Move to Jagran APP

सोने की चकाचौंध में भी निवेश के दूसरे विकल्प कहीं बेहतर

रिटेल ज्वैलरी उद्योग के कुछ कारोबारियों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष दिसंबर में सोने की खरीदारी पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा रही

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 28 Jan 2018 01:33 PM (IST)Updated: Sun, 28 Jan 2018 01:34 PM (IST)
सोने की चकाचौंध में भी निवेश के दूसरे विकल्प कहीं बेहतर
सोने की चकाचौंध में भी निवेश के दूसरे विकल्प कहीं बेहतर

गांवों में सोने की चकाचौंध दिखते ही बनती है। वर्षो या दशकों से नहीं बल्कि सदियों से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सोने के प्रति अटूट विश्वास आज भी बरकरार है। सोने से हटकर दूसरे निवेश विकल्पों की ओर बहुत कम लोग देख पाते हैं। अगर हम उत्पादक और अनुत्पादक की बहस में भी न उलझे तो भी रिटर्न के लिहाज से सोने से दूसरे सभी विकल्प बेहतर हैं। शहरों में तो दूसरे निवेश विकल्पों को समझने के लिए लोग आगे आ रहे हैं। लेकिन गांवों में ऐसा कतई नहीं दिखाई देता है।

loksabha election banner

एक हालिया रिपोर्ट ने एक दिलचस्प और चौंकाने वाला खुलासा किया है। रिपोर्ट का कहना है कि फसल की अच्छी कीमत मिलने के चलते देश के ग्रामीण इलाकों में सोने की खरीदारी में खासा इजाफा हुआ है। रिटेल ज्वैलरी उद्योग के कुछ कारोबारियों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष दिसंबर में सोने की खरीदारी पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा रही। बेहतर मांग में ग्रामीण इलाकों का बड़ा योगदान है।

हकीकत यह है कि अगर ऐसा हुआ भी है तो इसे साबित कर पाना बालू से तेल निकालने जितना ही मुश्किल काम है क्योंकि रिपोर्ट में पिछले वर्षो के दिसंबर में सोने की खरीदारी का कोई भी आंकड़ा नहीं दिया गया है। फिर भी, इस रिपोर्ट पर यकीन करने की कुछ वजहें हैं। कारण कोई भी हो, लेकिन यह सच है कि गांवों और छोटे शहरों के लोग आज भी सोने की खरीद को बचत का बड़ा और बेहतरीन तरीका मानते हैं। लोग जरा धनवान हुए नहीं और इधर-उधर से थोड़ी बचत हुई नहीं कि लोग सोना खरीदकर खुश हो जाते हैं। कुल मिलाकर कहें तो बहुत थोड़े लोग अपनी बचत को दूसरे वित्तीय प्रपत्रों में लगाते हैं। उन मुट्ठी भर लोगों को छोड़ दें तो सोने के प्रति लोगों के भरोसे में रत्ती भर भी कमी नहीं आई है। यह भरोसा एक तरह से अटूट है क्योंकि सोने में निवेश की यह प्रथा कोई महीनों, सालों या दशकों से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है।

मुझे पूरा यकीन है कि वैल्यू रिसर्च की वेबसाइट का उपयोग करने वाले सुधी निवेशकों में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जिनका निवेश के लिहाज से सोने पर अटूट विश्वास है। ज्यादातर भारतीय निवेशक सोने को एक लंबे वक्त के लिए निवेश का ऐसा माध्यम मानते हैं जो जब भी जाता है तो कुछ न कुछ देकर ही जाता है। सच तो यही है कि सोना एक निवेश ही है- या यूं कह लें कि जो भी चीज खरीदी-बेची जा सकती है वह निवेश ही है। कुछ अरसे पहले दुनिया के विख्यात निवेशक वॉरेन बफेट ने अपने एक लेख के जरिये बेहद सजीवता से सोने में निवेश की समस्याओं का जिक्र किया था। उस लेख का विषय था: स्टॉक्स कैसे गोल्ड और बांडस को पछाड़ देते हैं। इसे समझाने के लिए बफेट ने एक बेहतरीन उदाहरण का इस्तेमाल किया। आइए, समझते हैं।

बफेट के अनुसार आज दुनिया भर में सोने का भंडार करीब एक लाख 70 हजार टन है। अगर इस स्वर्ण भंडार को पिघलाकर एक घन का रूप दें, तो उस घन की हर दीवार 68 फीट से ज्यादा ऊंची होगी। अगर सोने की मौजूदा कीमत 1,750 प्रति औंस के हिसाब से इस घन का दाम लगाएं, तो वह 96 खरब डॉलर के आसपास का होगा। इस घन को घन ‘ए’ मान लेते हैं।1बफेट आगे कहते हैं, चलिए अब इसी घन ए के दाम के बराबर एक दूसरा अंबार, घन ‘बी’ खड़ा करते हैं। इसके लिए हम सबसे पहले अमेरिका की 40 करोड़ एकड़ पूरी खेतिहर जमीन खरीद लेते हैं, जिसकी सालाना उत्पादन क्षमता करीब 20,000 करोड़ डॉलर की है।

अब इसमें दुनिया की सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाली कंपनी एक्सॉनमोबील, जिसकी सालाना कमाई 400 करोड़ डॉलर से ज्यादा है, जैसी 16 कंपनियां खरीद लेते हैं। इन दोनों को मिलाने के बाद भी हमारे पास घन ‘बी’ के लिए 10 खरब डॉलर से ज्यादा की रकम बच जाएगी।1अब आप ही बताइए कि एक निवेशक, जिसके पास 96 खरब डॉलर की निवेश लायक संपत्ति हो, वह निवेश के लिए क्या चुनेगा: सोने का अंबार या उसी के दाम के बराबर अमेरिका की पूरी खेतिहर जमीन या फिर 16 एक्सॉनमोबील के साथ बच गए 10 खरब डॉलर का भंडार।

यकीन मानिए, एक सदी बाद अमेरिका की यह खेतिहर जमीन न मालूम कितने दाम के धान, गेहूं, कपास और अन्य फसलें उपजा चुकी होगी और उसके बाद भी उपजाऊ बनी रहेगी। इसी एक सदी के दौरान 16 एक्सॉनमोबील तो छोड़िए, महज एक एक्सॉनमोबील अपने निवेशकों को खरबों डॉलर का लाभांश दे चुकी होगी। लेकिन एक सदी बाद भी सोने के उस भंडार की लंबाई, चौड़ाई और मोटाई नहीं बढ़ने वाली है, और न ही उसकी कुछ खास उत्पादकता रहने वाली है। आप भले ही उस भंडार को सहलाते और खुश होते रहिए, लेकिन उससे हासिल कुछ नहीं होगा।

असल में, बफेट के हिसाब से सोने की यही एकमात्र दुविधा नहीं, बल्कि आपूर्ति की दुविधा भी है। मौजूदा दाम के हिसाब से दुनियाभर में 168 अरब डॉलर मूल्य के सोने का उत्पादन होता है। इतना ही नहीं, खनन कंपनियों के लिए ज्यादा मुफीद यही होता है कि वे जितना ज्यादा से ज्यादा सोने का खनन कर सकें, कर लें। सोने का बाजार भाव ज्यादा न बढ़ने देने के लिए जरूरी होता है कि आवक बनी रहे।

सच पूछिए तो चाहे व्यक्तिगत निवेशक के लिहाज से कहें या पूरी अर्थव्यवस्था के लिहाज से, सच यह है कि सोने में निवेश एक तरह से मुर्दा निवेश है। जहां तक भारत का संबंध है तो सोने की अत्यधिक भूख एक अन्य तरीके से भी खतरनाक है, जिसे हम नजरअंदाज करते रहे हैं। यह चमकीली धातु खतरे की दोधारी तलवार है जिसमें एक तरफ मांग बढ़ती है तो आयात बढ़ता है जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर होती है। दूसरी तरफ लोग टैक्स चोरी करने के लिए भी इस चमकीली धातु का उपयोग करते हैं।

मेरा मानना यह है कि एक खास धनाढय शहरी वर्ग को छोड़ दें, तो सोने में निवेश की चमक फीकी पर चुकी है। क्या ग्रामीण भारत का रुख भी कभी ऐसा ही होगा, इसका फिलवक्त तो हम लोगों के पास कोई सही जवाब नहीं है।

हालांकि, व्यक्तिगत तौर पर मैं ऐसा मानता हूं कि जो भी निवेशक हर तरह की लाभ-हानि की गणना करने में सक्षम नहीं हैं, या फिर जो कर चोरी करते हैं, उन्हें छोड़कर बाकी लोगों के लिए सोने में निवेश का अब कोई मतलब नहीं है। निवेश के करीब-करीब सभी अन्य विकल्प इससे बेहतर हैं। लंबी अवधि के इक्विटी निवेश तो निश्चित तौर पर क्योंकि वे तो टैक्स फ्री भी हैं।

(लेखक धीरेन्द्र कुमार वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.