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उत्पादन के संग ही खुलेगा मांग बढ़ने का रास्ता, सरकार को इन बातों पर करना चाहिए विचार

यदि हम छोटे उद्योगों को बढ़ावा दें जिनके द्वारा अधिक संख्या में रोजगार उत्पन्न किए जाते हैं तो उनके द्वारा दिए गए वेतन से बाजार में मांग बढ़ेगी।

By Manish MishraEdited By: Published: Tue, 21 Apr 2020 10:40 AM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2020 06:55 PM (IST)
उत्पादन के संग ही खुलेगा मांग बढ़ने का रास्ता, सरकार को इन बातों पर करना चाहिए विचार
उत्पादन के संग ही खुलेगा मांग बढ़ने का रास्ता, सरकार को इन बातों पर करना चाहिए विचार

नई दिल्‍ली, डॉ. भरत झुनझुनवाला। आर्थिक गतिविधि का मूल चक्र उत्पादन से शुरू होता है। उत्पादन से श्रमिक को वेतन मिलता है। उस वेतन से वह बाजार से माल खरीदता है। माल के बिकने से उद्यमी पुन: निवेश करता है। यह चक्र इस समय टूट गया है। उत्पादन बंद है। श्रमिक को वेतन नहीं मिल रहा और बाजार में मांग शून्यप्राय है। इस चक्र को पुन: चालू करने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता यह है कि हम पहले उत्पादन शुरू करें। उद्योगों को टैक्स में छूट दें जैसा कि सीआइआइ और एसोचैम जैसी संस्थाओं ने कहा है। इसमें समस्या यह है कि यदि बड़े उद्योगों द्वारा उत्पादन शुरू कर भी दिया गया तो उनके द्वारा कम संख्या में ही श्रमिकों को रोजगार दिया जाता है। फलस्वरूप आम आदमी के पास क्रय शक्ति कम ही रहेगी और बाजार में मांग भी कम उत्पन्न होगी। 

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वर्तमान में कार और बाइक इत्यादि बिना बिके शोरूम में हैं। बड़े उद्योगों द्वारा उत्पादन बढ़ाने से शोरूम के स्टॉक में वृद्धि हो भी जाए तो भी मूल आर्थिक चक्र स्थापित नहीं होगा, जैसे बीमार के सामने भोजन परोसने से उसका रोग ठीक नहीं होता। यदि हम इस चक्र को वेतन से शुरू करें तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। यदि हम छोटे उद्योगों को बढ़ावा दें जिनके द्वारा अधिक संख्या में रोजगार उत्पन्न किए जाते हैं तो उनके द्वारा दिए गए वेतन से बाजार में मांग बढ़ेगी। इस मांग से बड़े उद्योगों का माल भी बिकने लगेगा। मांग उत्पन्न हो जाएगी तो छोटा उद्यमी भी किसी प्रकार से उत्पादन शुरू करने को रकम जुटा ही लेगा।

मांग उत्पन्न करने का एक उपाय यह बताया जा रहा है कि बुनियादी संरचना जैसे बिजली, हाईवे इत्यादि में सरकारी निवेश बढ़ाया जाए। यह सफल नहीं होगा, क्योंकि इस समय हाईवे पर दौड़ने वाले वाहनों की संख्या कम होने से अर्थव्यवस्था में गति नहीं आएगी। दूसरा विचाराधीन उपाय है कि बड़े उद्योगों को टैक्स में छूट दी जाए। इसमें समस्या यह है कि बड़े उद्योगों द्वारा श्रम का उपयोग कम होता है इसलिए उनके द्वारा उत्पादन करने से पर्याप्त मांग उत्पन्न नहीं होगी। तीसरा विचाराधीन उपाय है कि सरकार द्वारा कल्याणकारी खर्च बढ़ाए जाएं जैसे वरिष्ठ नागरिकों को पेंशन और महिलाओं को हर महीने अग्रिम राशि देने का निर्णय लिया गया। यह सही दिशा में है, लेकिन इस खर्च द्वारा भी उत्पादन के चक्र का स्थापित होना जरूरी नहीं है। 

यदि वरिष्ठ नागरिक को हजार रुपये पेंशन में मिलें और उसने बाजार से बड़ी फैक्ट्री द्वारा निर्मित कपड़ा खरीद लिया तो उसे तो आराम मिला, लेकिन अगर बड़ी फैक्ट्री द्वारा वेतन नहीं बांटे गए तो दोबारा मांग उत्पन्न नहीं होगी और उत्पादन का चक्र स्थापित नहीं होगा। इन कल्याणकारी खर्चो के साथ यदि चौथा कदम उठाया जाए तो अर्थव्यवस्था गति पकड़ सकती है। चौथा कदम छोटे उद्योगों को जीएसटी में भारी राहत देने और साथ ही आयात कर बढ़ाने का है। इसका परिणाम यह होगा कि सरकार का राजस्व पूर्ववत रहेगा। आयात कर में वृद्धि से जितनी रकम उपलब्ध होगी उतनी ही छोटे उद्योगों को जीएसटी में राहत से हानि होगी। अंतर यह होगा कि छोटे उद्योगों द्वारा निर्मित कपड़ा सस्ता पड़ेगा, वरिष्ठ नागरिकों द्वारा पेंशन से उनके द्वारा निर्मित कपड़ा खरीदा जाएगा, छोटे उद्योगों द्वारा वेतन दिए जाएंगे और उस वेतन से बड़े उद्योगों द्वारा निर्मित बाइक और कार भी बिकने लगेंगी।

वर्तमान में वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली पेंशन सही दिशा में होते हुए भी अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाने के लिए पर्याप्त नहीं। अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ने देश के प्रत्येक नागरिक को हजार डॉलर का चेक सीधे भेज दिया है। इसी प्रकार के प्रयोग अन्य देशों द्वारा भी किए जा रहे हैं। अपने देश में करीब तीस करोड़ परिवार हैं। यदि प्रत्येक परिवार को तीन माह तक पांच हजार रुपये प्रति माह सीधे दे दिए जाएं तो लगभग पांच लाख करोड़ रुपये का खर्च बैठेगा। मेरे अनुमान से लॉकडाउन के कारण राजस्व में गिरावट के चलते सरकार के घाटे में लगभग दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। लगभग पांच लाख करोड़ रुपये सीधे वितरण के लिए भी चाहिए होंगे। 

कई विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान संकट के समय वित्तीय घाटे को देश की आय के दस प्रतिशत तक बढ़ने दिया जा सकता है। देश की वर्तमान आय लगभग दो सौ लाख करोड़ रुपये है। इसलिए वित्तीय घाटे को वर्तमान के लगभग सात लाख करोड़ से बीस लाख करोड़ तक बढ़ने दिया जा सकता है, लेकिन तत्काल इस रकम तक जाने की जरूरत नहीं है। वर्तमान में सरकार यदि केवल सात लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज ले और इसमें से पांच लाख करोड़ रुपये परिवारों को सीधे बांट दे तो बाजार में कपड़े, कागज, जूते इत्यादि की मांग उत्पन्न होगी। सरकार को राजनीतिक लाभ होगा और आम आदमी को बड़ी राहत भी मिलेगी। इसके बाद यदि यह मांग छोटे उद्योगों द्वारा आपूर्ति की गई तो फिर पुन: बड़ी संख्या में लोगों को वेतन मिलेगा और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी, लेकिन यदि यही मांग बड़े उद्योगों द्वारा पूरी की गई तो दोबारा चक्र नहीं बनेगा, क्योंकि उनके द्वारा श्रम का उपयोग कम किया जाता है। 

इस रकम को जुटाने का एक अन्य उपाय यह करना चाहिए कि ईंधन तेल पर आयात कर दोगुना कर देना चाहिए। अभी कच्चे तेल के दाम कम हैं। इसका लाभ उठाते हुए पेट्रोल का दाम जो वर्तमान में लगभग 70 रुपये प्रति लीटर है उसे बढ़ा कर सौ रुपये प्रति लीटर हो जाने देना चाहिए। ऐसा करने से सरकार को लगभग चार लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष की आय हो सकती है। तब सरकार को ऋण भी कम लेना पड़ेगा। तेल की कीमत में वृद्धि भी छोटे उद्योगों को राहत पहुंचाएगी, क्योंकि उनके द्वारा माल की ढुलाई कम की जाती है।

अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाने के लिए सीधे रकम के वितरण से बाजार में मांग पैदा की जाए और उस मांग की आपूर्ति छोटे उद्योगों द्वारा की जाए। तब अधिक मात्र में वेतन दिया जाएगा और पुन: मांग बनेगी। इन दोनों कार्यो को एक साथ में करने से ही अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी। यदि सरकार ने ऋण लेकर बुनियादी संरचना बनाई अथवा बड़े उद्योगों को छूट दी तो यह चक्र स्थापित नहीं होगा। इसलिए सरकार को बड़े उद्योगों द्वारा की जा रही मांग पर सावधानी से विचार करना चाहिए।

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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