नियमों में बदलाव से ग्राहक फायदे में
साल 2010 से ही बीमा उद्योग नियमों में बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यूनिट लिंक्ड उत्पादों (यूलिप) की पुनर्सरचना के बाद बीमा नियामक इरडा ने बीते वर्ष पारंपरिक उत्पादों पर भी अपने दिशानिर्देश बदले। इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य बीमा ग्राहकों को ज्यादा से ज्यादा लाभ व बीमा पॉलिसियों मे
साल 2010 से ही बीमा उद्योग नियमों में बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यूनिट लिंक्ड उत्पादों (यूलिप) की पुनर्सरचना के बाद बीमा नियामक इरडा ने बीते वर्ष पारंपरिक उत्पादों पर भी अपने दिशानिर्देश बदले। इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य बीमा ग्राहकों को ज्यादा से ज्यादा लाभ व बीमा पॉलिसियों में पारदर्शिता लाना था। सभी कंपनियां अब तक अपने उत्पादों को नए स्वरूप में ढाल चुकी हैं। इन बदलावों का ग्राहकों के लिए क्या मतलब है, इसे समझना आवश्यक है।
ज्यादा लाभ :
ग्राहकों को अब किसी भी आकस्मिक स्थिति में पहले के मुकाबले अधिक भुगतान की सुविधा है। 45 वर्ष से कम आयु वाले ग्राहकों को अब उनके सालाना प्रीमियम का 10 गुना तक लाइफ कवर मिलने का प्रावधान है। यानी 50 हजार रुपये के सालाना प्रीमियम पर पांच लाख रुपये का सालाना कवर।
सरेंडर वैल्यू बढ़ी :
दिशानिर्देशों में बदलाव का दूसरा सबसे बड़ा फायदा पॉलिसी की न्यूनतम सरेंडर वैल्यू में वृद्धि के रूप में हुआ है। चूंकि जीवन बीमा एक दीर्घकालिक उत्पाद है, इसलिए बीमा नियामक ने इसकी पूरी व्यवस्था की है कि ग्राहक को अधिक से अधिक रिटर्न मिले, भले ही वह पॉलिसी बीच में ही छोड़ना चाहे। लेकिन इसमें यह ध्यान देना होगा कि आप जितने लंबे समय तक पॉलिसी के साथ जुड़े रहेंगे, आपका रिटर्न भी उतना ही अधिक बनेगा। उदाहरण के लिए अगर आप 14 वर्ष तक एक लाख रुपये सालाना प्रीमियम का भुगतान करते हैं तो 15वें साल में वह अपनी कुल राशि का 90 फीसद तक प्राप्त कर सकेंगे।
एजेंटों को प्रोत्साहन :
नियामक का पूरा जोर लंबी अवधि वाली बीमा पॉलिसियों पर है। इसे बढ़ावा देने के लिए नियामक ने एजेंटों को भी अधिक प्रोत्साहन देने का प्रावधान नई पॉलिसियों में किया है। इसके लिए छोटी अवधि वाली पॉलिसी बेचने पर कम व लंबी अवधि तक कंपनी के साथ ग्राहकों को जोड़े रखने वाले एजेंटों को ज्यादा कमीशन की व्यवस्था की है। पॉलिसियों को भी ऐसे डिजाइन किया गया है, जिससे एजेंट लंबी अवधि वाली पॉलिसी ग्राहकों को बेचने के लिए प्रोत्साहित हों। पॉलिसी जल्दी सरेंडर होने पर एजेंट को कम भुगतान की व्यवस्था नई पॉलिसियों में है। यह स्थिति जरूरत पर आधारित पॉलिसियों की बिक्री में वृद्धि करेगी। भारतीय बीमा उद्योग कंसोलिडेशन के दौर से गुजर रहा है। इन बदलावों से इस उद्योग के रफ्तार पकड़ने की पूरी संभावना है। आगे चलकर ये बदलाव बीमा उत्पादों को और आकर्षक बनाएंगे व उद्योग के विकास की रफ्तार में स्थिरता लाएंगे।
स्नेहिल गंभीर
सीओओ, अवीवा लाइफ इंश्योरेंस