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बाजार की चाल नहीं, अपने निवेश की गुणवत्ता देखिए

सबसे सही कदम है कि ऐसे समय में खरीद मत करें जब आपको या अन्य लोगों को लगता है कि बाजार तेजी की ओर जाने वाला है। निवेशक को निवेश की गुणवत्ता के हिसाब से फैसला लेना चाहिए

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 01:40 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 01:08 PM (IST)
बाजार की चाल नहीं, अपने निवेश की गुणवत्ता देखिए
बाजार की चाल नहीं, अपने निवेश की गुणवत्ता देखिए

एक पुराना चुटकुला है। शेयर बाजार में एक नौसिखिए निवेशक ने किसी पुराने अनुभवी निवेशक से पूछा, ‘स्टॉक मार्केट से पैसा कैसे कमा सकता हूं?’ उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘बहुत आसान है। जब बाजार नीचे आए तो खरीदो और जैसे ही ऊपर जाए, बेच लो।’ नौसिखिए का अगला सवाल था, ‘आपकी बात सही है, लेकिन ऐसा होगा कैसे?’ अनुभवी निवेशक का उत्तर था, ‘यही समझना तो बहुत मुश्किल है। इसे ही समझने में तो स्टॉक मार्केट में पूरी जिंदगी लग जाती है।’

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यह एक अच्छा चुटकुला भले नहीं हो, लेकिन बात है बिलकुल सही। ‘नीचे पर खरीदो, ऊंचे पर बेचो’ का सबसे सामान्य सा अर्थ लगाया जाता है कि बाजार में निवेश तब करो, जब गिरावट का दौर हो। निवेशक और सलाहकार अक्सर यह आइडिया सरकाते रहते हैं, कि करेक्शन (जो कि एक बेहद एक मूर्खतापूर्ण धारणा है) का दौर निवेश के लिए सबसे अच्छा होता है। खासतौर पर वर्तमान के 20/20 वाले दौर में निवेशक और सलाहकार एक तरह से इस पर एकमत हो जाते हैं कि करेक्शन के मौके पर की गई खरीदारी हमेशा बेहतर रिटर्न देती है। प्रमाण के तौर पर कोई भी पीछे के आंकड़े उठाकर जांच सकता है कि गिरावट के दौर में खरीदी करने वाले निवेशकों ने तेजी के दौर में खरीदी करने वालों की तुलना में बेहतर रिटर्न पाया है। इस तरह की गणना निश्चित रूप से अच्छा उदाहरण हो सकती है।

अब सवाल दूसरा है। जब बाजार में करेक्शन हो रहा होता है और बाजार करेक्ट यानी सही हो चुका होता है (मैं इस अवधारणा को थोड़ा और आगे ले जा रहा हूं), आप यह कैसे जान पाएंगे कि अब इसमें और करेक्शन नहीं होने वाला? और अगर इसमें और बड़ा करेक्शन हो, तब क्या होगा? आपको इसके इनकरेक्ट यानी गलत होने के लिए कितना इंतजार करना होगा? ये तथ्य इस पूरी अवधारणा पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं। ऐसे में इसका सबसे करेक्ट यानी सही उत्तर यही है कि आप जब भी भविष्य का अनुमान लगाने का प्रयास करते हैं, वह किसी तुक्के से ज्यादा नहीं होता। जब हम यह कहते हैं कि गिरावट के दौर में खरीदारी करनी चाहिए, तब हम असल में यह कह रहे होते हैं कि जब बाजार चढ़ रहा हो, तब निवेश नहीं करना चाहिए। इस तरह की सलाह निवेश के पूरे उद्देश्य को ही खत्म कर देती है।

सभी बातें बहुत तार्किक और समझदारी भरी लगती हैं। यह भी बहुत तार्किक लगता है कि मार्केट में गिरावट के वक्त स्टॉक खरीदे जाएं या इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश किया जाए। अब यह तर्क भी दिया जा सकता है कि अगर गिरावट के दौर में खरीदना अच्छा विचार है, तो तेजी के दौर में बेचना भी अच्छा विचार ही माना जाना चाहिए। दोनों ही बातों से लगता है कि हमें अच्छा रिटर्न मिलेगा।

असल में ऐसा नहीं है। सबसे सही कदम है कि ऐसे समय में खरीद मत करें जब आपको या अन्य लोगों को लगता है कि बाजार तेजी की ओर जाने वाला है। निवेशक को निवेश की गुणवत्ता के हिसाब से फैसला लेना चाहिए। खरीदते समय यह देखना चाहिए कि वह स्टॉक अपनी स्वाभाविक कीमत के इर्द-गिर्द है या नहीं। कभी उस स्टॉक के या बाजार के भविष्य का अंदाजा लगाकर फैसला नहीं करना चाहिए। एक सदी से ज्यादा का अनुभव यही बताता है कि बाजार में उतार-चढ़ाव चलता रहता है।

पेशेवर लोग तो जैसा चाहते हैं, वैसा कर सकते हैं, लेकिन म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए रास्ता एकदम स्पष्ट है। उन्हें लंबी अवधि में अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले तीन से चार म्यूचुअल फंड का चुनाव करना चाहिए और एसआइपी की मदद से सतत रूप से उनमें निवेश करना चाहिए। मार्केट के उतार-चढ़ाव से परेशान नहीं होना चाहिए। म्यूचुअल फंड में एसआइपी या किसी भी अन्य तरीके से निवेश का सीधा सा मतलब होता है कि बाजार के बुरे दौर में भी निवेश जारी रहे। आप भविष्य नहीं देख सकते। आप यह भी नहीं जान सकते कि बाजार कब करेक्ट या इनकरेक्ट होगा। आप नहीं जानते कि इनमें से कुछ भी कब अचानक हो जाएगा। भरोसे के साथ आप जो बात जानते हैं, वह यही है कि सतत रूप से कुछ वर्षो में इक्विटी में किया हुआ निवेश बड़े उतार-चढ़ाव के साथ शानदार रिटर्न देगा। बड़े रिटर्न और बड़े उतार-चढ़ाव के इस संयोग का लाभ उठाने का सही तरीका यही है कि लगातार निवेश करते रहिए। बिना रुके निवेश करना ही सही रास्ता है।

(इस लेख के लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार हैं)


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