसका समाधान निकालने में काफी मदद मिली है। बड़ी संख्या में बीमा पॉलिसियों की नई प्रक्रिया विकसित करने व सर्विस डिलीवरी में सुधार से माइक्रो इंश्योरेंस व्यवसाय को किफायती बनाया जा सकता है। इसका लाभ बीमा कंपनियों व ग्राहकों दोनों को मिलेगा।

साझा सेवा केंद्र का इस्तेमाल:

ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा की पहुंच बढ़ाने के लिए इरडा ने बीते साल देश में साझा सेवा केंद्र (कॉमन सर्विस सेंटर-सीएससी) का इस्तेमाल करने की सलाह दी थी। अभी देश में एक लाख 37 हजार सीएससी का नेटवर्क उपलब्ध है, जो सभी तरह के जीवन व गैर जीवन माइक्रो इंश्योरेंस उत्पादों की बिक्री करते हैं।

दावों का तेजी से निपटारा जरूरी:

माइक्रो इंश्योरेंस के मामले में लोगों का भरोसा हासिल करने के लिए दावों का तेजी से निपटारा (सभी कागजात प्राप्त होने के हफ्ते भर के भीतर) करना व वादे के मुताबिक वित्तीय लाभ प्रदान करना कितना अहम है। बीमा कंपनी की विश्वसनीयता कायम करने के लिए खारिज दावों की संख्या न्यूनतम होनी चाहिए, इन पर नजर रखे जाने की जरूरत है। असल में बीमा कंपनियों को चाहिए कि वे कम आय वाले बाजारों में माइक्रो इश्योरेंस ग्राहकों को दावे दाखिल करने के लिए प्रेरित करें। यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो माइक्रो इश्योरेंस के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेश के आंकड़ों में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन सतत सुधार किया जा सकता है।

योगेश गुप्ता

हेड, बिजनेस प्रोक्योरमेंट एंड माइक्रो इंश्योरेंस,बजाज आलियांज लाइफ इंश्योरेंस

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