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फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम म्यूचुअल फंड की समझ होने लगी है बेहतर

पूंजी बाजार नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने हाल ही में म्यूचुअल फंड्स की कैटेगरी में जिस तरह के बदलाव किए हैं

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 03:20 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 12:46 PM (IST)
फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम म्यूचुअल फंड की समझ होने लगी है बेहतर
फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम म्यूचुअल फंड की समझ होने लगी है बेहतर

आगामी कुछ वर्षो, या शायद कुछ दशकों के लिए भारत डिपॉजिट पर कम ब्याज दर की स्थिति की ओर जाता दिख रहा है। सच यह है कि अगर अर्थशास्त्रियों की बड़ी-बड़ी बातों के हवाई महल से बाहर निकलें और बचतकर्ताओं की जमीनी हकीकत की पड़ताल करें, तो फिक्स्ड डिपॉजिट के मामले में हम पहले ही काफी नुकसान झेल चुके हैं। अगले कई वर्षो के लिए बचत खाते या सेविंग्स अकाउंट पर ढाई से साढ़े तीन फीसद और सावधि जमा या फिक्स्ड डिपॉजिट पर अमूमन पांच से सात फीसद तक की ब्याज दर नई सच्चाई है।

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ज्यादातर भारतीय, जिनमें सेवानिवृत्त नागरिकों की तादाद बहुत अधिक है, आज भी निवेश के अन्य उपकरणों के मुकाबले फिक्स्ड डिपॉजिट पर ज्यादा भरोसा करते हैं। पिछले तीन वर्षो में ऐसे निवेशकों की कमाई लगभग 25 फीसद तक गिर चुकी है। क्या इसका कोई समाधान है? निश्चित रूप से है।

आज बाजार में ऐसे म्यूचुअल फंड प्रोडक्ट्स हैं, जो ऐसे निवेशकों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। ये प्रोडक्ट्स न केवल बैंकिंग प्रोडक्ट्स के मुकाबले ज्यादा ब्याज मुहैया कराते हैं, बल्कि इनमें ब्याज पर टैक्स की रकम भी अपेक्षाकृत बेहद कम है। इससे रिटर्न और ज्यादा आकर्षित नजर आता है। सच तो यह है कि अगर आप म्यूचुअल फंड्स में निवेश के लिए कई फंड कंपनियों द्वारा विशेष रूप से तैयार मोबाइल एप का उपयोग करें, तो सुविधा भी रहती है और रकम का आदान-प्रदान भी जल्दी हो जाता है।

पूंजी बाजार नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने हाल ही में म्यूचुअल फंड्स की कैटेगरी में जिस तरह के बदलाव किए हैं, उसने फंड्स की अब तक की समझ को आमूल-चूल बदल दिया है। ऐसे में लिक्विड फंड्स और अल्ट्रा-शॉट ड्यूरेशन फंड्स बैंक अकाउंट्स के सबसे सटीक विकल्पों के तौर पर उभरे हैं। इन फंड्स पर रिटर्न करीब-करीब पूर्वानुमान के हिसाब से होता है और इनमें अस्थिरता भी नहीं के बराबर होती है। ऐसे फंड्स के लिए सेबी ने जिस तरह की परिभाषा का पालन करना अनिवार्य किया है, उसने चीजों को और बेहतर बना दिया है। पिछले एक वर्ष के दौरान लिक्विड फंड्स ने औसतन 6.85 फीसद, जबकि अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंड्स यानी बेहद कम अवधि के फंड्स ने 6.47 फीसद तक का रिटर्न दिया है।

यह तो हुई बैंकों की डिपॉजिट योजनाओं के मुकाबले ऐसे फंड्स को चुनने से होने वाले मौद्रिक फायदों की बात। इन फंड्स की असल खासियत यह है कि इनका परिचालन बेहद आसान और इन पर लगने वाला टैक्स बेहद कम है। लिक्विड फंड्स में निवेश और कमाई का भुगतान महज स्मार्टफोन आधारित एप के माध्यम से हो सकता है। वर्तमान में कई फंड कंपनियां एप के जरिये इस तरह की सेवा दे रही हैं। इन एप्स के माध्यम से आप अपने बैंक अकाउंट से सीधे ऐसे फंड्स में निवेश कर सकते हैं। इतना ही नहीं, इन्हीं एप्स के जरिये बिना किसी परेशानी के ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट में फंड्स से रकम अपने बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर सकते हैं। कुल मिलाकर यह कि बचत खाते के मुकाबले डेढ़ गुना ज्यादा ब्याज मुहैया कराने वाले इन फंड्स में आपकी पूंजी महज कुछ मिनटों के लिए आपकी पहुंच से बाहर होती है।

म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना महज रिटर्न की तुलना तक सीमित नहीं है। हमारे यहां टैक्सेशन यानी कराधान की कई संरचनाएं हैं। कई संरचनाओं का सीधा मतलब यह है कि टैक्स काट लेने के बाद की कमाई में भी बड़ा अंतर आता है। यह अंतर इसलिए है क्योंकि फिक्स्ड डिपॉजिट से हासिल रिटर्न को ब्याज आय माना जाता है, जबकि म्यूचुअल फंड्स से हासिल रिटर्न को कैपिटल गेन मद में गिना जाता है। ब्याज से हासिल आय पर हर वर्ष टैक्स देना होता है। अगर बैंक से आपकी ब्याज आय (अकाउंट्स और डिपॉजिट से हासिल आय मिलाकर) 10,000 रुपये से ज्यादा होती है, तो बैंक उस पर 10 फीसद टीडीएस भी काट लेता है।

अगर बैंक के पास आपका पैन नंबर नहीं है, तो वह 20 फीसद टीडीएस काट लेता है। इसका सीधा मतलब यह है कि हर वर्ष आपकी कमाई का एक हिस्सा टैक्स में चला जाता है और उसे आय के साथ जोड़ा नहीं जाता। लेकिन म्यूचुअल फंड्स में निवेश से हासिल आय अगर आप दोबारा उसी फंड में निवेश कर देते हैं, तो उस पर कोई टैक्स नहीं देना होता है, यानी कमाई बढ़ती रहती है।

अगर आपके म्यूचुअल फंड निवेश की अवधि तीन वर्ष से ज्यादा है, तो एक और फायदा है। वह यह कि ऐसे निवेश को लांग टर्म कैपिटल गेन (एलटीसीजी) में गिना जाता है। ऐसे में इस पर सिर्फ महंगाई-समायोजित रिटर्न पर ही टैक्स लगता है। लेकिन फिक्स्ड डिपॉजिट में यह सुविधा नहीं मिलती है। अगर इन सभी पहलुओं को मिलाकर तुलना करें, तो फिक्स्ड डिपॉजिट में तीन वर्षो के लिए निवेश की तुलना में म्यूचुअल फंड्स की किसी योजना में तीन वर्षो के लिए उतनी ही रकम के निवेश पर लगभग दोगुना ज्यादा आय हासिल होगी।

पहले इस तरह की गणना और ऐसी तुलना करने की उम्मीद किसी सधे और ज्ञानी निवेशक से ही की जा सकती थी। लेकिन आज अच्छे रिटर्न देने वाले फंड्स भी आसानी से उपलब्ध हैं, और उन पर होने वाली आय और उनमें निवेश के फायदे बताने वाले उपकरण भी बहुतायत में उपलब्ध हैं। अब वक्त आ गया है कि निवेश के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे पुराने उपकरणों के मुकाबले म्यूचुअल फंड्स के नए उपकरणों पर भरोसा बढ़ाया जाए।

पिछले कुछ वर्षो में फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) पर ब्याज दरें काफी कम हुई हैं और अगले कई वर्षो तक यही स्थिति रहने वाली है। ऐसे में एफडी में निवेश करने वालों के लिए म्यूचुअल फंड्स की कई योजनाएं हैं, जिनमें बेहद कम वक्त के लिए बेहतर और करीब-करीब तय ब्याज पर बेहद आसानी से निवेश किया जा सकता है। यह निवेश मोबाइल फोन से भी कुछ मिनटों में ही हो सकता है। अच्छी बात यह है कि अब निवेशक इस तरह के निवेश और उसके फायदों के प्रति जागरूक हो रहे हैं।

(इस लेख के लेखक धीरेन्द्र कुमार हैं जो कि वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)


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