बाजार गिरता-चढ़ता रहेगा, मगर वोट का समझदारी से इस्तेमाल करें
आजकल हर इक्विटी निवेशक एक ही चिंता में उलझा नजर आ रहा है। वह है - चुनाव नतीजे आने के बाद शेयर बाजारों की चाल क्या रहने वाली है।
इस वक्त ज्यादातर निवेशक इसी सोच में पड़े हुए हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद शेयर बाजार का ऊंट किस करवट बैठने वाला है। इसका जवाब यह है कि छोटी अवधि में बाजार की चाल भले ही निवेशकों की भावनाओं पर तय होती हों, लेकिन लंबी अवधि में इसका निर्धारण सिर्फ और सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती से होता है। ऐसे में इस वक्त यह महत्वपूर्ण नहीं कि शेयर बाजारों की चाल क्या होगी। इस वक्त महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने वोट का समझदारी से इस्तेमाल करें, ताकि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो।
दुनिया के सबसे सधे निवेशकों में एक वारेन बफेट की शख्सीयत ऐसी है कि वे जितनी भी बातें कहते हैं, वह दुनियाभर में मशहूर हो जाती है। ऐसी ही बहुत सी बातों में एक ऐसी भी है जो उतनी ज्यादा प्रसिद्ध तो नहीं, लेकिन है बहुत गहरी बात। वह यह कि ‘जिस वक्त खोटे सिक्के को अगर पता चल जाए कि उसके दुरुगुण क्या हैं, उसी वक्त से वह खोटा सिक्का नहीं रह जाता है।’ इन शब्दों के दर्जनों मायने हो सकते हैं। आमतौर पर चतुर और मूढ़ या अज्ञानी का बिल्कुल वही मतलब होता है जिसके लिए वह लिखा या कहा जाता है।
मूढ़ निवेशक को पता नहीं होता कि निवेश कैसे करें, कहां करें और कब करें। ऐसे में निवेश की दुनिया का यह बूढ़ा बादशाह (वारेन बफेट) जो कुछ भी कह रहा है, वह हम में से सबके काम का है। इसकी वजह यह है कि हम सब जितने चतुर निवेशक हैं, उससे कहीं ज्यादा मूढ़ निवेशक हैं। और एक बार आपको यह एहसास हो जाए, आप यह स्वीकार कर लें कि निवेश की किसी खास परिस्थिति के बारे में आपको ज्यादा जानकारी नहीं है, वैसे ही वास्तविक परिस्थितियों के लिहाज से आप चतुर निवेशक बन जाते हैं।
ऐसा कहने का कुल आशय यह है कि आजकल हर इक्विटी निवेशक एक ही चिंता में उलझा नजर आ रहा है। वह है - चुनाव नतीजे आने के बाद शेयर बाजारों की चाल क्या रहने वाली है। इतना ही नहीं, निवेशक यह भी जानने की जुगत में लगे हुए हैं कि वे कौन सी ताकतें हैं जो चुनाव से पहले शेयर बाजारों को सकारात्मक या नकारात्मक दिशा दिखा रही हैं। क्या शेयर बाजार कुछ ऐसा जानते हैं, जिसका पता हमें नहीं है? क्या यह जानने का कोई गुप्त फॉमरूला है जिससे पता चल सके कि शेयर बाजारों की चाल के बारे में भीड़ क्या सोच रही है?
बुनियादी रूप से यह वही पुराना सवाल है कि शेयर भाव को गति कौन देता है? इसके दर्जनों जवाब हैं, और हर जवाब एक ही वक्त में सही और गलत दोनों हो सकता है। बहुत पहले इस पर एक सर्वे हुआ था कि बाजार की चाल को आखिर तय कौन करता है? इस सर्वे का मकसद यह जानना था कि एक निश्चित अवधि में शेयर बाजार की चाल किस तरह की रही है, ताकि भविष्य में अगर उसी तरह के कारण सामने आएं तो कहा जा सके कि बाजार अमूमन पुरानी चाल ही दोहराएगा।
सर्वे के अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि सभी कारणों में तीन ऐसे थे, जिनसे मोटे तौर पर यह पता चल सकता था कि शेयर बाजार में उस खास अवधि में जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह क्या थी। इनमें पहला था अर्थव्यवस्था की उत्पादकता, उसका सकल विकास। लंबी अवधि में शेयर बाजार की चाल के लिए यह एक बड़ा कारक था। दूसरा था कि अर्थव्यवस्था में जो भी विकास हुआ, वह देश के परिवारों के विकास में कितना योगदान दे पाने में सक्षम था। तीसरा था जोखिम से बचने की चाहत, जो भविष्य की अनिश्चितता के प्रति सभी लोगों की सहज प्रतिक्रिया होती है।
इस अध्ययन से यह बात सामने आई कि अतीत में शेयर बाजारों की चाल में 75 फीसद योगदान इसी तीसरे कारक यानी जोखिम से बचने की चाहत की रही है। इसका बुनियादी और सीधा मतलब यह है कि छोटी अवधि में निवेशकों के इमोशंस, उनकी भावनाएं ही शेयर बाजारों की चाल तय करती हैं। ‘क्या होने वाला है’, इस पर लोगों की भावनाएं ही छोटी अवधि में शेयर बाजारों की चाल के लिए 75 फीसद जिम्मेदार हैं। येन-केन प्रकारेण यह जानने की उत्कंठा कि चुनाव के नतीजे शेयर बाजारों की चाल पर क्या असर डालेंगे, यह ठहरने और गंभीरता से विचार करने का वक्त है।
आप क्या जानते हैं और क्या नहीं जानते, इसका अपने आप में कोई मतलब नहीं है। केवल अभी नहीं, बल्कि 23 मई की दोपहर या उसके बाद नतीजे आ जाने के बाद भी उसका कोई मतलब नहीं रहने वाला है। असल मतलब की बात यह है कि शेयर बाजार की चाल क्या रहने वाली है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वर्तमान में लोगों की भावनाएं क्या हैं। लेकिन जहां तक लंबी अवधि का सवाल है, तो भारतीय शेयर बाजार में आपके निवेश का हश्र इस पर निर्भर करेगा कि अर्थव्यवस्था का ऊंट किस करवट बैठता है।
इक्विटी बाजार पर चुनाव का असर सिर्फ और सिर्फ इसी एक कारक पर तय होगा। कोई अज्ञानी ही इसे झुठला सकता है कि इस वर्ष के चुनाव नतीजों का देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत-बहुत गहरा असर होने वाला है। इस असर की तीव्रता महज वर्षो में नहीं, बल्कि शायद दशकों तक बरकरार रहेगी। बाजार की चाल के हिसाब से अपनी चाल तय करने या इस पर सोच विचार के लिए बहुत वक्त पड़ा हुआ है। लेकिन तब तक बाजार की चिंता को भूलिए और यह सुनिश्चित कीजिए कि आपके वोट का सही इस्तेमाल हुआ है।
(इस लेख के लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेन्द्र कुमार हैं)
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