लेनदेन के डिजिटल तरीके अपनाने का है सही वक्त, कोरोना संकट काल में निवेशक भी अपना रहे डिजिटल मोड
यह सहज और पारंपरिक सोच बन गई है कि यह कोरोना महामारी लोगों और कंपनियों को कामकाज और मेलजोल के लिए स्थायी रूप से डिजिटल तौर-तरीके अपनाने को मजबूर कर देगी।
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। पिछले दिनों मैं ट्विटर पर एक पोल देख रहा था। इसमें पूछा गया था कि आपकी कंपनी के काम करने के तौर-तरीकों को डिजिटल की ओर कौन ले जा रहा है? उसके तीन विकल्प थे - पहला सीईओ यानी मुख्य कार्यकारी अधिकारी, दूसरा सीटीओ यानी मुख्य तकनीक अधिकारी और तीसरा कोरोना। सही जवाब के लिए कोई प्रोत्साहन या अंक नहीं रखा गया था। हालांकि पिछले कुछ दिनों के दौरान लोगों की यह सहज और पारंपरिक सोच बन गई है कि यह कोरोना महामारी लोगों और कंपनियों को कामकाज और मेलजोल के लिए स्थायी रूप से डिजिटल तौर-तरीके अपनाने को मजबूर कर देगी।
बहरहाल, यह भविष्य की बात है और आजकल के दौर में भविष्य के बारे में ज्यादा देर तक सोचना संभव नहीं है। फिलहाल तो एक विशेष मामला यह है कि बचतकर्ताओं और निवेशकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो अब तक वित्तीय सेवाओं का भौतिक तरीकों और माध्यमों से ही लाभ उठा रहा था। लेकिन इन बचतकर्ताओं और निवेशकों को पिछले कुछ दिनों के दौरान वित्तीय सेवाओं का लाभ लेने के लिए रातोंरात डिजिटल मोड पर आना पड़ा है।
पिछले हफ्ते मुझे कुछ ई-मेल मिले। ये सभी वरिष्ठ नागरिकों के मेल थे। वे सब के सब इस बात को लेकर चिंतित थे कि म्युचुअल फंड निवेश भुनाने की उनकी क्षमता पर तीन हफ्तों के इस लॉकडाउन का क्या और कितना असर होगा। ये सभी बुजुर्ग अपना म्युचुअल फंड निवेश भुनाने के लिए भुगतान फॉर्म भरने के आदी हैं। फॉर्म भरने के बाद वे उस फॉर्म को अपने वितरक के कर्मचारी को दे देते थे या फिर म्युचुअल फंड कंपनी के स्थानीय दफ्तर या सीएएमएस जैसे किसी रजिस्ट्रार को सुपुर्द कर देते थे।
वर्तमान हालात में इस तरह के सभी विकल्प बंद हैं। या अगर खुले भी हैं तो सिर्फ और सिर्फ उनके लिए जो अपने बैंक के माध्यम से इस तरह का निवेश करते रहे हैं। इससे भी आगे की बात यह है कि वरिष्ठ नागरिकों के कोरोना के संक्रमण में आ जाने का खतरा ज्यादा है। ऐसे में उनका बाहर जाना और निवेश का भौतिक रूप से लेखाजोखा रखने का कोई मतलब नहीं बनता है। इसे देखते हुए म्युचुअल फंड उद्योग और रजिस्ट्रार समुदाय ने मिलकर एक सिस्टम तैयार किया है। इस सिस्टम के माध्यम से ऐसे बुजुर्ग भौतिक मेलजोल के बिना अपने म्युचुअल फंड को भुना सकते हैं। इसके लिए उनका मोबाइल नंबर म्युचुअल फंड कंपनी में पंजीकृत होना जरूरी है। अब क्योंकि म्युचुअल फंड के तहत निकासी की रकम सिर्फ उसी बैंक खाते में जाती है जिसके माध्यम से निवेश किया गया था, तो ऐसे में इस तरह के हस्तांतरण में कोई जोखिम नहीं होना चाहिए।
मैं नहीं जानता कि महीने भर के भुगतान का आंकड़ा क्या कहने वाला है। लेकिन यह बेहद उत्साहजनक बात है कि बहुत बड़े वैश्विक संकट और बेहद अस्थिर शेयर बाजारों के बीच भी सारा सिस्टम अच्छा चल रहा है और बचतकर्ताओं को जब जैसी जरूरत हो, वे अपने निवेश की निकासी कर पा रहे हैं। जब शेयर बाजारों के भरभराने की शुरुआत हुई थी, तो कई लोगों से ऑनलाइन कहते सुना है कि बाजारों को कुछ समय के लिए बंद कर देना चाहिए क्योंकि निवेशकों को बहुत नुकसान हो रहा है। हालांकि ‘कुछ ही मिनटों में या घंटों में निवेशकों के इतने पैसे डूब गए’ जैसी सुर्खियों से मीडिया भी इस तरह के डर को लगातार हवा देता था।
इस तरह के सलाह की एक प्रतिक्रिया यह हो सकती थी कि बाजार थोड़े वक्त के लिए बंद कर दिए जाते। लेकिन अगर ऐसा होता तो कोई भी म्युचुअल फंड्स से या शेयरों से अपनी रकम की निकासी नहीं कर पाता। उस स्थिति में बाजार में सही मायनों में हाहाकार मच जाता। उस स्थिति में आपको पता भी नहीं चलता कि आप अपने निवेश का 10 प्रतिशत गंवा बैठे हैं या 99 प्रतिशत।
सच कहें तो बाजारों का बंद किया जाना इस मायने में सबसे बड़ी संभावित गलती होता और शुक्र है कि बाजार बंद कर देने की सलाह को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। मैं समझता हूं कि बाजार बंद करने की सलाह केवल वैसे लोग दे रहे थे जिनका शेयर बाजारों से कोई लेनादेना नहीं था या जो सिर्फ एक दिन में चांदी काटकर रातोंरात बाजार से गायब हो जाने वाले वर्ग में से थे। वित्तीय बाजारों का काम निवेश का मूल्य और तरलता बढ़ाना है, भले ही परिस्थितियां कैसी भी क्यों न हो।
ऐसा कहने का मेरा मकसद यह है कि ज्यादा बड़ा निवेश भुनाने के बारे में बचतकर्ताओं को सतर्क रहना चाहिए। जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है, बाजार के उतार-चढ़ाव से इसका सही-सही अंदाजा कतई नहीं लगाया जा सकता है कि मध्यम या लंबी अवधि में इस महामारी का क्या-क्या असर होने वाला है। शेयर बाजारों के लंबे उतार-चढ़ाव असल में यही दिखाते हैं कि उस असर की भविष्यवाणी संभव नहीं।
इसमें कोई शक नहीं कि निकट भविष्य में बहुत बड़ी मंदी आने वाली है। लेकिन जब चीजें थोड़ी साफ और स्पष्ट होंगी तब हम एक बार फिर शेयर बाजारों में जबर्दस्त खरीदारी की स्थिति देखेंगे क्योंकि उस वक्त तक हम शायद गिरावट की सीमा पर होंगे। हालांकि इतिहास खुद को संपूर्ण रूप से नहीं दोहराता, लेकिन अतीत की कुछ पद्धतियां जरूर थोड़े-बहुत अंतर के साथ दोहराती दिखाई देती हैं।
बहरहाल, वापस वहीं चलते हैं जहां से हमने बात शुरू की थी। सच यह है कि जिन निवेशकों ने खरीद-फरोख्त और भुगतान-निकासी का डिजिटल तरीका अपना लिया है, वे औरों के मुकाबले वर्तमान परिस्थिति में खुद को ज्यादा अनुकूल स्थितियों में हैं। यकीन मानिए, जब यह दौर गुजर जाएगा, उसके बाद हममें से कोई भी कागज के फॉर्म और चेकबुक के पुराने तरीकों की ओर लौटना नहीं चाहेगा।
लॉकडाउन की इस अवधि में जब हर कोई घर बैठकर काम कर रहा है और बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं, तब बहुत लोगों को यह लगने लगा है कि यह कोरोना महामारी कामकाज और मेलजोल के तौर-तरीकों को स्थायी रूप से डिजिटल में बदल देगी।
जिन निवेशकों ने निकासी और भुगतान के लिए डिजिटल तरीके पहले से अपनाए हैं, उन्हें मौजूदा माहौल में कोई दिक्कत नहीं हो रही है। लेकिन एक बड़ा वर्ग आज भी निवेश और भुगतान के लिए कागज-कलम पर पूरी तरह निर्भर है। सच यह है कि जब महामारी का यह दौर गुजर जाएगा, तब एक बड़ा वर्ग ऐसा उभरकर सामने आएगा, जो निकासी फॉर्म भरकर रकम निकालने या चेकबुक के दौर में वापस नहीं जाना चाहेगा। यही समय की मांग भी है।
(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)