एसआइपी निवेश में बुनियादी बातों का ध्यान रखना जरूरी
सिस्टमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान (एसआइपी) या नियमित निवेश योजना का गणित बेहद सरल होता है
एसआइपी का मतलब ही होता है नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) या बाजार भाव की चिंता किए बगैर नियमित अंतराल पर एक निश्चित रकम का निवेश करना। ऐसे में अगर बाजार में उतार आता है, तो आपके निवेश पर हासिल यूनिट की संख्या अपने आप बढ़ जाती है। इसे एक उदाहरण द्वारा समझिए।
मान लीजिए कि आप एसआइपी के जरिये हर महीने 20,000 रुपये का निवेश करते हैं। अगर किसी महीने में एनएवी 20 रुपये प्रति यूनिट हुआ, तो उस महीने निवेश पर आपको 1,000 यूनिट मिलेंगे। लेकिन अगर बाजार टूट गया और एनएवी घटकर 16 रुपये प्रति यूनिट तक आ गया, तो आपको उसी 20,000 रुपये के निवेश पर 1,350 यूनिट मिलेंगे। यही एसआइपी की सफलता का राज है कि बाजार के नीचे जाने के साथ ही आपकी खरीदी यूनिट की संख्या खुद-ब-खुद बढ़ गई। इस तरह से कहें तो एसआइपी का मतलब नियमित अंतराल पर एक निश्चित रकम का निवेश करना है। यह अंतराल कम से कम एक महीने का हो सकता है। इसमें बाजार के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखकर निवेश नहीं किया जाता, बल्कि निवेश के दिन बाजार भाव के आधार पर यूनिट का आवंटन होता है। यानी बाजार में उतार के साथ निवेशक को अपने आप ज्यादा यूनिट मिल जाते हैं। इससे यूनिट का औसत भाव गिर जाता है और रिटर्न की दर ऊंची हो जाती है।
जब आप म्यूचुअल फंड में अपना निवेश भुनाना चाहते हैं, तो सभी यूनिट का भाव बराबर होता है और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने उसे खरीदा कितने में था। जिन यूनिट्स को आपने कम भाव में खरीदा उन पर मार्जिन ज्यादा होता है। इससे निवेश का ‘कम भाव पर खरीदो और ज्यादा पर बेचो’ का लक्ष्य अपने आप सध जाता है।
एसआइपी में निवेश की सबसे बड़ी समस्या ‘कहां निवेश करें’ नहीं है। असल में समस्या ‘निवेश करें कि नहीं करें’ और ‘अच्छे-बुरे हर दौर में निवेश करते रहें’ की है। निवेशक अक्सर नियमित निवेश नहीं करते, और अगर करते भी हैं तो इक्विटी मार्केट में गिरावट के वक्त निवेश बंद कर देते हैं। यह किसी एक वर्ग की नहीं, बल्कि करीब-करीब हर वर्ग के निवेशकों की दिक्कत है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गिरते बाजार को मीडिया का एक बड़ा तबका संकट की तरह पेश करता है। और इससे बेबुनियाद बात कोई और हो नहीं सकती। सीधी सी बात है कि ग्राहक को क्या चाहिए? ग्राहक को सिर्फ और सिर्फ सस्ते में सौदा चाहिए। इक्विटी बाजार के ग्राहकों यानी निवेशकों के लिए भी यही बात सच है। लेकिन होता बिल्कुल इसके विपरीत है। जब बाजार की गिरावट पर निवेशकों को निवेश करना चाहिए, उस वक्त ज्यादातर निवेशक खरीदारी बिल्कुल बंद कर देते हैं।
सच कहें तो अपने निवेश पर बेहतरीन रिटर्न की तलाश करने वाले निवेशकों की इन दोनों समस्याओं का समाधान एसआइपी के माध्यम से हो जाता है। बल्कि, म्यूचुअल फंड में निवेश इन दोनों समस्याओं के समाधान की बेहतरीन खासियत है। ध्यान रखिए, एसआइपी खुद में कोई फंड नहीं है, बल्कि फंड में निवेश का एक जरिया है।
हालांकि यह गणित बेहद लुभावना और तार्किक है। लेकिन एसआइपी से बेहतरीन रिटर्न हासिल होने का यह मुख्य कारण नहीं है। बेहतर रिटर्न का मुख्य कारण निवेश का मनोविज्ञान है। एसआइपी का मकसद ‘कहां और कब निवेश करें’ की चिंता में पड़े बिना नियमित इक्विटी निवेश के जरिये अच्छा रिटर्न हासिल करना है। जब बाजार का रुख नकारात्मक होता है तो ज्यादातर निवेशक डर के मारे निवेश बंद कर देते हैं। लेकिन एसआइपी के ज्यादातर निवेशक बाजार के गिरने के वक्त निवेश नहीं रोकते। इसका फायदा यह होता है कि थोड़े ही दिन बाद जब बाजार की हालत सुधर जाती है, तो उन्हें गिरते बाजार में निवेश बंद नहीं करने की अहमियत समझ में आती है। इससे निवेशकों की एक नई पीढ़ी को भी निवेश के लिए प्रेरित करने और उन्हें नियमित अंतराल पर निवेश करते रहने का फायदा बताने का मौका मिलता है।
पिछले तीन से पांच वर्षो के दौरान एसआइपी में निवेश के तहत रिटर्न भुगतान के तरीके में सुधार से भी इस तरह के निवेश को देखने का नजरिया बदला है। इससे पहले यह होता था कि निवेशकों को मासिक एसआइपी के नाम पर एक वर्ष से लेकर तीन वर्षो तक की अवधि के लिए इकट्ठे चैक का बंडल साइन करना होता था। ऐसे में निवेशकों को लगने लगता था कि एसआइपी महज एक सीमित अवधि का प्लान है। चैक खत्म हो जाने पर निवेशक दोबारा वही प्रक्रिया शुरू करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
अब निवेशक मासिक एसआइपी निवेश के तहत ईसीएस का अधिकार दे देते हैं, जिससे उनके अकाउंट से हर महीने वह रकम खुद-ब-खुद कट जाती है और एसआइपी को चली जाती है। पहले एसआइपी निवेश रोकना तो अपने आप हो जाता था, लेकिन उसे दोबारा शुरू करने के लिए पंजीकरण कराना और फिर वही चैक का बंडल साइन करने की प्रक्रिया दोहरानी होती थी। अब यह खत्म हो गया है। मैं मानता हूं कि इस तरह के बदलाव से निवेशकों पर बहुत गहरा सकारात्मक असर पड़ा है।
एसआइपी के तहत निवेश से हासिल रिटर्न अक्सर बेहद आश्चर्यजनक होते हैं। इसका एक उदाहरण यह है कि मैंने चार फंड्स लिए, जो पिछले करीब एक दशक से मेरे पास हैं। फिर, वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन पर उपलब्ध फ्री पोर्टफोलियो मैनेजर के जरिये मैंने यह गणित लगाया कि अगर ये फंड एसआइपी के जरिये 20 वर्षो से मेरे पास होते तो मुझे कितना रिटर्न मिला होता। मुङो पता चला कि 20 वर्षो तक महज 5,000 रुपये मासिक निवेश से मुझे इन चारों फंड्स से 1.29 करोड़, 1.85 करोड़, 1.21 करोड़ और 2.5 करोड़ रुपये मिले होते। जबकि प्रत्येक फंड में दो दशकों के दौरान मेरा निवेश सिर्फ 12 लाख रुपये का होता। कहने की जरूरत नहीं कि इस तरह का सिर्फ एक निवेश किसी मध्यम-वर्गीय इंसान की जिंदगी बदल सकता है।
सिस्टमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान (एसआइपी) या नियमित निवेश योजना का गणित बेहद सरल है। आप हर महीने म्यूचुअल फंड में एक निश्चित रकम का निवेश करते हैं। यह निवेश खुद-ब-खुद निवेश की सबसे बुनियादी शर्त ‘कम दाम पर खरीदिए और ज्यादा पर बेचिए’ का पालन करना शुरू कर देता है। आखिर कैसे?
(इस लेख के लेखक धीरेन्द्र कुमार हैं जो कि वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं।)