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निवेश पोर्टफोलियो में विविधता की सीमा जरूरी

किसी निवेशक के पोर्टफोलियो में फंड की आदर्श संख्या तीन या चार हो सकती है, इससे ज्यादा फंड में निवेश करना मेहनत बरबाद करने से ज्यादा कुछ नहीं

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 08 Jul 2018 02:52 PM (IST)Updated: Sun, 08 Jul 2018 07:15 PM (IST)
निवेश पोर्टफोलियो में विविधता की सीमा जरूरी
निवेश पोर्टफोलियो में विविधता की सीमा जरूरी

निवेशकों के बीच आम धारणा है कि निवेश की पूरी राशि किसी एक ही फंड में नहीं लगानी चाहिए। आमतौर पर सभी निवेशक मानते हैं कि राशि अलग-अलग फंड में लगाने से रिस्क कम रहता है। यह सोच सही तो है, लेकिन एक सीमा तक। कई निवेशक इस सोच की धारा में बहते-बहते अपने पोर्टफोलियो में कई फंड जोड़ लेते हैं। पोर्टफोलियो में जरूरत से ज्यादा फंड होने से फायदा होने की बजाय उन्हें नुकसान होने लगता है। पोर्टफोलियो में विविधता होनी चाहिए लेकिन उससे पहले यह समझना भी जरूरी है कि इस विविधता की सीमा क्या रहे। आदर्श स्थिति में किसी भी म्यूचुअल फंड निवेशक के लिए तीन-चार फंड से ज्यादा में निवेश अर्थहीन हो जाता है।

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हम सबने बचपन से ही सुना है कि सब कुछ किसी एक ही जगह दांव पर नहीं लगाना चाहिए। निवेश के मामले में इसका सीधा सा अर्थ है विविधता और हर निवेशक को पता है कि विविधता यानी डायवर्सिफिकेशन अच्छी बात है। म्यूचुअल फंड निवेशक इसका अर्थ यह मानता है कि उसे केवल एक या दो फंड में निवेश नहीं करना चाहिए, अपने निवेश को अलग-अलग कई फंड में लगाना चाहिए। निवेशक मानकर चलते हैं कि एक से बेहतर है दो में निवेश करना, दो से बेहतर तीन, तीन से बेहतर चार और आगे भी इसी तरह। सवाल है कि यह गिनती रुकेगी कहां? क्या 10 फंड में निवेश करना नौ से सही है? 20 फंड में निवेश करना कैसा रहेगा? या 50 और 100 के बारे में क्या ख्याल है? एक बिंदु पर आकर विविधता अर्थहीन हो जाती है और इससे फायदे की जगह नुकसान होने लगता है।

निसंदेह, ज्यादातर निवेशकों को डायवर्सिफिकेशन की सीमा निर्धारित करने का यह विचार अनोखा लगेगा। कुछ साल पहले मुझसे किसी ने पूछा था कि उसे कितने फंड में निवेश करना चाहिए। मेरा जवाब था कि तीन से चार फंड बेहतर रहेंगे। कुछ समय बाद उस व्यक्ति ने मुङो अपना पोर्टफोलियो भेजा। तब मुझे एहसास हुआ कि उसने मेरी बात का मतलब बिलकुल उलटा समझ लिया था। मेरे कहने का अर्थ था कि उन्हें तीन या चार से ज्यादा फंड में निवेश नहीं करना चाहिए, उन्होंने अर्थ समझा कि कम से कम तीन या चार फंड में निवेश करना चाहिए।

निवेशक सोचते हैं कि पोर्टफोलियो में विविधता का मतलब है ढेर सारे फंडों में निवेश करना। हालांकि सच यह है कि एक बिंदु के बाद ज्यादा फंडों में निवेश से पोर्टफोलियो को विविधता का कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता है। म्यूचुअल फंड अपने आप में कोई निवेश नहीं हैं। ये आधारभूत निवेश जैसे इक्विटी फंड के मामले में स्टॉक को सुरक्षित रखने का माध्यम हैं। म्यूचुअल फंड निवेश में बहुत ज्यादा विविधता इसलिए अर्थहीन हो जाती है क्योंकि एक जैसे फंड के तहत आने वाले स्टॉक भी एक जैसे होते हैं। एक सीमित संख्या के बाद जब आप अपने पोर्टफोलियो में फंड जोड़ते हैं तो अमूमन आप उसी तरह के स्टॉक में निवेश कर रहे होते हैं, जो आपके पास पहले से हैं।

इसे विविधता नहीं कह सकते। हमें एक बार फिर इस बात को सोचना चाहिए कि हमें विविधता की जरूरत क्यों है। विविधता आपको किसी निवेश के खराब प्रदर्शन के दुष्प्रभाव से बचाती है। कभी-कभी किसी कंपनी या सेक्टर का प्रदर्शन बाकी बाजार की तुलना में ज्यादा खराब होता है। ऐसी स्थिति में अगर आपका पूरा पैसा उसी में नहीं लगा हो, तो निश्चित रूप से यह आपके लिए मददगार होता है। यह विविधता बड़ी से लेकर छोटी कंपनी तक में होनी चाहिए क्योंकि कभी-कभी छोटी या बड़ी कंपनियां अलग-अलग तरह से प्रदर्शन कर रही होती हैं। यह फंड की जियोग्राफिक स्थिति पर भी निर्भर कर सकता है। अगर पूरे बाजार में गिरावट चल रही हो तो विविधता आपको कोई फायदा नहीं दे सकती।

कई निवेशक बिना सोचे-समङो केवल इसलिए बहुत सारे फंड में निवेश कर लेते हैं क्योंकि उन्हें ये फंड बेचकर कोई एजेंट कमीशन कमा जाता है। निवेशक को इस बात का सही-सही अंदाजा नहीं होता कि विविधिता क्या है। इसीलिए उसे लगता है कि ज्यादा फंड मतलब अच्छी बात। सच्चाई इससे अलग है। सीमा से ज्यादा फंड में निवेश से फायदा होना तो दूर की बात है, अक्सर यह स्थिति नुकसान का कारण बन जाती है। हमें समझना चाहिए कि म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे बड़ा फायदा ही यही है कि निवेश की ट्रैकिंग और मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है। ऐसे में निवेश पोर्टफोलियो में बहुत ज्यादा फंड होने से म्यूचुअल फंड में निवेश का यह सबसे बड़ा फायदा ही खो जाता है।

कई म्यूचुअल फंड में निवेश से उनका मूल्यांकन जटिल हो जाता है। एक निश्चित अवधि में या कहा जाए तो करीब हर तिमाही में एक बार निवेशक को अपने पोर्टफोलियो के हर फंड का मूल्यांकन करना चाहिए और देखना चाहिए कि इससे वही नतीजा निकल रहा है कि नहीं, जिस नतीजे की उम्मीद में निवेश किया गया था। अब अगर आपने किसी सेल्समैन के कहने पर 15 से 20 फंड खरीद लिए हैं, तो यह काम असंभव हो जाता है। इस स्थिति में कुछ फंड तो ऐसे भी होंगे जो बमुश्किल आपके पोर्टफोलियो के दो या तीन फीसद के ही बराबर होंगे। ऐसे में यह आकलन करना मुश्किल होगा कि ये फंड आपके पोर्टफोलियो में क्यों हैं और इनके अच्छे या बुरे प्रदर्शन से क्या असर पड़ेगा। अगर पोर्टफोलियो बहुत बड़ा होने की वजह से आप उसका मूल्यांकन और प्रबंधन ही नहीं कर सकते तो निवेश से अपना वित्तीय लक्ष्य हासिल करना आपके लिए मुश्किल होगा।

किसी निवेशक के पोर्टफोलियो में फंड की आदर्श संख्या तीन या चार हो सकती है, इससे ज्यादा फंड में निवेश करना मेहनत बरबाद करने से ज्यादा कुछ नहीं। बल्कि कहा जाए तो किसी व्यक्ति के निवेश के आकार को देखते हुए इनकी संख्या और कम भी रह सकती है। ऐसा व्यक्ति जो महीने में पांच से छह हजार रुपये का निवेश कर रहा हो, उसके लिए एक या दो बैलेंस्ड फंड पर्याप्त हैं। पोर्टफोलियो में इससे ज्यादा फंड का होना निवेशक के लिए पूरी तरह अर्थहीन है। याद रखें, म्यूचुअल फंड अपने आप में ही विविधता लिए होते हैं। इसीलिए ज्यादा फंड लेने से बहुत कम ही फायदा होता है।

(इस लेख के लेखक धीरेंद्र कुमार हैं जो कि वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं।)


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