Move to Jagran APP

Investment Rules: बचत से कर्ज चुकाएं या कहीं और करें निवेश, जानिए क्‍या है सही निर्णय

Investment Rules अगर यही सवाल आप किसी वित्तीय सलाहकार से पूछें तो बहुत संभावना इस बात की है कि वह आपको पहले कर्ज उतार लेने की सलाह देगा।

By Manish MishraEdited By: Published: Mon, 11 Nov 2019 06:10 PM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 08:28 AM (IST)
Investment Rules: बचत से कर्ज चुकाएं या कहीं और करें निवेश, जानिए क्‍या है सही निर्णय
Investment Rules: बचत से कर्ज चुकाएं या कहीं और करें निवेश, जानिए क्‍या है सही निर्णय

नई दिल्‍ली, धीरेंद्र कुमार। बकाया चुका दें या बचत का कहीं निवेश कर लें? यह ऐसा सवाल है, जो कभी पुराना नहीं होता। कोई ना कोई, कहीं ना कहीं, किसी ना किसी से यह सवाल पूछ ही रहा होता है। चलिए, एक उदाहरण के माध्यम से समझाते हैं। हाल ही में एक पाठक ने मुझसे ई-मेल के जरिये कहा कि उसने एक हाउसिंग लोन लिया हुआ है। उस पर वह 11 प्रतिशत सालाना ब्याज के हिसाब से मासिक किस्त चुका रहा है। इसमें उसे कोई दिक्कत भी नहीं है, क्योंकि उसकी इतनी कमाई है कि वह आराम से समान मासिक किस्त (ईएमआइ) का भुगतान कर सकता है। लेकिन उसे लगता है कि मासिक किस्त चुकाने और अन्य खर्चे काट लेने के बाद भी उसके पास निवेश लायक कुछ रकम बच रही है। 

loksabha election banner

उस पाठक ने यह जानना चाहा कि उसके लिए बेहतर विकल्प क्या होगा? उसे बची रकम से हाउसिंग लोन का ही एक हिस्सा समय-पूर्व चुका देना चाहिए ताकि बोझ कुछ हल्का हो जाए, या कि वह किस्त का भुगतान करता रहे और शेष बची रकम को लंबी अवधि के निवेश वाली किसी योजना में लगा दे?

यह कोई असामान्य कशमकश नहीं है। सच तो यह है कि होम लोन लेने वाले वेतनभोगी वर्ग का हर सदस्य अपनी जिंदगी में कभी ना कभी इस मोड़ पर आ खड़ा होता ही है। उस वक्त वह इस कशमकश में उलझता ही है कि उसे इन दोनों में से क्या चुनना चाहिए। इसकी वजह बहुत सरल है। कोई भी व्यक्ति अपने मौजूदा वेतन के हिसाब से लोन लेता और उसकी ईएमआइ भरता है। लेकिन समय के साथ उसका वेतन बढ़ता जाता है। फिर वह ऐसे मुकाम पर आ खड़ा होता है जहां उसे लगने लगता है कि अब बचत इतनी हो गई है कि होम लोन के बकाये का कुछ बोझ तो समय से पहले उतारा ही जा सकता है।

अब अगर यही सवाल आप किसी वित्तीय सलाहकार से पूछें, तो बहुत संभावना इस बात की है कि वह आपको पहले कर्ज उतार लेने की सलाह देगा। यह उचित भी है। उसकी सलाह पर्सनल फाइनेंशियल प्लानिंग के प्रथम सिद्धांत पर आधारित है। वह सिद्धांत कहता है कि बचत से पहले आप अपना कर्ज चुकाएं। यह सिद्धांत जंचता भी है, और इसका ‘करीब-करीब हमेशा’ अनुसरण करना चाहिए।

ध्यान दीजिए, मैंने कहा - करीब- करीब हमेशा। इसकी वजह है। अगर आपको क्रेडिट कार्ड के बिल भुगतान और बचत में से किसी एक का चुनाव करना हो, तो निश्चित तौर पर आप पहले क्रेडिट कार्ड के बकाये का भुगतान कीजिए। ‘करीब-करीब हमेशा’ का यह तर्क लगभग सभी तरह के कंज्यूमर लोन पर लागू होता है। चाहे आप पर्सनल लोन लें या कार लोन या कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन, बेहतर यह है कि बचत की इच्छा को दबाकर आप पहले उसका कर्ज चुका दें। यह बात सबसे ज्यादा उनपर सटीक बैठती है, जो कर्ज लेकर निवेश करते हैं।

लेकिन इस प्रथम सिद्धांत के कुछ अपवाद भी हैं। लंबी अवधि के निवेश की एक खासियत यह है कि उनसे हासिल रिटर्न होम लोन पर चुकाए जा रहे ब्याज से अमूमन अधिक ही होता है। अतीत में हम देख चुके हैं कि 10 वर्षो की लगभग सभी निवेश योजनाओं का रिटर्न काफी अच्छा रहा है। हाउसिंग लोन की ईएमआइ का भुगतान कर रहे हर उस व्यक्ति के लिए यह अच्छा विकल्प साबित हुआ है।

होम लोन का बकाया जल्दी नहीं चुकाकर निवेश कर लेने का एक फायदा और है। होम लोन के ब्याज पर मिल रहे टैक्स छूट को देखें, तो प्रभावी ब्याज दर और कम होती नजर आती है। फिर, होम लोन का दूसरा फायदा यह है कि आपको हर वर्ष बढ़े घर किराए का सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे में किसी के लिए भी बेहतर यही होगा कि वह होम लोन की किस्त जल्दी उतारने के बजाय लंबी अवधि की योजना में निवेश कर ले। हां, किसी के पास एकाएक ऐसी बड़ी संपत्ति आ जाए जो जल्द खत्म हो जाने वाली हो, तो उस मामले में होम लोन का बोझ थोड़ा कम कर लेने में बुराई नहीं है।

इन सबसे ऊपर एक चीज और है। वह है मनोविज्ञान का, इंसान के स्वाभाविक गुण-धर्म का। अगर किसी की कमाई या बचत बेहद कम या नहीं के बराबर है, तो फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कर्ज पर ब्याज दर क्या है और निवेश पर क्या। ऐसी स्थिति में उसे कर्ज जारी रखने और किसी भी सूरत में थोड़ी-बहुत बचत करने की जरूरत रहती है। ऐसी स्थिति में इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि बचत के निवेश से कितना कम या ज्यादा ब्याज मिलता है। 

अगर आप खुद को ऐसी परिस्थिति में पाते हैं, तो सबसे जरूरी यह होता है कि लोन भले ही कुछ दिन और चले, लेकिन आपात स्थिति के लिए आपके हाथ में कुछ पैसे हों। ऐसे मौकों के लिए रखी गई रकम के सामने किसी तरह की ब्याज दर का कोई मतलब नहीं रह जाता, क्योंकि उसका कोई विकल्प नहीं है।

(लेखक वैल्‍यू रिसर्च के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.