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'अनजाने खतरों को लेकर परेशान ना हों निवेशक, निश्चित चीजों पर ध्यान देने की जरूरत'

पिछले दिनों एक ही कारोबारी दिन के भीतर लोवर सर्किट तक पहुंचे बाजार में 5000 अंक तक की रिकवरी हो गई।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sun, 22 Mar 2020 09:45 AM (IST)Updated: Sun, 22 Mar 2020 08:48 PM (IST)
'अनजाने खतरों को लेकर परेशान ना हों निवेशक, निश्चित चीजों पर ध्यान देने की जरूरत'
'अनजाने खतरों को लेकर परेशान ना हों निवेशक, निश्चित चीजों पर ध्यान देने की जरूरत'

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। एक ऐसे दौर में रहना जहां हर मिनट आने वाली हर नई खबर ब्रेकिंग न्यूज की तरह पेश की जाती है, वहां सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि इनके बीच असल में कोई महत्वपूर्ण ब्रेकिंग न्यूज आ जाए तो हम अनदेखी कर देते हैं। दुर्भाग्य से अभी हमारे पास वास्तव में कुछ ऐसा है, जो कई महीनों तक या संभवत: कई वर्षो तक ब्रेकिंग न्यूज का हिस्सा रह सकता है, कुछ ऐसा जिसके हम आदी नहीं हैं। इक्विटी और इक्विटी आधारित निवेश के लिए यह काफी हद तक सही है। बिजनेस चैनल के एंकरों की तरफ से लगातार जानकारी देते रहना मुश्किल हो जाएगा, अगर एक जैसी ही चीज रोज, हफ्ते दर हफ्ते या महीने दर महीने होने लगे। या फिर शायद ऐसा करने की उन्हें आदत हो। 

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असल में इक्विटी मार्केट में हाल-फिलहाल का उतार-चढ़ाव इसी मानसिक अंतर का संकेत देता है। पिछले दिनों एक ही कारोबारी दिन के भीतर लोवर सर्किट तक पहुंचे बाजार में 5,000 अंक तक की रिकवरी हो गई। स्थिति ऐसी जान पड़ती थी कि कहीं बाजार अपर सर्किट में ना पहुंच जाए। यही हमारी आगामी पीढ़ी की कहानी है। मेरा अनुमान है कि समस्या सोच की है। लोग इस बात के आधार पर निर्णय लेना चाहते हैं कि अभी इस वक्त हालात कितने बुरे हैं। ये ऐसे लोग हैं जो सिर्फ ‘अभी’ में जीते हैं। किसी संकट के समय और बाजार में गिरावट के दौर में ऐसी सोच सही नहीं कही जा सकती है। 

असल कहानी यहीं से शुरू होती है। अभी जो हालात हैं उनकी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। लोग एक अनजाने भय में फैसले ले रहे हैं। माना जाता है कि स्टॉक की कीमतें किसी कदम या फैसले से भविष्य पर पड़ने वाले असर का संकेत देती हैं। इस लिहाज से किसी भी बात की तुलना में इन पर लोग ज्यादा भरोसा करते हैं, क्योंकि बातें तो गलत भी हो सकती है। इस स्थिति में बाजारों में लगातार ऐसी गिरावट एक ऐसे संकट की तस्वीर बना देती है, जिससे पार पाना मुश्किल लगता है। 

सवाल यह है कि अभी बाजार हमें क्या बताना चाहते हैं? बाजार का कहना है कि अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इस समय का निष्कर्ष यही है कि कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। अब एक निवेशक या बचतकर्ता के रूप में हमें क्या करना चाहिए? इसका उत्तर वही है, जो ज्यादातर मामलों में होता है, वह यह कि फैसला अपनी वित्तीय स्थिति के हिसाब से लीजिए, बाहर के घटनाक्रमों के आधार पर नहीं। अगर आपने इक्विटी में बहुत ज्यादा निवेश किया गया है, तो मैं कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि इसका सीधा सा अर्थ है कि या तो आप जानते हैं कि आप क्या कर रहे हैं, या फिर आप किसी की भी नहीं सुनना चाहते। अगर ऐसा है, तो जो चल रहा है, चलने दीजिए। वहीं, अगर आप ठीक दूसरे छोर पर हैं, यानी आपने लगभग पूरा निवेश फिक्स्ड इनकम वाले विकल्पों में किया है, तो भी आप इस सब से दूर हैं। 

ज्यादातर भारतीय दूसरी श्रेणी के ही हैं, लेकिन ये सामान्य जनता है। मेरा मानना है कि अभी इस लेख को पढ़ रहा व्यक्ति इन दोनों में से ही किसी एक छोर पर खड़ा होगा। बात आती है तीसरे वर्ग की। संभव है कि आपने अलग-अलग तरह से निवेश किया है और उसमें कुछ हिस्सा इक्विटी में भी है। जाहिर है कि पिछले कुछ दिनों में आपके निवेश का रिटर्न तेजी से गिरा है। अब इस स्थिति में आप नहीं समझ रहे कि क्या करना चाहिए? क्या जो भी नुकसान हुआ उसे सहते हुए निवेश को बाजार से बाहर निकाल लेना चाहिए? इस बात का कोई निश्चित उत्तर नहीं हो सकता है। 

हालांकि कुछ सिद्धांत हैं, जिन पर ध्यान देना चाहिए। सबसे सामान्य सिद्धांत है कि भले ही हालात कुछ भी हों, अर्थव्यवस्था एवं कारोबार के मूल में काम करने वाले लोग हमेशा के लिए बाजार से दूर नहीं हो जाएंगे। बहुत से उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता के दौर आएंगे, लेकिन कुछ मूलभूत बातें अपनी जगह पर बनी रहेंगी। पिछले कुछ दशकों में कई बार ऐसा हुआ है।

मौजूदा दौर थोड़ा अलग है, क्योंकि समस्या की जड़ आर्थिक नहीं है। अभी अर्थव्यवस्था पर इसके असर को लेकर भी कुछ बहुत निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है। उम्मीद है कि ज्यादातर चीजें समय के साथ इस संकट से पहले वाली सामान्य स्थिति में लौट आएंगी। उदाहरण के तौर पर हमने हमेशा देखा है कि बुरे वक्त में कारोबार की फंडामेंटल क्वालिटी और स्ट्रेंथ ज्यादा मजबूत होकर सामने आती है।

नतीजा यह है कि हर कंपनी का प्रदर्शन बुरा है, लेकिन अच्छी कंपनियां थोड़ा कम बुरा प्रदर्शन करेंगी, वहीं उनकी कुछ प्रतिस्पर्धी कंपनियां खत्म हो जाएंगी। इसका सीधा सा अर्थ है कि यह संकट ऐसी कंपनियों के लिए बहुत अच्छा साबित होगा, जो अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियों से ज्यादा बेहतर तरीके से काम करती हैं। अभी उदाहरण देना तो कतई सही नहीं होगा, लेकिन मेरा मानना है कि भारत में एयरलाइंस में ऐसा स्पष्ट रूप से देखने को मिलेगा।

सच है कि यह संकट पिछले कई संकट से एकदम अलग है। इसके बारे में कुछ भी तय नहीं किया जा सकता है। लेकिन इस हालात में अच्छा यही होगा कि उन बातों पर ध्यान दीजिए जो किसी हाल में नहीं बदलेंगी। अनदेखे खतरे की चिंता करना निर्थक है।

इस समय दुनियाभर में एक अलग तरह का संकट फैला है। घरेलू और वैश्विक बाजार धराशाई हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में निवेशकों के मन में चिंता स्वाभाविक है। इस संकट के असर को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। हालांकि यह ध्यान में रखना चाहिए कि संकट के बाद कारोबार की फंडामेंटल क्वालिटी और स्ट्रेंथ मजबूत होकर सामने आती है। इस संकट के बाद भी अपने कारोबार में सही तरीका अपनाने वाली कंपनियां उबरकर सामने आएंगी। वहीं उनकी कुछ प्रतिस्पर्धी कंपनियां खत्म हो सकती हैं। ऐसे में इस संकट के समय उन बातों पर ध्यान दीजिए जो किसी हाल में नहीं बदलेंगी। अनजाने खतरे के बारे में सोचकर बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है।

(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)


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