फसल बीमा से किसानों को फायदा
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने देश में फसल बीमा की तस्वीर ही बदल दी है।
(आलोक अग्रवाल,एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड जनरल)
नई दिल्ली (जेएनएन)। भारत के लिए कृषि बीमा के संबंध में अनुभव उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। सरकार ने पिछले साल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की थी। इसने देश में फसल बीमा की तस्वीर ही बदल दी है। इसके जरिये सरकार ने फसल बीमा के दायरे को 50 फीसद तक बढ़ाने का प्रयास किया है। यह अभी मात्र 23 फीसद है। यहां यह बताना भी महत्वपूर्ण होगा कि अभी करीब 14 करोड़ किसानों में से फसल बीमा के दायरे में ज्यादातर वही किसान हैं जिन्होंने बैंकों से कृषि कर्ज लिया हुआ है।
खेती के जोखिम को कम करने के लिए फसल बीमा एक कारगर हथियार है। लिहाजा फसल बीमा योजना की सफलता और भी जरूरी हो जाती है ताकि देश के कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाया जा सके और किसान फसल बर्बाद होने के नुकसानों से बच सकें। यह स्कीम पिछली सभी स्कीमों से बेहतर है। सरकार ने इसके तहत इंश्योरेंस प्रीमियम पर सब्सिडी की भी कोई सीमा नहीं रखी है। इसके चलते किसानों के लिए प्रीमियम खरीफ फसलों के लिए बीमित राशि का दो फीसद और रबी की फसलों के लिए डेढ़ फीसद तक आ गया है।
योजना के तहत नुकसान से रक्षा का प्रावधान ही कई तरह से आर्थिक मदद पहुंचा देता है। बैंक भी कृषि बीमा को किसान के निवेश के सुरक्षा कवच के तौर पर देखते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे किसानों को आधुनिक तकनीक और कृषि में नए प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही ग्रामीण विकास में गहन निवेश होता है। किसानों के लिए बेहतर कर्ज की सुविधाएं पैदा होती हैं और किसानों को नकद फसलों में विशेषज्ञता प्राप्त करने का मौका मिलता है। और अंत में सबसे बड़ा फायदा देश को है जो खाद्य सुरक्षा की तरफ बढ़ता है।
किसानों को उन्हें हुए नुकसान की भरपाई के कई अन्य सकारात्मक आर्थिक लाभ भी हैं। पहला तो यह कि फसल बीमा के तहत बर्बाद हुई फसल का मुआवजा मिलते ही किसान वापस खेती किसानी की तरफ बढ़ता है। इससे उसे नए बीज, पुराने कर्ज की अदायगी और नए कर्ज लेने की सुविधा मिलती है। इस सबका प्रभाव यह होता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पहिया फिर से चलने लगता है। जबकि इसकी अनुपस्थिति में किसान के सामने हताश बैठ जाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचता।
किसानी में हुए नुकसान का असर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी उठाना पड़ता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग कम हो जाती है। वाणिज्यिक, निजी यात्री वाहनों की खरीद घट जाती है। यही नहीं, किसानों की आमदनी नहीं होने का असर कंज्यूमर ड्यूरेबल और एफएमसीजी उत्पादों पर भी होता है। अतीत में सूचना फसल बीमा की राह में बड़ी बाधा थी। लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी ने अब इस बाधा को खत्म कर दिया है। इससे बीमा कंपनियों के लिए फसल बीमा की अंडरराइटिंग कराना आसान हो गया है।
आज बीमा कंपनियों को सेटेलाइट पर सारी जानकारी उपलब्ध है और स्मार्टफोन के जरिये पूरे देश से फसल की ताजा स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करना आसान हो गया है। भारत के लिए कृषि बीमा के संबंध में अनुभव उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। सरकार ने पिछले साल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की थी। इसने देश में फसल बीमा की तस्वीर ही बदल दी है। इसके जरिये सरकार ने फसल बीमा के दायरे को 50 फीसद तक बढ़ाने का प्रयास किया है। यह अभी मात्र 23 फीसद है। यहां यह बताना भी महत्वपूर्ण होगा कि अभी करीब 14 करोड़ किसानों में से फसल बीमा के दायरे में ज्यादातर वही किसान हैं जिन्होंने बैंकों से कृषि कर्ज लिया हुआ है।
खेती के जोखिम को कम करने के लिए फसल बीमा एक कारगर हथियार है। लिहाजा फसल बीमा योजना की सफलता और भी जरूरी हो जाती है ताकि देश के कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाया जा सके और किसान फसल बर्बाद होने के नुकसानों से बच सकें। यह स्कीम पिछली सभी स्कीमों से बेहतर है। सरकार ने इसके तहत इंश्योरेंस प्रीमियम पर सब्सिडी की भी कोई सीमा नहीं रखी है। इसके चलते किसानों के लिए प्रीमियम खरीफ फसलों के लिए बीमित राशि का दो फीसद और रबी की फसलों के लिए डेढ़ फीसद तक आ गया है।
योजना के तहत नुकसान से रक्षा का प्रावधान ही कई तरह से आर्थिक मदद पहुंचा देता है। बैंक भी कृषि बीमा को किसान के निवेश के सुरक्षा कवच के तौर पर देखते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे किसानों को आधुनिक तकनीक और कृषि में नए प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही ग्रामीण विकास में गहन निवेश होता है। किसानों के लिए बेहतर कर्ज की सुविधाएं पैदा होती हैं और किसानों को नकद फसलों में विशेषज्ञता प्राप्त करने का मौका मिलता है। और अंत में सबसे बड़ा फायदा देश को है जो खाद्य सुरक्षा की तरफ बढ़ता है।
किसानों को उन्हें हुए नुकसान की भरपाई के कई अन्य सकारात्मक आर्थिक लाभ भी हैं। पहला तो यह कि फसल बीमा के तहत बर्बाद हुई फसल का मुआवजा मिलते ही किसान वापस खेती किसानी की तरफ बढ़ता है। इससे उसे नए बीज, पुराने कर्ज की अदायगी और नए कर्ज लेने की सुविधा मिलती है। इस सबका प्रभाव यह होता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पहिया फिर से चलने लगता है। जबकि इसकी अनुपस्थिति में किसान के सामने हताश बैठ जाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचता।
किसानी में हुए नुकसान का असर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी उठाना पड़ता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग कम हो जाती है। वाणिज्यिक, निजी यात्री वाहनों की खरीद घट जाती है। यही नहीं, किसानों की आमदनी नहीं होने का असर कंज्यूमर ड्यूरेबल और एफएमसीजी उत्पादों पर भी होता है। अतीत में सूचना फसल बीमा की राह में बड़ी बाधा थी। लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी ने अब इस बाधा को खत्म कर दिया है। इससे बीमा कंपनियों के लिए फसल बीमा की अंडरराइटिंग कराना आसान हो गया है।
आज बीमा कंपनियों को सेटेलाइट पर सारी जानकारी उपलब्ध है और स्मार्टफोन के जरिये पूरे देश से फसल की ताजा स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करना आसान हो गया है। खेती से जुड़े खतरों को कम करने के लिए फसल बीमा कारगर उपाय है। इसलिए फसल बीमा योजना की सफलता और भी जरूरी हो जाती है। इससे कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाया जा सकेगा व किसान फसल बर्बाद होने के नुकसान से बच सकेंगे।
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