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बीमा कंपनियां किस तरह तैयार करती हैं कोई नया इंश्योरेंस प्रोडक्ट? एक्सपर्ट से जानिए पूरी प्रक्रिया

किसी भी प्रोडक्ट को मार्केट में लाने के लिए उसका कॉन्सेप्ट यानी अवधारणा बनानी पड़ती है। बीमा कंपनियां लोगों की जरूरतों को समझने और मौजूदा हालात में इन जरूरतों में मौजूद स्पेस का बारीकी से अध्ययन करती हैं।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Sun, 21 Mar 2021 09:07 AM (IST)Updated: Sun, 21 Mar 2021 07:23 PM (IST)
बीमा कंपनियां किस तरह तैयार करती हैं कोई नया इंश्योरेंस प्रोडक्ट? एक्सपर्ट से जानिए पूरी प्रक्रिया
इंश्योरेंस के लिए प्रतीकात्मक तस्वीर P C : Pixabay

नई दिल्ली, संजय दत्ता। लोगों की बदलती जरूरत के मुताबिक बीमा कंपनियां बाजार में नए प्रोडक्ट लाती रहती हैं। इनसे बीमा कंपनियों को बाजार में प्रासंगिक बने रहने में मदद मिलती है। साथ ही वे अपने रेवेन्यू में भी इजाफा करती रहती हैं और बाजार में उनकी स्थिति भी मजबूत बनी रहती है। हालांकि, किसी प्रोडक्ट को विकसित करने या बनाने में कई चीजों का ध्यान रखना पड़ता है, इस लेख में हम उन्हीं प्रक्रियाओं का जिक्र करेंगे।

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बाजार का अध्ययन

किसी भी प्रोडक्ट को मार्केट में लाने के लिए उसका कॉन्सेप्ट यानी अवधारणा बनानी पड़ती है। बीमा कंपनियां लोगों की जरूरतों को समझने और मौजूदा हालात में इन जरूरतों में मौजूद स्पेस का बारीकी से अध्ययन करती हैं। बाजार का अध्ययन प्राइमरी और सेकेंडरी रिसर्च के जरिये किया जाता है। इस सिलसिले में नीचे दिए गए सवालों के जवाब तलाशे जाते हैं।

- बाजार में किस तरह के प्रोडक्ट और ऑफर पहले से मौजूद हैं।

- नए प्रोडक्ट या ऑफर में ग्राहक क्या तलाश रहे हैं। ये उनकी जरूरतों को किस तरह से पूरी कर रहे हैं।

- कंपीटिटर कंपनियां उनकी तरह ही और कौन से प्रोडक्ट ऑफर कर रही हैं? 

- रेवेन्यू और मुनाफे के हिसाब से नए प्रोडक्ट या ऑफर की मार्केट साइज क्या है?

- क्या यह प्रोडक्ट बाजार के लिए अनूठा होगा? अगर हां, तो उपभोक्ताओं और उद्योग पर इसका क्या प्रभाव होगा?

दरअसल ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करना आखिरी लक्ष्य होता है। इसलिए ऐसे प्रोडक्ट को मार्केट में बढ़ावा देना आसान होता है, जो ग्राहकों की दिक्कतों को समझ कर उसकी जरूरतों को पूरा करें। मार्केट स्टडी के बाद जो डेटा इकट्ठा किया जाता है, उसका इस्तेमाल टारगेट ऑडियंस ( जिस तरह के ग्राहकों तक पहुंचने की आप जरूरत  समझते हैं) की जरूरतों के हिसाब से प्रोडक्ट बनाने में किया जाता है।

जोखिम को समझिये

किसी बीमा प्रोडक्ट को तैयार करने की दिशा में यह अगला कदम है। इंश्योरर्स इससे प्रोडक्ट के साथ जुड़े जोखिम की पहचान करते हैं। हो सकता है कि जिस आबादी को लक्ष्य करके यह प्रोडक्ट उतारा गया हो वह इंश्योरर के लिए मुनाफा देने वाला न साबित हो। इसलिए बाजार में लंबे समय तक टिके रहने वाले प्रोडक्ट को उतारने की रणनीति होनी चाहिए।

अगर किसी प्लान (बीमा प्रोडक्ट) को बंद कर दिया जाता है या वापस ले लिया जाता है, तो इससे ग्राहक की भावनाएं आहत होती हैं और इंश्योरर की ब्रांड इमेज को धक्का लगता है। इसके अलावा किसी नए प्रोडक्ट को डेवलप करने में लगा समय, प्रयास और पैसा बर्बाद चला जाता है। अगर प्रोडक्ट बाजार में ज्यादा वक्त नहीं चल पाता है, तो फिर यह कंपनी के रेवेन्यू को नुकसान पहुंचाता है।

कीमत का निर्धारण

प्रोडक्ट से जुड़े जोखिम को समझने के बाद उसकी कीमत तय करने की बारी आती है। बीमा कंपनियों के लिए यह सबसे चुनौतीपूर्ण काम है। दूसरे कारोबारों में प्रोडक्ट की कीमत उसके संसाधनों की लागत और प्रॉफिट मार्जिन के आधार पर तय की जाती है। लेकिन इंश्योरर्स को अपने प्रोडक्ट को बेचने के शुरुआती दौर में लागत का पता नहीं चल पाता।

प्रोडक्ट की वास्तविक लागत का पता तब चलता है, जब क्लेम का भुगतान होता है। इसलिए इंश्योरर ऐसे ऐतिहासक डेटा पर भरोसा करते हैं, जो भविष्य के जोखिम का ट्रेंड बता सकें। इसी के आधार पर वे प्रीमियम और अपने प्रोडक्ट की कीमत तय करते हैं। यह ध्यान रहे कि मार्केट में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए प्राइस ऑप्टिमाइजेशन अनिवार्य है।

मंजूरी के लिए IRDAI  में फाइलिंग

किसी भी इंश्योरेंस को बाजार में लॉन्च करने से पहले इसे इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (IRDAI) में फाइल करना और उसकी मंजूरी लेना जरूरी होता है। यह ध्यान रहे कि इसे IRDAI में एक निर्धारित फॉर्मेट में ही फाइल करना होता है। इस फॉर्मेट में इस प्रोडक्ट की हर चीज को समझाना जरूरी होता है। इसमें प्रोडक्ट की खासियतों से लेकर, टार्गेट मार्केट और डिस्ट्रीब्यूशन चैनल हर चीज का ब्योरा देना पड़ता है। जब सभी मानदंड पूरे होते हैं, तभी किसी प्रोडक्ट को मंजूरी मिलती है। आईआरडीएआई की मंजूरी के बाद इंश्योरेंस कंपनियां लॉन्चिंग के लिए मार्केटिंग की पहल करते हैं।

और अंत में..

प्रोडक्ट विकसित करना एक जटिल प्रक्रिया है। नए प्रोडक्ट या नई ऑफरिंग से पहले इंश्योरर्स को कई आतंरिक और बाहरी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। इसके बाहरी पहलुओं में डिजिटल डिस्ट्रीब्यूशन, किसी भी समय और कहीं भी सर्विस की उम्मीद शामिल है। वहीं आतंरिक पहलुओं में बढ़ा हुआ मुनाफा और डिस्ट्रीब्यूशन चैनल डाइवर्सिफिकेशन जैसे पहलू शामिल हैं।

(लेखक आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस में क्लेम्स, अंडरराइटिंग और री-इंश्योरेंस के प्रमुख हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।) 


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