Move to Jagran APP

कांटों भरी है हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की राह

होमलोन के बाजार में एचएफसी अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रही हैं लेकिन वित्तीय तरलता की कमी और संपत्तियों की गुणवत्ता इनकी प्रमुख चिंताएं हैं

By Praveen DwivediEdited By: Published: Thu, 22 Nov 2018 03:07 PM (IST)Updated: Sun, 23 Dec 2018 06:28 PM (IST)
कांटों भरी है हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की राह
कांटों भरी है हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की राह

हाल के दिनों में भारतीय बाजार में हुई उठापटक के दौरान हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। इस क्षेत्र में विकास की तमाम संभावनाएं हैं लेकिन आने वाले दिनों में इसकी राह मुश्किलों भरी है।

prime article banner

पिछले दिनों विभिन्न आर्थिक कारकों की वजह से भारतीय बाजार में भारी हाहाकार रहा है। इस दरम्यान हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। देश के इस सेक्टर में ऐसे कई सारथी मौजूद हैं जिनमें इसकी रफ्तार को कई गुना तक बढ़ाने क्षमता है लेकिन अभी उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। मौजूदा परिदृश्य में देखें तो इस क्षेत्र की समस्या जल्द दूर होने वाली नहीं है। इसके आगे का सफर अभी कांटों भरा साबित हो सकता है।

दरअसल, वित्त से जुड़ी कंपनियों का कारोबार इसकी साख से जुड़ा होता है। इस साख को बनाने में बरसों का समय लग जाता है जबकि मामूली सी चूक से यह तार-तार होजाती है। पिछले दिनों कुछ कंपनियों के साथ भुगतान में चूक के कारण ही इन्हें भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। होम फाइनेंस कंपनियों का मुख्य कारोबार बैंकों और बांड के जरिए पूंजी जुटाकर जरूरत मंदों को कर्ज बांटना होता है। इन कंपनियों की बैंकों की तुलना में पहुंच ज्यादा मजबूत होती है। इसीलिए इनका कारोबार तेजी से बढ़ता है। व्यापक नेटवर्क की वजह से इनका कर्ज वसूली का अनुपात भी बेहतर होता है। अब इनका कारोबार बुरी तरह से कुंद हो गया है जबकि होमलोन के कारोबार में वृद्धि की भारी संभावनाएं हैं।

कुछ ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से मकानों की दबी हुई मांग बढ़ती जा रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में होमलोन का योगदान महज छह फीसद है जबकि घरेलू क्षेत्र का सकल कर्ज 11 फीसद के स्तर पर है। चीन का घरेलू क्षेत्र के सकल कर्ज का योगदान 48 फीसद, इंडोनेशिया का 17 फीसद और थाईलैंड के 68 फीसद की तुलना में यह काफी कम है। इसी तरह लोग अपनी बचत दर की क्षमता के मुकाबले सिर्फ 11 फीसद ही कर्ज ले रहे हैं जो जीडीपी के 16.5 की औसत क्षमता की तुलना में काफी कम है। सकल कर्ज में होमलोन के अलावा क्रेडिट कार्ड कर्ज, वाहन कर्ज इत्यादि शामिल होते हैं।

अनुमानों के अनुसार भारत में 1.9 करोड़ घरों की कमी है तथा वर्ष 2050 तक देश के शहरी क्षेत्र में 40 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे। इससे साफ जाहिर होता है कि घरों की मांग और शहरीकरण होमलोन के कारोबार को कैसे बढ़ा सकते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि प्रापर्टी का कारोबार नोटबंदी और रीयल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) लागू होने से काफी प्रभावित हुआ है लेकिन इन सुधारों का नकारात्मक असर अब खत्म हो चुका है। इससे यह क्षेत्र फिर से पटरी पर आ रहा है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबित नोटबंदी के बाद बिक्री और लांच क्रमश: 1.24 लाख और 92,000 इकाइयों के उच्चतम स्तर पर हैं जोहोमलोन की मांग में इजाफा करेंगे। होमलोन प्रदान करने वाली कंपनियों को दो श्रेणियों- बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) में बांटा जा सकता है। इस क्षेत्र में बैंक पांरपरिक रूप से होमलोन मुहैया करा रहे हैं जबकि एनबीएफसी विशेष रूप से आवास वित्त कंपनियों(एचएफसी) ने भी अब अपनी अच्छी जगह बना ली है।

होमलोन के बाजार में एचएफसी अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रही हैं लेकिन वित्तीय तरलता की कमी और संपत्तियों की गुणवत्ता इनकी प्रमुख चिंताएं हैं। ये कंपनियां ग्राहकों को लंबी अवधि का कर्ज देती हैं लेकिन इन्हें वाणिज्यिक पत्रों जैसे विकल्पों के जरिए अल्प अवधि के लिए ही पूंजी मिल पाती है। जाहिर है इन्हें लगातार पुनर्वित्त की जरूरत पड़ती है। तंत्र में तरलता की कमी की स्थिति में इनका मार्जिन काफी कम हो जाता है। इससे फंसा कर्ज (एनपीए)बढ़ने और भुगतान में चूक की आशंका बढ़ जाती है। पिछले दिनों आरबीआई की नीतिगत दरों में वृद्धि के एचएफसी केमार्जिन पर दबाव बढ़ रहा है। आईएल एंड एफएस के भुगतान में चूक और म्युचुअल फंडों के ऊंचे रिटर्न की वाणिज्यिक प्रपत्रों की बिक्री की घटनाओं से यह दबाव और बढ़ गया है।

(इस लेख के लेखक स्टाक ब्रोकिंग, कार्वी के सीईओ राजीव सिंह हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.