Move to Jagran APP

ग्रामीण शहरों की ओर पलायन के रुख में आ रहा है बदलाव, विकास का बदला रुख

बुनियादी सुविधाएं बढ़ने से विकास की धारा शहरों से होते हुए अब गांवों की ओर रुख कर रही है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sat, 01 Sep 2018 11:07 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 12:46 PM (IST)
ग्रामीण शहरों की ओर पलायन के रुख में आ रहा है बदलाव, विकास का बदला रुख
ग्रामीण शहरों की ओर पलायन के रुख में आ रहा है बदलाव, विकास का बदला रुख

असली भारत गांवों में ही बसता है जिसमें देश की करीब 70 फीसद आबादी रहती है। पिछले कुछ वर्षो से देश में शहरीकरण बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। रोजी-रोटी के बेहतर अवसरों की वजह से ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। लेकिन इस रुख में अब बदलाव आ रहा है। सरकार की सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी उज्ज्वला, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत और सौभाग्य जैसी योजनाओं से ग्रामीणों के लिए उत्प्रेरक का काम कर रही हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय में अच्छा इजाफा देखने को मिला है।

loksabha election banner

बुनियादी सुविधाएं बढ़ने से विकास की धारा शहरों से होते हुए अब गांवों की ओर रुख कर रही है। शहरीकरण की चमक बढ़ने के बावजूद वर्ष तक 2050 देश की ग्रामीण क्षेत्र की आबादी 50 फीसद के स्तर पर बनी रहेगी। दरअसल, भारत उन चुनिंदा देशों में शुमार है जहां ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में भारी अंतर है। शहरी क्षेत्र देश के प्रगतिशील और विकासशील समाज का प्रतिनिधित्व करता है। इस क्षेत्र का राष्ट्रीय आय में 55 फीसद का योगदान है जबिक ग्रामीण क्षेत्र पिछड़े और आदिवासी समाज को दर्शाता है जो गरीबी में जीवनयापन कर रही है। देश की यह दोहरी अर्थव्यवस्था समग्र विकास और इसके पांच खरब डालर के बनने की राह बड़ी बाधा साबित हो रही है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के विकास में तेजी लाकर गांव और शहर के बीच की खाई को जल्द से जल्द पाटने की जरूरत है। इसके बिना भारत के विकसित देश बनने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा।

इसमें कोई दोराय नहीं कि ग्रामीण क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि रोजी-रोटी का सबसे बड़ा जरिया है। वर्ष 2011 की कृषि जनगणना के अनुसार 61 फीसद से ज्यादा की ग्रामीण आबादी खेतीबाड़ी पर निर्भर है जो कारखाना क्षेत्र में कार्यरत 4.1 फीसद आबादी की तुलना में कई गुना ज्यादा है। आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घटकर 14 फीसद पर आ गया जो वर्ष 1951 में 51 फीसद था। इससे संकेत मिलता है कि फिलहाल कृषि क्षेत्र रोजगार तो बड़ी आबादी को दे रहा है लेकिन इसकी उत्पादकता काफी कम है।

राष्ट्रीय आय में ग्रामीणों का योगदान बढ़ाने के लिए नई प्रौद्योगिकी के जरिए कृषि से जुड़ी सुविधाएं बढ़ाने की सख्त जरूरत है। इसके अलावा साक्षरता दर में सुधार और कृषि व अन्य क्षेत्रों के श्रमिकों के आय के बीच संतुलन बनाने की दरकार है। हकीकत यह है कि खेतिहर मजदूर की तुलना में शहरी श्रमिक की औसत आय तीन गुना ज्यादा है। इस विभेद को दूर करने के लिए सरकार कौशल विकास अभियान चला रही है लेकिन मौजूदा रफ्तार को देखते हुए यह विभेद दूर हो पाएगा इसके कम ही आसार हैं। इसके लिए सरकार को और कारगर उपाय करने होंगे।

हालांकि पिछले कुछ वर्षो में ग्रामीण क्षेत्र को गरीबी से उबारने के लिए कई आकषर्क योजनाएं शुरू की गई हैं। इसके तहत कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड और फसल बीमा योजनाओं के अच्छे परिणाम दिख रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के समग्र विकास के लिए शुरू की गई समग्र शिक्षा एवं साक्षर भारत जैसी योजनाएं आगे चलकर देश के विकास में मील का पत्थर साबित होंगी। इससे ग्रामीण साक्षरता में भारी सुधार आने की उम्मीद है। यह सर्वविदित है कि ग्रामीणों की आय का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न प्रकार की बीमारियों का इलाज कराने में ही खर्च हो जाता है। स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं के साथ ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार लाने की अच्छी कोशिश की जा रही है। देश में कुपोषण और डायरिया की वजह से हर साल लगभग तीन लाख बच्चों की मौत होती है।

राष्ट्रीय बाल स्वच्छता मिशन इस समस्या पर काबू पाने में उपयोगी साबित हो रहा है। इस माह 25 सितम्बर से शुरू हो रही आयुष्मान योजना में पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा कवर मिलने से 50 करोड़ लोग स्वास्थ्य सुरक्षा के दायरे में आ जाएंगे। इसस समय पर उपचार मिलने में मदद मिलेगी साथ ही पैसे की बचत भी होगी। ऐसे में आयुष्मान मोदी सरकार के लिए मनरेगा साबित हो सकती है। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार और शिथिलता को लेकर तमाम तरह के मीन-मेख निकाले जा सकते हैं लेकिन यह उम्मीद जरूर कर सकते हैं आयुष्मान योजना से ग्रामीणों की सेहत और समृद्धि में सुधार आएगा।

लोकसभा के आसन्न चुनावों को देखते हुए सरकार अब स्टार्टअप इंडिया, दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, कौशल भारत और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को बढ़ावा दे रही है। देश के विकास के लिए ग्रामीण युवाओं के कौशल विकास, लघु एवं कुटीर उद्योगों नए कारोबार के नए विचारों को प्रोत्साहन अच्छी पहल साबित होगी। सरकार के आर्थिक सुधारों की बात करें तो इनके सकारात्मक परिणाम स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले चार वित्तीय वर्षो में देश की औसत प्रति व्यक्ति आय तेजी से बढ़ी है। हालांकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय के बीच अब भी बड़ा अंतर बना हुआ है।

सरकार का लक्ष्य वर्ष 2015-16 के आधार पर वर्ष 2022-23 तक ग्रामीण आय को दोगुना करना है। फिलहाल प्रौद्योगिकी के जरिए कृषि पैदावार बढ़ाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। नई प्रौद्योगिकी से श्रम, मजदूरी और लागत घटाने में मदद मिल रही है। जाहिर है कृषि उत्पादन की तुलना में किसानों की आय ऊंची दर से बढ़ेगी। एक मोटे अनुमान के तौर पर उपज के वाजिब दाम, फसलों का कुशल प्रबंधन और जिंसों के उचित भंडारण जैसे उपायों के जरिए किसानों की आय में एक तिहाई वृद्धि दर्ज की जा सकती है। इसके लिए कृषि बाजार और भूमि के अनुबंध की प्रक्रिया में बड़े बदलाव की जरूरत है। हालांकि इस लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते हुए सरकार ने आनलाइन राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) की व्यवस्था शुरू की है।

शुरुआती दौर किसानों की इस बाजार में कोई खास रुचि नहीं थी लेकिन अब इसमें उनका रुझान बढ़ रहा है। किसी व्यापारी को देश के दूरदराज इलाके से फसल खरीदने की सुविधा मिलने से किसानों को बेहतर दाम मिलने लगे हैं। इसी का नतीजा है कि बिहार के दरभंगा के किसान को अपने मखाने बेचने के लिए दिल्ली अथवा हैदराबाद नहीं जाना पड़ता। आनलाइन दर्ज होने पर अब व्यापारी उससे खुद ही संपर्क करने लगे हैं। यह सुविधा मिलने से किसान को एक और बड़ा फायदा यह मिला है कि अब वह अपनी उपज औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर नहीं है। शेयर बाजार की तर्ज पर इच्छा के माफिक भाव मिलने पर ही सौदे की डील पक्की होगी।

देश में नई सड़कों और राजमार्गों का निर्माण अब 27 किलोमीटर प्रतिदिन के स्तर पर पहुंच गया है। दूरदराज के खेतों के सड़कों से जुड़ने से कृषि उपज की त्वरित आपूर्ति का विकल्प मिल गया है। इसी का नतीजा है कि वालमार्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब किसान के खेत पर पहुंच कर उसके उत्पादों को खरीद रही हैं। कृषि क्षेत्र के लिए इसे बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आम चुनाव से पहले सरकार ग्रामीण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए कुछ और उपाय करेगी। लेकिन अभी ऐसा नहीं कह सकते कि सबकुछ अच्छा हो गया है।

सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर काफी ऊंची बनी हुई है। गरीबी और कर्ज न चुका पाने के कारण किसान अब भी आत्महत्याएं कर रहे हैं। कृषि आय का मुख्य स्रेत होने के बावजूद जरूरत के मुताबिक उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। किसानों को खेतीबाड़ी के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी और पर्याप्त पूंजी नहीं मिल पा रही है। इस क्षेत्र में निजी निवेश आकषिर्त करने के लिए उदारीकरण की जरूरत है। यदि सरकार इस दिशा में आगे बढ़ती है तो गांवों की गरीबी निश्चित तौर पर दूर सकती है।

(इस लेख के लेखक स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी के सीईओ हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.