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लॉकडाउन के बाद बाजार में अवसरों की नहीं है कमी, निवेश में बरतें सावधानी और काटें मुनाफा

अगर आपका एसेट एलोकेशन मंजूरी देता हो तो बाज़ार द्वारा पेश किए जाने वाले अवसरों से नहीं चूकें।

By Manish MishraEdited By: Published: Mon, 22 Jun 2020 04:09 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jun 2020 08:05 PM (IST)
लॉकडाउन के बाद बाजार में अवसरों की नहीं है कमी, निवेश में बरतें सावधानी और काटें मुनाफा
लॉकडाउन के बाद बाजार में अवसरों की नहीं है कमी, निवेश में बरतें सावधानी और काटें मुनाफा

नई दिल्‍ली, अजीत मेनन। मुझे आशा है कि आप और आपके परिवार के लोग पूरी तरह सकुशल होंगे और मौजूदा वैश्विक महामारी में सुरक्षित रहेंगे। मैंने जान-बूझकर अर्थव्यवस्था और अन्य वृहद घटकों पर कमेंट करने से खुद को अलग रखा है क्योंकि सामान्य परिस्थितियों में बाज़ार एक चक्र से गुजरता है और निवेशकों को जिस चीज से मदद मिलती है वह है एसेट एलोकेशन (परिसंपत्ति आवंटन), वित्तीय योजनाओं को लेकर किये गए फैसले और पूरे चक्र के दौरान उन फैसलों पर टिके रहने का अनुशासन। लेकिन आज हम जो देख रहे हैं वह सामान्य चक्र नहीं बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व स्तर पर अस्त-व्यस्त हो गयी है। शायद धक्के और व्यवधान की सीमा बताने के लिए अभूतपूर्व शब्द काफी नहीं होगा। 

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अब जब दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुल रही हैं, निवेशकों और धन प्रबंधकों के लिए समान रूप से बड़ा सवाल यह है कि अर्थव्यवस्थाओं को सुधरने में कितना वक्त लगेगा? इस वैश्विक महामारी के चलते व्यावसायिक संगठनों, समाज और अर्थव्यवस्थाओं में स्थायी रूप से क्या-क्या बदलने जा रहा है? कौन विजेता होगा, किसकी लुटिया डूबेगी? संभावित उत्तर पाने के लिए पूरी दुनिया में पीजीआइएम के विभिन्न इन्वेस्टमेंट प्रोफेशनल्स ने अर्थव्यवस्थाओं का विश्लेषण किया है। उन्होंने उपभोक्ता के व्यवहार, सप्लाई चेन का प्रबंधन, स्थान और सुरक्षा संबंधी धारणा, वेटलेस फर्म्स की स्थिति और अंत में सरकारी हस्तक्षेप की प्रकृति और सीमा में संभावित बदलाव के नजरिये से बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है। मैं इस आलेख के माध्यम से “आफ्टर द ग्रेट लॉकडाउन” शीर्षक से पीजीआइएम के हालिया श्वेत पत्र को संक्षिप्ते में साझा करना चाहता हूँ। 

अर्थव्यवस्था के उबरने के लिए पीजीआइएम का बेस-केस क्रमिक सुधार का संकेत देता है, कुछ-कुछ 'नाइके-स्वूश-शेप' के समान। हमें उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था अपने निचले स्‍तर से उबर जायेगी और आर्थिक क्रियाकलाप एवं जीडीपी 2021 में किसी वक्त 2019 के अंत के स्तर पर वापस आ जाएगा। कोविड-19 के लिए जांच और इलाज में सुधारों से V-आकार के परिदृश्य का मार्ग खुल सकता है, लेकिन अगर उपभोक्ताओं ने खर्च से हाथ खींच लिए या इससे भी चिंताजनक अगर वायरस की विश्वव्यापी ‘दूसरी लहर’ आ गई तो ज्यादा संभावना W-आकार के समान गिरते-चढ़ते सुधार होने की है।  

पिछले कुछ वर्षों से ग्राहक वैयक्तीकृत उत्पाद और सेवाएं मांग रहे हैं। लॉकडाउन के बाद भी इस प्रवृत्ति के बदलने की संभावना नहीं है। पेशकशों में विविधता केवल टेक्नोलॉजी, डेटा, बौद्धिक संपदा का लाभ उठाकर ही संभव हो सकती है। यहां तक कि लॉकडाउन के पहले भी जिन कंपनियों ने अपने-अपने परिचालन के उद्योग को पुन: परिभाषित करने के लिए इनका प्रभावकारी लाभ उठाया, का मार्केट शेयर और साइज़ बढ़ता हुआ दिखाई दिया। टेक्नोलॉजी के लाभ पर जोर देने से और भी तेजी दिखेगी। इस तरह वेटलेस फर्म्स में वृद्धि जारी रहेगी, इसका हमें यकीन है। ऐसे में, साझा अर्थव्यवस्था के भीतर कुछ नाटकीय घटनाक्रम - जैसे कि राइडशेयरिंग - निकट भविष्य में धीमी हो सकती हैं और उपभोक्ता अपने निकटतम इलाके में सेवा प्रदातों के साथ लम्बे रिश्ते की ओर आकर्षित हो सकते हैं। 

दूसरी बहस एक संकल्पना के रूप में ऑफिस के भविष्य को लेकर है। पीजीआइएम के विशेषज्ञों का मत है कि ऑफिसों का अस्तित्व बना रहेगा क्योंकि वे मूलभूत सामाजिक ज़रूरतों को भी पूरा करते हैं। ऑफिस की रूपरेखा में बदलाव का दौर चलेगा। कुछ कंपनियां अपने वर्कफोर्स के कुछ हिस्से को स्थायी रूप से वर्क फ्रॉम होम में बदल सकती हैं, लेकिन प्रति कर्मचारी जगह में भी वृद्धि होगी। रियलिटी के लिए दूसरी आशा की किरण ई-कॉमर्स द्वारा गोदामों और लॉजिस्टिक्स की जगह के लिए मांग से निकल सकती है। ई-कॉमर्स कंपनियों ने लागत के फायदे के लिए अपने गोदाम/कोल्ड स्टोरेज को शहरी सीमा से बाहर रखा है। अंतिम छोर की मांग पूरी करने के लिए उपभोक्ता के इलाकों के करीब आधुनिक गोदाम बनेंगे। 

इस बात की बहुत संभावना है कि लोग अपना आवास भीड़-भरे इलाकों से हटाकर अपेक्षाकृत खुले और उपनगरीय इलाकों में ले जायेंगे। इससे खुली जगहों वाले इलाकों में मकान भाड़े में वृद्धि होगी। इन सभी से हमारे रहने, काम करने और खेलने-कूदने के तौर-तरीकों की नयी परिभाषा तय होगी। 

लोगों और व्यवसायों को आपूर्ति श्रृंखला में बाधा का सामना करना पड़ा जिससे इस तरह की श्रृंखला की कमजोरी सामने आयी। वैश्वीकरण के चलते कॉरपोरेशंस ने लागत में लाभ देने वाले देशों से वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति लेनी आरंभ कर दी। कम लागत/प्रगति दक्षता पर केंद्रित होने की संपूर्ण प्रवृत्ति के कारण चीन जैसी जगहों से आपूर्ति लेने पर काफी फोकस किया गया है। इस संकट से आपूर्ति श्रृंखला की दुर्बलता सामने आयी। टियर-I और टियर-II आपूर्तिकर्ताओं की वित्तीय सुदृढ़ता पर कम दृश्यता पर भी फोकस था। 

लॉकडाउन के बाद कंपनियां चीन के बदले विभिन्न अलग-अलग देशों से सामान मंगाने का रुख सक सकती हैं। इन्वेंटरी मैनेजमेंट का दूसरा साधन यानी ‘जस्ट इन टाइम’ (ठीक समय पर) से ‘जस्ट इन केस’ (ठीक ज़रुरत पर) नजरिये का जन्म हो सकता है जिसका अर्थ होगा कि कंपनियाँ, कम से कम महत्वपूर्ण घटकों के लिए, व्यवधानों की स्थिति के लिए अधिक इन्वेंटरी रखना पसंद करेंगे। फ्लेक्सिबिलिटी और एफिशिएंसी के बीच, लागत और महत्व के बीच दुविधा हो सकती है, और अन्य परेशानियां भी होंगी। हमें और अधिक मंदी से रक्षा के लिए मूल्यांकन पर अभी प्रतीक्षा और अवलोकन का रुख अपनाना होगा।

कारोबार में सरकारी हस्तक्षेप में वृद्धि निश्चित होने की संभावना है। अधिकांश सरकारें इस बात पर जोर देंगी कि कुछ उत्पादन, आवश्यक सेवाओं का तो निश्चित ही, उनके देश में वापस आ जाए। इससे वैश्वीकरण के सामने चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, लेकिन परिवहन, संचार और प्रवासन से प्रेरित वैश्विक एकीकरण का पहिया उल्टी दिशा में नहीं घूमेगा। दुनिया को और आगे एकीकृत करने के लिए वैश्वीकरण 2.0 के माध्यम से समाज की ज़रूरतों, वाणिज्यिक वास्तविकताओं और सन्निहित जोखिमों के बीच के अंतर को भरना होगा। इन सारे घटकों पर विचार करते हुए हम कह सकते हैं कि कारोबार करने की लागत बढ़ने की संभावना है।

अनेक वैरिएबल्स के माहौल में, उभरते बाज़ारों को अपना ऋण स्तर नियंत्रण में रखना होगा ताकि वैश्विक निवेशकों के हितों को जारी रखा जा सके। वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर कम निर्भरता वाले चयनात्मक बाज़ार ऐसे अवसर होंगे जिन पर ध्यान दिया जा सकता है। अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के लिए, धीमा विकास और वैश्विक महामारी, दो संकट हैं। लेकिन उच्च विदेशी मुद्रा भण्डार, भारतीय खाद्य निगम के पास पर्याप्त खाद्यान्न भण्डार, तेल की कम कीमतें, अच्छी मानसून की संभावना जैसी आशा की किरणें भी हैं। भारत का हाल इंडिया से बेहतर होगा। इसलिए आप सभी से मेरा अनुरोध यही होगा कि कुछ लिक्विडिटी रखें, लेकिन अगर आपका एसेट एलोकेशन मंजूरी देता हो तो बाज़ार द्वारा पेश किए जाने वाले अवसरों से नहीं चूकें। हमारी मानवीय सूझ-बूझ हमें इस संकट से उबरने में भी सहायक होगी। 

(लेखक पीजीआइएम (PGIM) इंडिया म्‍युचुअल फंड के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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