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म्‍युचुअल फंडों के जरिये विदेशी कंपनियों में निवेश कर कमाएं मुनाफा, पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन में भी है मददगार

म्युचुअल फंड योजनाओं में निवेशकों के पास विकल्प होता है कि वे कुछ निश्चित स्टॉकों में सीधे निवेश के लिए सक्रिय फंड का विकल्प चुनें या फंड के सक्रिय फंड का चयन करें जो अन्य देशों में स्थित अंतरराष्ट्रीय फंडों (यानी फीडर फंडों) में निवेश करते हैं।

By Manish MishraEdited By: Published: Fri, 17 Sep 2021 02:34 PM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 02:34 PM (IST)
म्‍युचुअल फंडों के जरिये विदेशी कंपनियों में निवेश कर कमाएं मुनाफा, पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन में भी है मददगार
Earn profit by investing in foreign companies through mutual funds (PC; pexels.com)

नई दिल्‍ली, सिद्धार्थ श्रीवास्तव। निवेश की दुनिया में “घरेलू पूर्वाग्रह” ऐसी चीज है, जिस पर सभी निवेशक ध्यान देते हैं। घरेलू पूर्वाग्रह से आशय घरेलू बाजार से चिपके रहने की प्रवृत्ति से है, जिससे निवेशक परिचित होते हैं। भारत के संदर्भ में देखें तो इसका आशय घरेलू भारतीय इक्विटी मार्केट में निवेश करने से है। वैश्विक रूप से निवेशकों ने इसका प्रबंधन शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए अमेरिका के निवेशकों का अमेरिकी शेयरों में औसत आवंटन 70 प्रतिशत है, वहीं भारत के निवेशकों का भारतीय शेयरों में औसत आवंन 100 प्रतिशत के करीब है।

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भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से है। हालांकि अभी भी विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भारत की हिस्सेदारी महज 3 प्रतिशत (2019) है और विश्व के कुल शेयर बाजार पूंजीकरण में इसकी हिस्सेदारी करीब 3 प्रतिशत (2018) है। आज की वैश्वीकरण की दुनिया में भारत के निवेशक पहले ही कई वैश्विक कंपनियों के ग्राहक हैं। ऐसे में पूरी तरह यह संभावना बनती है कि ये निवेशक विदेशी कंपनियों के निवेश पोर्टफोलियो का भी हिस्सा बनेंगे।

साथ ही वैश्विक बाजारों में उभरती तकनीकों और रोबोटिक, कृत्रिम मेधा, इलेक्ट्रिक वाहन, साइबर सुरक्षा, औद्योगिक ऑटोमेशन, क्लाउट कंप्यूटिंग, सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स, फिन-टेक आदि जैसी बढ़ते विषयों तक निवेशकों की पहुंच हो सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि ये विषय आने वाले वक्त में हमारे भविष्य को आकार देंगे और इसलिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण से वैश्विक निवेशकों के पोर्टफोलियों में ये जगह बना रहे हैं। भारत के शेयर बाजार इस समय ज्यादातर पुरानी अर्थव्यवस्था के विषयों के लिए जगह मुहैया करा रहे हैं, ऐसे में निवेशक को निवेश योग्य वैश्विक दुनिय़ा पर नजर रखने की जरूरत है, जिससे इन व्यापक धारणाओं में हिस्सा लिया जा सके। उन क्षेत्रों में धन लगाया जा सके, जिनसे हमारे जीने और काम करने के तरीके में बदलाव की उम्मीद है।

अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्र, निवेशकों के लिए कई तरह के निवेश के अवसर मुहैया कराते हैं। हर देश और इलाका विभिन्न विशिष्ट कारकों से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए ज्यादातर विकसित देश तकनीकी उन्नयन के हिसाब से बढ़त ले रहे हैं, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं, जैसे भारत, में जनसांख्यिकी से समर्थित भारी वृद्धि की संभावनाएं हैं। हर देश की ताकत और कमजोरी अलग अलग होती है, ऐसे में शेयर बाजार भी अलग तरह से व्यवहार करता है। ऐसे में एक भारतीय निवेशक को संपत्ति के सृजन के लिए बेहतर अवसरों पर नजर रखने की जरूरत है।

पिछले दशक में हमने देखा है कि भारत के शेयर बाजार बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले बाजार नहीं थे। भारत के रुपये के हिसाब से देखें तो पिछले 10 कैलेंडर साल में से 7 वर्षों में भारत के बाजारों की तुलना में अमेरिकी बाजार ने बेहतर प्रदर्शन किया है। इस तरह से जिन निवेशकों ने शुद्ध रूप से भारत के शेयर बाजारों में निवेश किया है, उनका प्रदर्शन उन निवेशकों की तुलना में कमतर रहेगा, जिन्होंने कुछ आवंटन अमेरिका के पोर्टफोलियों में किया था।

“अगर भारत का शेयर बाजार बेहतर प्रदर्शन नहीं करता तो क्या होगा?”, इससे जुड़े जोखिम के समाधान का सबसे बेहतरीन तरीका निवेश का वैश्विक विविधीकरण और वैश्विक अवसरों में हिस्सा लेना है।

यह सिर्फ संपत्ति का सृजन नहीं है। विविधीकरण के हिसाब से देखें तो ऐसा पाया गया है कि ज्यादातर वैश्विक इक्विटी बाजार साथ साथ नहीं चलते और यह भारत के शेयर बाजार से बहुत कम सह संबद्ध हैं। इसके अलावा जब भारतीय निवेशक विदेशी संपत्ति में निवेश करता है तो वह मुद्रा के उतार-चढ़ाव के संपर्क में आता है। अगर भारतीय मुद्रा गिरती है तो विदेशी संपत्ति बढ़ती है और भारतीय मुद्रा मजबूत होती है तो विदेशी संपत्ति घटती है। सामान्यतया भारत की मुद्रा विकसित देशों की मुद्राओं की तुलना में दीर्घावधि के हिसाब से गिरती है, क्योंकि विकसित बाजारों में भारत की तुलना में महंगाई दर कम बढ़ती है। इससे भी निवेशकों को मुनाफा होता है।

वैश्विक निवेश करने के लिए उपलब्ध साधनों में दो लोकप्रिय विकल्प सीधे निवेश और म्युचुअल फंड के हैं। भारत का निवेशक विदेशी बाजार से सीधे स्टॉक खरीद सकता है। तमाम भारतीय ब्रोकरों ने यह सुविधा देनी शुरू कर दी है। बहरहाल सीधे इक्विटी के माध्यम से निवेश 2,50,000 अमेरिकी डॉलर के एलआरएस की सीमा के अधीन होगा। साथ ही इस बात की संभावना है कि स्टॉक के पोर्टफोलियो को खरीदने में ज्यादा लागत और लेन देन की ज्यादा मात्रा की जरूरत पड़ेगी।

म्युचुअल फंड योजनाओं में निवेशकों के पास विकल्प होता है कि वे कुछ निश्चित स्टॉकों में सीधे निवेश के लिए सक्रिय फंड का विकल्प चुनें या फंड के सक्रिय फंड का चयन करें जो अन्य देशों में स्थित अंतरराष्ट्रीय फंडों (यानी फीडर फंडों) में निवेश करते हैं। या निष्क्रिय फंड का विकल्प अपनाएं जो अंतर्निहित पोर्टफोलियो में निवेश कर वैश्विक सूचकांकों के प्रदर्शन पर नजर रखते हैं। म्युचुअल फंड के माध्यम से किया गया निवेश एलआरएस के तहत नहीं आता है और आगे मात्रा के अर्थशास्त्र के कारण सामान्यतया परिचालन लागत कम आती है और निवेश का न्यूनतम आकार कम रहता है।

भारत निवेशक निष्क्रिय उत्पादों के माध्यम से वैश्विक निवेश की य़ात्रा शुरू कर सकते हैं। विकसित देशों के वित्तीय बाजार सूचनात्मक आधार पर कुशल होते हैं। इसके परिणामस्वरूप खासकर ज्यादा लागत के बाद सक्रिय फंडों को मानक से ऊपर अतिरिक्त मुनाफा कमाने में मुश्किल होती है। उदाहरण के लिए 2020 की एसपीआईवीए रिपोर्ट के मुताबिक, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल है, सक्रिय लार्जकैप फंडों ने लगातार 11वें कैलेंडर साल में व्यापक आधार के सूचकांकों की तुलना में खराब प्रदर्शन किया था। इसलिए निष्क्रिय उत्पाद, जो इंडेक्स पोर्टफोलियो में सीधे निवेश करते हैं या सीधे उस पर नजर रखते हैं, निवेश के लिए बेहतर हो सकते हैं। ये उत्पाद अंतर्निहित सूचकांक की ही तरह मुनाफा देते हैं। यह पारदर्शी पोर्टफोलियो के साथ जाने पहचाने तरीके और जोखिम के मुताबिक होता है। सक्रिय फंड की तुलना में इसकी लागत कम होती है और कोई भी फंड प्रबंधक खराब प्रदर्शन का जोखिम नहीं लेगा।

अगर कोई व्यक्ति वैश्विक निवेश के क्षेत्र में नया है तो वह पहले व्यापक आधार वाले बाजार सूचकांकों (भारत में निफ्टी 50 की तरह) में एक्सपोजर लेने के साथ इस क्षेत्र में भाग लेना शुरू कर सकता है और उसके बाद विशिष्ट और विषयगत पेशकशों में जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि निफ्टी 50 जैसी कंपनियों को ज्यादा स्थिर माना जाता है और इनमें उतार चढ़ाव कम होता है। साथ ही निवेशक के प्रमुख पोर्टफोलियो के हिस्सा के रूप में इसी तरह का हस्तक्षेप अन्य देशों में उपलब्ध इस तरह के सूचकांकों में किया जा सकता है।

अमेरिका जैसे वैश्विक बाजारों ने दीर्घावधि के हिसाब से पूंजी का सृजन किया है और वे भी देश विशेष के जोखिम, मुद्रा में उतार चढ़ाव, राजनीतिक और नियामकीय परिदृश्य आदि से प्रभावित हैं।

सीधे शब्दों में कहें तो इसमें अस्थिरता अधिक हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप निवेशक को इस तरह के निवेश करने के उद्देश्य के साथ-साथ अपने जोखिम-प्रोफाइल के आधार पर प्रत्येक फंड का आकलन करने की आवश्यकता होती है। वे अपने निवेश में मार्गदर्शन के लिए वित्तीय सलाहकार से परामर्श कर सकते हैं।

(लेखक मिरे एसेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) प्रा. लि. में प्रमुख, उत्पाद –ईटीएफ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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