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मैन्‍युफैक्‍चरिंग से लगेंगे इकोनॉमी को पंख, बजट में इन प्रावधानों से दूर होगी पैसों की किल्‍लत : एक्‍सपर्ट

भारत को विनिर्माण का प्रमुख केंद्र बनाया जा सकता है और इस दशक में विनिर्माण क्षेत्र की जीडीपी में हिस्सेदारी बढ़ाकर करीब 20 प्रतिशत की जा सकती है। भारत में विनिर्माण क्षेत्र महामारी के झटके के पहले से ही सुधार के संकेत दे रहा है।

By Ashish DeepEdited By: Published: Fri, 07 Jan 2022 10:34 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 09:08 AM (IST)
मैन्‍युफैक्‍चरिंग से लगेंगे इकोनॉमी को पंख, बजट में इन प्रावधानों से दूर होगी पैसों की किल्‍लत : एक्‍सपर्ट
भारत विनिर्माण के क्षेत्र में अपनी क्षमता से बहुत पीछे चल रहा है। (Pti)

नई दिल्‍ली, सिद्धार्थ श्रीवास्तव। भारत करीब 2.6 लाख करोड़ डॉलर की जीडीपी के साथ विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इसके बावजूद देश की जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी महज 17 प्रतिशत और विश्व के विनिर्माण आउटपुट में महज 2 प्रतिशत हिस्सेदारी है। वहीं पड़ोसी देश चीन की वैश्विक विनिर्माण आउटपुट में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी है। साफ है कि भारत विनिर्माण के क्षेत्र में अपनी क्षमता से बहुत पीछे चल रहा है।

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भारत के आर्थिक विकास के लिए विनिर्माण में वृद्धि अहम है। युवाओं को नौकरियां देकर विनिर्माण क्षेत्र भारत को तेजी से मध्य आय की अर्थव्यवस्था की ओर ले जा सकता है। यह क्षेत्र तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर आयात पर निर्भरता कम करने के साथ निर्यात में वृद्धि में कर सकता है। इस तरह से हमारा व्यापार घाटा कम हो सकता है और भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ और ज्यादा जुड़ सकती है। सरकार ने इस क्षेत्र की पहचान की है और कई पहल की हैं, जिनमें नीतिगत बदलाव, कर लाभ, उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन आदि शामिल है। इस तरह के लक्षित तरीके अपनाकर भारत को विनिर्माण का प्रमुख केंद्र बनाया जा सकता है और इस दशक में विनिर्माण क्षेत्र की जीडीपी में हिस्सेदारी बढ़ाकर करीब 20 प्रतिशत की जा सकती है।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र महामारी के झटके के पहले से ही सुधार के संकेत दे रहा है। उदाहरण के लिए भारत उन कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जहां महामारी के ठीक पहले 5 साल की अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय है कि भारत का विनिर्माण सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) इस अवधि के दौरान चीन की तुलना में तेजी से आगे आया है। भारत के विनिर्माण जीवीए में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इस अवधि के दौरान चीन का विनिर्माण जीवीए 5.9 प्रतिशत बढ़ा है। साथ ही इस दौरान विनिर्मित वस्तुओं के वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी भी बढ़ी है।

भारत सरकार भी इस क्षेत्र में विभिन्न पहलों के साथ कदमताल करने को इच्छुक है। सरकार की मंशा भारत में विनिर्मित वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने, आयात पर निर्भरता को कम करने और भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को वैश्विक मूल्य श्रृंखला से जोड़ने की है। इसके लिए शायद और ज्यादा लक्षित कार्रवाई करने की जरूरत है।

हाल ही में सरकार ने 13 क्षेत्रों के लिए 2 लाख करोड़ रुपये के करीब की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना पेश की है, जो संभवतः सबसे ज्यादा केंद्रित कवायद है, जिससे भारत में विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन बढ़ाया जा सके। पीएलआई के तहत सबसे बड़े लाभार्थी क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक सामान, ऑटोमोबाइल और वाहनों के कल पुर्जे, फार्मा, रसायन आदि शामिल हैं। सिर्फ पीएलआई योजना में कंपनियों को अगले 5 से 7 साल में लगभग 30 ट्रिलियन रुपये के सामान का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने की क्षमता है। और इस तरह से इस अवधि के दौरान यह जीडीपी वृद्धि में महत्त्वपूर्ण अंशदान करने वाला बन सकता है। इसके साथ ही सरकार ने अनुकल कर वातावरण भी मुहैया कराया है। उदाहरण के लिए नई विनिर्माण इकाइयों के लिए कॉर्पोरेट कर की दरें घटाकर 15 प्रतिशत कर दी गई हैं। यह कई प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में कम है और चीन से इसकी तुलना की जा सकती है। आत्मनिर्भर भारत के तहत सरकार की ओर से मिल रहे समर्थन से भारत में रक्षा और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों को भी प्रोत्साहन मिलेगा और इससे आयात के विकल्प को प्रोत्साहित किया जा सकेगा।

इस समय भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए अनुकूल परिदृश्य के साथ सरकार की ओर से मिल रहे समर्थन के कारण निवेशकों की इस क्षेत्र पर नजर बनी हुई है। उदाहरण के लिए वाहन उद्योग अब उभरता हुआ और तेजी से बढ़ता और प्रतिस्थापन मांग की शुरुआती अवस्था में है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निरंतर उछाल और धीरे-धीरे वित्तपोषण में सुधार से इसको बल मिल रहा है। सरकार की अनुकूल नीतियों की वजह से ईवी उद्योग एक नए मोड़ पर खड़ा है और पूरी आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने के लिए बड़े निवेश हो रहे हैं।

दवा उद्योग में अगले 5 साल में 40 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा के वृद्धिशील उत्पादन की उम्मीद है। रसायन क्षेत्र को भी चीन के बाहर के वैकल्पिक आपूर्ति स्रोत में बदलाव का लाभ मिल सकता है और इससे 11 अरब डॉलर के आयात प्रतिस्थापन के अवसर का लाभ मिल सकता है। इसे पीएलआई के साथ कैपेक्स योजना को प्रोत्साहन मिलेगा।

डीकॉर्बनाइजेशन की चीन की प्रतिबद्धता से चीन से धातु और पेट्रोकेमिकल्स का निर्यात व इसकी आपूर्ति नियंत्रण में रह सकती है, जिससे चीन के बाहर मुनाफे और कीमतों को समर्थन मिल सकता है। साथ ही धातु कंपनियों ने बैलेंस शीट को एक स्थायी स्तर पर डिलिवरेज किया है। मजबूत बैलेंस शीट और चक्र में तेजी के परिदृश्य के साथ धातु कंपनियां निकट भविष्य में पूंजीगत व्यय बढ़ाने की योजना बना रही हैं। आखिर में पूंजीगत वस्तुओं का क्षेत्र कोविड के पहले की मात्रा के स्तर पर आ गया है। यह एक दशक लंबे चले डाउन साइकल, डिलिवरेजिंग फोकस और पूंजी सिकुड़ने के बाद अब निजी पूंजी रिकवरी के मामले में कॉर्पोरेट तेजी की ओर बढ़ रही है।

इस तरह से विनिर्माण क्षेत्र अब कंपनियों को एक्सपोजर मुहैया करा रहा है, जिसमें तमाम तरह के अवसर उपलब्ध हैं। इसमें ऑटो में अनुमानित रिकवरी से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों की क्षमता बढ़ना, दवा और इस्पात क्षेत्र में नजर आ रहे अवसर से लेकर रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र की क्षमता शामिल है। यह दौर क्षमताओं से भरा हुआ है।

सरकार की पहल के कारण विनिर्माण के क्षेत्र में अनुकूल परिदृश्य, अंतर्निहित मांग, निवेश योजना और सुधरी हुई बैलेंस शीट, विनिर्माण कंपनियों को एक निवेशक पोर्टफोलियो का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित कर रही है। वृद्धि की संभावनाओं के अलावा, विनिर्माण क्षेत्र में कोई भी निवेश मौजूदा पोर्टफोलियो से विविधीकरण में भी मदद करेगा, क्योंकि आमतौर पर निवेशक पोर्टफोलियो या म्युचुअल फंड के पोर्टफोलियो में वित्तीय सेवाओं, उपभोग और सूचना प्रौद्योगिकी की कंपनियों का वर्चस्व होता है। इसके अलावा निवेशक भी सक्रिय या निष्क्रिय फंड के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र में निवेश पर विचार कर सकते है। निवेशक दीर्घावधि के हिसाब अपने सैटेलाइट पोर्टफोलियो बनाकर या बाजार में अवसर के आधार पर सामरिक आवंटन के रूप में निवेश कर सकते हैं। भारत अपने विकास की कहानी के अगले चरण के लिए अपने विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करना चाहता है, और ऐसे में निवेशक अवसरों के लिए इस क्षेत्र का विश्लेषण कर सकते हैं और इसका लाभ उठा सकते हैं, जो उनके निवेश के मकसद और जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर होगा।

(लेखक मिरे असेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड में ईटीएफ प्रोडक्‍ट्स के प्रमुख हैं। छपे विचार उनके निजी हैं।)


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