Move to Jagran APP

New Year 2022: कैसा रहेगा नया साल, कहां निवेश पर मिलेगा कितना रिटर्न

बीते कुछ समय में बाजारों में जिस तरह का रिटर्न देखा गया है उसके हिसाब से अब से लेकर मध्यावधि के निकट तक रिटर्न की उम्मीदों को कम करना उचित होगा। टॉप-डाउन मार्केट से बॉटम अप अप्रोच अपेक्षित होगा और सही स्टॉक/असेट का चुनाव

By NiteshEdited By: Published: Thu, 30 Dec 2021 04:22 PM (IST)Updated: Thu, 30 Dec 2021 04:22 PM (IST)
New Year 2022: कैसा रहेगा नया साल, कहां निवेश पर मिलेगा कितना रिटर्न
New Year 2022 How will the new year be where will you get the return on investment

अजीत मेनन। अगर हम 2021 को (या पिछले 21 महीने और उसके बाद) मुड़कर देखें तो चार्ल्स डिकिंस के उपन्यास –ए टेल आफ टू सिटीज- स्थिति को बेहतर तरीके से दिखाता नजर आता हैः ”यह सबसे बेहतर दौर था, यह सबसे बुरा दौर था।”(यह ज्ञान का दौर था, यह मूर्खता का दौर था, यह विश्वास का दौर था, यह अविश्वास का दौर था, यह प्रकाश का दौर था, यह अंधकार का समय था, यह उम्मीदों का वसंत था, यह निराशा की सर्द थी।)

loksabha election banner

हमने संपत्ति के मूल्य और आर्थिक स्थिति के बीच इतना तेज विचलन कभी नहीं देखा। इसके पहले के ज्यादातर झटके वित्तीय प्रकृति के थे। ऐसी अवधि रहती थी, जिसमें करेक्शन व रिकवरी होती थी। इस बार यह स्वास्थ्य और मेडिकल से जुड़ा मामला था और दुनिया ने इस तरह से प्रतिक्रिया दी, जैसी किसी वैश्विक वित्तीय संकट के बाद दी जाती है। उदाहरण के लिए, नकदी/आसान धन मुहैया कराना। इसकी वजह से थोड़ी अवधि के लिए तेज गिरावट के बाद वैश्विक संपत्ति की कीमतें (सभी श्रेणियों में) ऊपर गई हैं। हम इसकी शिकायत नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प है कि वास्तव में स्थिति क्या है।

अगर आर्थिक दृष्टिकोण से देखेंतो मुख्य खतरा महंगाई दर में बढ़ोतरी और आने वाले दिनों में ब्याज दरें बढ़ने को लेकर है, जिससे आसान नकदी का वातावरण खत्म होगा। महंगाई दर पर अस्थायी या लगातार चल रही वैश्विक बहस अभी थमी नहीं है और स्थिति पूर्ववत होने तक कोई भी इसे जारी रख सकता है। बहरहाल बढ़ती महंगाई दर, बढ़ी ब्याज दरें, मौद्रिक नीतियों में बदलाव और उसे सख्त किए जाने से भारत सहित सभी उभरते बाजारों को परेशानी हो सकती है।

खासकर भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो हम वैश्विक वातावरण को लेकर निरपेक्ष नहीं हैं, लेकिन कुछ चीजें अलग हैं- 1) हम अभी भी आंशिक रूप से परिवर्तनीय पूंजी खाते वाले देश हैं और इसलिए वैश्विक झटकों से थोड़ा कम प्रभावित होते हैं। 2) घरेलू क्षेत्र जैसे रियल एस्टेट और औद्योगिक/ विनिर्माण/ पूंजीगत व्यय जैसे भारी क्षेत्र पिछले एक दशक से नींद में थे, जो अब चलते फिरते नजर आ रहे हैं। 3) चीन प्लस वन रणनीति अगर आगे और मजबूती पाती है, तो इससे भारत जैसे देशों को मदद मिलेगी और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को भी इसका फायदा मिल सकता है। 

बीते कुछ समय में बाजारों में जिस तरह का रिटर्न देखा गया है, उसके हिसाब से अब से लेकर मध्यावधि के निकट तक रिटर्न की उम्मीदों को कम करना उचित होगा। टॉप-डाउन मार्केट से बॉटम अप अप्रोच अपेक्षित होगा और सही स्टॉक/असेट का चुनाव और उसका आवंटन प्रमुख डिफरेंसिएटर साबित होगा।

रिटर्न की गति और वृद्धि सामान्य होना प्रमुख संकेतक हैं। हालांकि हाई फ्रीक्वेंसी इंडिकेटर्स में सुधार हो रहा है और कांटेक्ट आधारित सेवाओं व शहरी खपत में वृद्धि हुई है। हालांकि ऐसा लगता है कि ग्रामीण इलाकों में खपत अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है। हाल के समय में ओमीक्रोन का उभार चिंता का विषय है। बहरहाल इस मोड़ पर इसके प्रभाव का आकलन करना जल्दबाजी होगी कि इसका कितना प्रसार होगा, यह कितना गंभीर होगा या मौजूदा वैक्सीन का इस पर कितना असर होगा। हालांकि शुरुआती उहापोह के बाद अब दुनिया भर में पहले की तुलना में इसके कारण गतिरोध कम रहने की उम्मीद है। अब यह मान लिया जाना चाहिए कि वायरस (किसी भी रूप में) यहां बना रहेगा और सबसे अच्छी बात यह होगी कि यह एक महामारी से रूप में नहीं, बल्कि एक स्थानीय वायरस के रूप में होगा, जिसके साथ जिंदगी सामान्य रूप से चलती रहेगी। 

अर्थव्यवस्था पर चर्चा और बहस जारी रखी जा सकती है, लेकिन भविष्य के संदर्भ में होने वाले बदलावों से अवगत रहना जरूरी है। मेरा विश्वास है कि पिछले कुछ दशक में बदलाव की गति अभूतपूर्व रही है और हम इंसानों ने इसे अच्छी तरह से इसे अपनाया है। बहरहाल आने वाले वर्षों बदलाव की रफ्तार इससे कहीं तेज हो सकती है। हम इस समय तमाम नए बदलाव और कुछ पुराने में नई अवधाऱणाएं जैसे मेटावर्स, ब्लॉकचेन, क्रिप्टो, एनएफटी, आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, क्लाइमेट चेंज आदि देख रहे हैं। इस तरह के शब्दों की सूची लगातार बढ़ रही है। सभी या इनमें से कोई भी कितना व्यापक रूप लेता है, इसे लेकर मैं निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता, हालांकि एक चीज तय है कि हमें बड़े पैमाने पर आने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त रूप से जागरूक और फुर्तीला होना चाहिए। उनके प्रति अनुकूल होने की क्षमता, श्रेष्ठता और सामान्यता के बीच प्रमुख डिफरेंशिएटर होगी। अगर निवेश की दुनिया का उदाहरण लें तो नए दौर की कंपनियों, उनके कारोबारी मॉडल पर उत्साह के साथ काम हो रहा है। पारंपरिक तौर तरीके से देखने पर वे निवेश के योग्य नहीं रह जाएंगी और उनके विशाल आकार को देखते हुए उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। तेजी से बदलते वातावरण में हो रही उहापोह में से यह सिर्फ एक है। मैं ऐसी स्थिति में डॉ वायन डायर के एक कथन का उल्लेख करूंगा- आप किसी चीज को जिस नजरिए से देखते हैं, उसमें बदलाव करें, आप जिन चीजों को देखते हैं, वे बदलती रहती हैं।

लेखक, पीजीआईएम इंडिया म्युचुअल फंड के सीईओ हैं, लेख में व्यक्त उनके विचार निजी हैं


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.