म्युचुअल फंड्स में SIP के जरिये निवेश कर काट सकते हैं मोटा मुनाफा, जानें क्या है तरीका
आपको रिटर्न फंड में निवेश से मिलता है SIP से नहीं। अगर आप कमजोर फंड चुनते हैं तो आपको SIPs से भी किसी तरह की मदद नहीं मिलती। ऐसे में बुनियादी रूप से मजबूत फंड चुनिए जिसका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा हो
नई दिल्ली, राहुल जैन। आज के समय में लोगों को ये बताने की जरूरत नही है कि सिस्टेमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIPs) क्या है। वे म्युचुअल फंड्स में बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से निवेश के विकल्प के रूप में उभरे हैं। एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के अनुसार SIP Accounts की संख्या 5.17 करोड़ है। इनके जरिए इंवेस्टर्स अलग-अलग म्युचुअल फंड स्कीम्स में इंवेस्ट करते हैं। हालांकि, इंवेस्टमेंट के किसी भी अन्य विकल्प की तरह SIPs से जुड़े हर पहलू के बारे में समझना जरूरी है। इससे आपको अधिकतम रिटर्न प्राप्त करने में मदद मिलती है।
चीजों को सिंपल रखिए
SIP से बेस्ट रिजल्ट प्राप्त करने के लिए चीजों को सिंपल रखना चाहिए। आप इंवेस्टमेंट के लिए उस फ्रिक्वेंसी को चुनिए जिसे आप आसानी से दे सकते हैं। यह एक मिथक है कि आपकी SIPs की फ्रिक्वेंसी से रिटर्न तय होता है। इस समय कई तरह की ऐसी SIPs हैं, जो मार्केट की मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से आपको SIPs को टाइम करने की सुविधा देती हैं।
उदाहरण के लिए, एक ऐसी SIP भी मौजूद है जो मार्केट में तेजी के समय रकम को कम कर देती है और गिरावट के समय उसे बढ़ा देती है। पहली नजर में यह आइडिया बिल्कुल परफेक्ट नजर आता है लेकिन ऐसा है नहीं। अधिकतर इंवेस्टर्स के केस में यह मुश्किल है कि गिरावट के समय उनके इंवेस्टमेंट की वैल्यू में इजाफा हो। दूसरी ओर, ये भी हो सकता है कि बाजार में गिरावट के समय आपके पास ऐसा करने के लिए जरूरी फंड ही उपलब्ध ना हो।
यह केस भी अन्य SIPs की तरह ही नजर आता है। इसलिए एक निश्चित तारीख को एक निश्चित रकम इंवेस्ट की जाने वाली SIP सबसे सही विकल्प है।
लंबी-अवधि का अप्रोच रखिए
SIP किसी टेस्ट मैच की तरह होता है, जिसमें आपको धैर्य रखने के साथ-साथ अनुशासित होने की जरूरत होती है। अध्ययन दिखाते हैं कि SIP की अवधि जितनी लंबी होती है, दोहरे अंकों में कमाई की गुजाइश भी उतनी अधिक होती है।
आम तौर पर भारत में शेयर बाजार में गिरावट का सिलसिला एक बार में 12-24 महीने तक चलता है। ऐसे में तीन साल की SIP भी आपको नुकसान की भरपाई और बाजार में तेजी का फायदा देने का क्षमता रखती है।
यहां ध्यान रखने वाली बात है कि SIPs की वास्तविक वैल्यू उस वक्त होती है जब मार्केट गिरावट में होता है क्योंकि तब आप उतनी ही कीमत में ज्यादा यूनिट्स खरीद पाते हैं। इससे खरीद की लागत का औसत बेहतर हो जाता है। बाजार में गिरावट के समय SIP रोकने से आपको नुकसान हो सकता है क्योंकि फिर इसका असली मकसद ही अधूरा रह जाता है।
जल्दी शुरुआत कीजिए
निवेश की जल्द शुरुआत से आपके पैसे को ग्रो करने का समय मिलता है और आपको कम्पाउंडिंग का फायदा उठाने में भी मदद मिलती है। धन के सृजन में कम्पाउंडिंग का कई गुना असर देखने को मिलता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि आप 25 साल की उम्र मे एक SIP शुरू करते हैं और हर माह उसमें 1,000 रुपये जमा करते हैं। आप 60 साल की उम्र तक ऐसा करना जारी रखते हैं। अगर हर साल आपको 10 फीसदी के दर से रिटर्न मिलता है तो 60 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उस इंवेस्टमेंट की वैल्यू 7 करोड़ रुपये हो गई होगी।
हालांकि, अगर आप निवेश शुरू करने में पांच साल की भी देरी कर देते हैं तो आपके 60 साल के होने पर इंवेस्टमेंट की वैल्यू तीन करोड़ रुपये से थोड़ी ज्यादा रह जाती है। ऐसे में आप जितनी जल्दी शुरुआत करेंगे, आपके लिए उतना ही अच्छा रहेगा।
हर लक्ष्य के लिए अलग-अलग SIP
SIP को लक्ष्य से जोड़ने से आपको एक तरह का मकसद मिल जाता है। इससे आपको निवेश को जारी रखने की प्रेरणा मिलती है और आप जल्दी पैसे निकालने से बचते हैं। बच्चों की उच्च शिक्षा और रिटायरमेंट जैसी लंबी अवधि के लक्ष्यों के लिए इक्विटी फंड के जरिए SIP में इंवेस्ट कीजिए।
इमरजेंसी फंड बनाने के लिए आप लिक्विड फंड्स को चुन सकते हैं। वहीं, मध्यम अवधि के लक्ष्यों के लिए आप अग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स पर दांव लगा सकते हैं।
निष्कर्ष
यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि आपको रिटर्न फंड में निवेश से मिलता है SIP से नहीं। अगर आप कमजोर फंड चुनते हैं तो आपको SIPs से भी किसी तरह की मदद नहीं मिलती। ऐसे में बुनियादी रूप से मजबूत फंड चुनिए जिसका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा हो। इससे आपको अपनी SIPs से होने वाले फायदे को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
(लेखक President & Head, Personal Wealth, Edelweiss Wealth Management हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)