श्रेणियों के हिसाब से करें म्यूचुअल फंड का चुनाव
म्यूचुअल फंड की दुनिया स्थिर नहीं है। नए-नए नाम और प्रकार के फंड लांच होते जा रहे हैं
नई दिल्ली (धीरेंद्र कुमार)। म्यूचुअल फंड की दुनिया बहुत विशाल है। किसी निवेशक के लिए यह चुनना बहुत मुश्किल होता है कि वह किस फंड में निवेश करे। पिछले साल सेबी ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया। सेबी ने सभी फंड को कुछ निर्धारित श्रेणियों में बांटने की घोषणा की है। ऐसा होने से हर फंड का निश्चित वर्गीकरण हो सकेगा। ऐसा होने से निवेशक अपनी जरूरत के हिसाब से विशेष श्रेणी के फंड देख सकेगा। ऐसे में निवेशक को चुनाव और तुलना दोनों में आसानी होगी।
देश में 2,043 म्यूचुअल फंड हैं। अगर आप प्लान, ऑप्शन और वैरिएंट की गणना करने बैठेंगे तो निवेशकों के सामने कुल 9,680 विकल्प बनते हैं। ऐसे में अपने लिए उपयुक्त म्यूचुअल फंड का चुनाव करना बहुत मुश्किल हो जाता है। निश्चित रूप से अगर सभी फंड को कुछ निश्चित श्रेणियों में बांटा जा सके तो चुनाव थोड़ा आसान हो सकता है। ऐसे में निवेशकों को सभी फंड की समीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। निवेशक अपनी जरूरत के हिसाब से किसी एक श्रेणी के फंड का अध्ययन करके उनमें से चुनाव कर सकता है। परिभाषा के आधार पर देखें तो निवेशक की जरूरत के हिसाब से एक या दो श्रेणियां ही मुफीद होती हैं।
कुछ सलाहकार फर्म इस दिशा में निवेशकों की मदद करती हैं। फंड का वर्गीकरण करने की किसी भी व्यवस्था का उद्देश्य निवेशक को इस बात में मदद करना होता है कि वह अपनी उम्मीदों और रिस्क लेने की क्षमता के हिसाब से फंड का चुनाव कर सके। एक अच्छे वर्गीकरण की पहचान है कि उसमें रिस्क और रिटर्न का बेहतर लेखा-जोखा मिले। वैल्यू रिसर्च जैसी कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं।
ध्यान देने की बात है कि म्यूचुअल फंड की दुनिया स्थिर नहीं है। नए-नए नाम और प्रकार के फंड लांच होते जा रहे हैं। यही नहीं, फंड कंपनियां पूरा प्रयास करती हैं कि उनके फंड का वर्गीकरण नहीं किया जा सके। ऐसा करने के पीछे एक सीधी सी सोच काम करती है कि वर्गीकरण होते ही उससे जुड़ने वाले निवेशक सीमित हो जाते हैं। वर्गीकरण होने से किसी फंड की तुलना आसानी से उसी श्रेणी के अन्य फंड के साथ की जा सकती है। निश्चित रूप से कारोबारी दुनिया में कोई भी कंपनी ऐसा नहीं चाहती है। हर कंपनी का प्रयास रहता है कि वह अपने आप में विशेष दिखे और उसकी तुलना केवल उसी से हो।
म्यूचुअल फंड कंपनियां भी ऐसा ही प्रयास करती हैं। उनका प्रयास रहता है कि फंड सबसे अलग दिखे और किसी दूसरे फंड से उसकी तुलना ना हो।
इसके साथ एक और भी परेशानी जुड़ी होती है। वह परेशानी है फंड की विशेषता का बदल जाना। अपने आप को बेहतर दिखाने की कोशिश में फंड अक्सर अपने निवेश के तरीके में बदलाव करते रहते हैं। एक निवेशक, जो लार्ज कैप फंड में निवेश करता है, हो सकता है कि कुछ समय बाद वह फंड ज्यादा रिस्क वाले मिड कैप फंड में बदल जाए। अगर उस दौरान मिड कैप स्टॉक का परिणाम अच्छा रहा, तो वह फंड लार्ज कैप से बेहतर प्रदर्शन दिखाएगा। म्यूचुअल फंड में करीब 30 श्रेणियां हैं और उनमें आपसी बदलाव की अनगिनत संभावनाएं हैं।
हालांकि पिछले साल बाजार नियामक सेबी ने इन मुद्दों को सुलझाने की दिशा में अहम कदम उठाया। सेबी ने कुल 36 श्रेणियों की घोषणा की है। सभी म्यूचुअल फंड को स्वयं को इनमें से किसी ना किसी श्रेणी में वर्गीकृत करना होगा। सेबी ने यह भी तय किया है कि कोई म्यूचुअल फंड कंपनी किसी श्रेणी में अधिकतम कितने फंड रख सकती है। फंड के नाम को लेकर भी कुछ नियम तय किए गए हैं। कई बार फंड का नाम भी बहकाने वाला होता है।
इस घोषणा के बाद म्यूचुअल फंड के क्षेत्र में बड़ी उठापटक हुई। अस्थायी रूप से निवेशकों के लिए भी उलझन की स्थिति बन गई। हालांकि इसके फायदे बहुत हैं। इस घोषणा के बाद से म्यूचुअल फंड की आधिकारिक रूप से घोषित श्रेणियां होंगी। हर श्रेणी के फंड के निवेश की अपनी निर्धारित खूबी होगी। निश्चित रूप से ऐसा होने से इस बात को समझने में कोई संदेह नहीं रह जाएगा कि कोई फंड किससे संबंधित है और किन फंड के साथ उसकी तुलना की जा सकती है। इसका यह भी अर्थ है कि अगर आप किसी श्रेणी के फंड में निवेश करते हैं, तो यह गारंटी रहेगी कि नाम ही नहीं, बल्कि काम के हिसाब से भी उस फंड में कोई बदलाव नहीं होगा।
जहां तक उथल-पुथल की बात है, यह तो हर सुधार की शुरुआत में होता है। फंड मैनेजर और फंड मार्केटिंग वाले इससे जरूर परेशान हो सकते हैं, लेकिन निवेशकों के लिए यह बदलाव अच्छा है। इस घोषणा का सबसे मुश्किल हिस्सा होगा विभिन्न फंड का विलय। हर श्रेणी में अधिकतम फंड की संख्या को सीमित रखने की घोषणा की गई है, इसलिए एक जैसे फंड का विलय कंपनियों के लिए जरूरी होगा। इनमें कुछ बड़े फंड शामिल हैं, जो और भी विशाल हो जाएंगे। सवाल यह उठता है कि क्या इन विशाल फंड को संभालना मुश्किल होगा? यह एक अलग कहानी है। इस पर अलग से चर्चा हो सकती है। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि सेबी का कदम सराहनीय है। यह निवेशकों को राहत देने वाला है। लंबे समय बाद ही सही, आखिरकार सेबी ने म्यूचुअल फंड की विशाल और उलझाने वाली दुनिया को थोड़ा व्यवस्थित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।
(यह लेख वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने लिखा है।)