बिना अनुभव न पड़ें डायरेक्ट इंवेस्टमेंट प्लान के चक्कर में
म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान दोनों का विकल्प रहता है
नई दिल्ली (धीरेंद्र कुमार)। पांच साल पहले म्यूचुअल फंड नियामक ने सभी फंड को निर्देश दिया था कि वे डायरेक्ट टू द कस्टमर का विकल्प भी अनिवार्य रूप से दें। इन बीते वर्षो में हर जानकार निवेशक को यह समझ में आ गया है कि डायरेक्ट फंड का क्या फायदा है। उन्हें पता है कि निवेशक किसी भी फंड में डायरेक्ट निवेश कर सकते हैं। यह सस्ता पड़ता है, क्योंकि इस पर म्यूचुअल फंड कंपनी को रिटेलर को कुछ नहीं देना होता। इसीलिए कंपनी इस पर खर्च के रूप में कम पैसे काटती है।
क्या डायरेक्ट फंड हर निवेशक के लिए सर्वश्रेष्ठ चुनाव हैं?
सस्ता होने का सीधा सा अर्थ है कि इससे रिटर्न ज्यादा मिलता है। सवाल है कि डायरेक्ट फंड निवेश से कितना ज्यादा रिटर्न मिलता है? इससे सालाना थोड़ी सी राशि ज्यादा मिलती है, लेकिन इसे कई साल में मिलाकर देखें, तो निश्चित रूप से ठीकठाक राशि बन जाती है। अब आपके मन में यह सवाल उठेगा कि क्या डायरेक्ट फंड हर निवेशक के लिए सर्वश्रेष्ठ चुनाव हैं? इस प्रश्न का उत्तर है, कदापि नहीं। रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान के रिटर्न में सालाना कुछ एक से दो फीसद का फर्क पड़ता है। आप समझ सकते हैं कि यह अंतर करीब उतना ही होता है, जितनी राशि उन्हें डिस्ट्रीब्यूटर को देनी पड़ती। ऐसे में सस्ते की ओर भागने की आदत हर निवेशक के लिए सही साबित हो, ऐसा जरूरी नहीं है। डायरेक्ट प्लान में निवेश के लिए निवेशक का जानकार होना जरूरी होता है।
इससे होने वाले रिटर्न पर जीएसटी भी लगता है
म्यूचुअल फंड आपके लिए जो भी करते हैं, उसका शुल्क आपकी निवेश की हुई राशि में से काट लिया जाता है। इक्विटी फंड के लिए फंड कंपनियां 1.75 फीसद से 2.5 फीसद तक का शुल्क ले सकती हैं। इसके अलावा इस पर जीएसटी भी लगता है। कुल मिलाकर यह शुल्क सालाना तीन फीसद के आसपास बनता है। इस मद में हर महीने थोड़ी-थोड़ी राशि काटी जाती है। यही राशि फंड कंपनी को मिलती है। थोड़ा सा हिस्सा उस डिस्ट्रीब्यूटर को मिलता है, जो आपको फंड बेचता है। किसी म्यूचुअल फंड में निवेशकों से समान दर से शुल्क लिया जाता है।
निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प कौन है
अब हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान में कौन बेहतर विकल्प हो सकता है? इसके लिए हमें यह समझना होगा कि निवेश करते समय किसी सलाहकार की क्या भूमिका होती है। एक पुरानी अमेरिकी फाइनेंशियल कंपनी ने में एक सूची तैयार की थी। इसके मुताबिक सलाहकार निम्नलिखित भूमिकाएं निभाता है :
1. भरोसा बढ़ाना
2. लक्ष्य के लिए योजना बनाना
3. पोर्टफोलियो तैयार करना
4. पोर्टफोलियो बैलेंस करना
5. योजना पर काम करना और रिस्क को एडजस्ट करना
6. बाजार में गिरावट के समय एक सलाहकार की भूमिका निभाना
यह सूची भले ही बड़ी लग रही हो, लेकिन अमूमन हर निवेशक को इनमें से कुछ मदद की जरूरत होती ही है। पहली बार निवेश करने जा रहे व्यक्ति के लिए सुगमता से लेनदेन कर सकना भी बड़ी आवश्यकता होती है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि नए निवेशक को शुरुआत करने के लिए भी अक्सर किसी की जरूरत पड़ती है। बैंक के फिक्स्ड डिपोजिट से इतर म्यूचुअल फंड कोई ऐसी सुविधा नहीं है, जिसका आप पहले से इस्तेमाल कर रहे हों और उसमें कुछ विस्तार करने से म्यूचुअल फंड में निवेश हो जाए। अगर इसमें लगने वाली लागत पर आप ज्यादा ध्यान देंगे तो संभवत: कभी निवेश कर ही नहीं पाएंगे।
निवेशक को निवेश बाजार की कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिए
यह सब जानने के बाद सवाल है कि आखिर किस तरह के निवेशकों को डायरेक्ट प्लान का रास्ता चुनना चाहिए? इसका उत्तर है कि निवेशक को निवेश बाजार की कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिए। निवेशक को पता होना चाहिए कि किस तरह की निवेश जरूरत के लिए किस तरह के म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहिए। निवेशक में जरूरत के मुताबिक म्यूचुअल फंड चुनने और उनकी सूची तैयार करने की क्षमता और जानकारी होनी चाहिए। निवेश की दुनिया में कदम रखने के बाद भी सलाहकार की बड़ी भूमिका रहती है। बाजार जब गिरावट में चल रहे हों, तो अक्सर उस दबाव के समय किसी सलाहकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, जो निवेशक को टिके रहने के लिए प्रेरित कर सके। कुल मिलाकर निवेशक को हर उस काम में सक्षम होना चाहिए, जो कोई सलाहकार कर सकता है।
अनुभव के बिना तो रेगुलर प्लान के रास्ते पर बढ़ना ही उचित होगा
अगर इन सभी बातों का उत्तर आपके लिए ‘हां’ है, तो निश्चित रूप से आप डायरेक्ट प्लान को चुनकर अपना रिटर्न बढ़ाने के बारे में सोच सकते हैं। लेकिन अगर किसी भी स्तर पर आपको लगता है कि आप नए और अनुभवहीन निवेशक हैं तो आपको ऐसे फैसले से बचना होगा। जानकारी और अनुभव नहीं होने की स्थिति में आपके लिए रेगुलर प्लान के रास्ते पर बढ़ना ही उचित होगा। इस स्थिति में यह सवाल भी उठना जायज है कि हर व्यक्ति अच्छा सलाहकार कहां से चुने। लेकिन वह एक अलग मुद्दा है। इस पर विस्तार से विचार किया जा सकता है। बहरहाल रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान के बीच के चुनाव में किसको वरीयता देनी है, यह आप अपनी जानकारी का आकलन करते हुए आसानी से तय कर सकते हैं।
म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान दोनों का विकल्प रहता है। डायरेक्ट प्लान में बिना किसी डिस्ट्रीब्यूटर की मदद के निवेशक सीधे पैसे लगा सकता है। निसंदेह इसमें शुल्क की बचत होती है और रिटर्न थोड़ा सा बढ़ जाता है। यही वजह है कि बहुत से निवेशक सोचते हैं कि उन्हें डायरेक्ट प्लान ही अपनाना चाहिए, ताकि रिटर्न बढ़ाया जा सके। यह सोच सही नहीं है। डायरेक्ट प्लान के बारे में सोचने से पहले आपको अपनी जानकारी का आकलन भी कर लेना चाहिए। बिना जानकारी के निवेश की दुनिया में कदम रखने जा रहे निवेशक के लिए कई बार बाहरी सलाह जरूरी हो जाती है। ऐसे में रेगुलर प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर आपकी सहायता के लिए उपलब्ध रहता है।
इस लेख के लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार हैं।