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10 में से 9 व्यक्तियों को हो रहा नुकसान? कौन से 'ब्लैकहोल' में समा रहा है आपका पैसा

बाजार में अगर सब कुछ पहले जैसा ही चलता रहा तो डेरिवेटिव का वाल्यूम बढ़ता रहेगा और ट्रेडरों के पैसे इंडस्ट्री के मोटी जेब वालों की जेबें और मोटी करते रहेंगे। आप इसमें मत फंसिए। (जागरण फाइल फोटो)

By Siddharth PriyadarshiEdited By: Siddharth PriyadarshiPublished: Sat, 18 Feb 2023 07:10 PM (IST)Updated: Sat, 18 Feb 2023 07:10 PM (IST)
10 में से 9 व्यक्तियों को हो रहा नुकसान? कौन से 'ब्लैकहोल' में समा रहा है आपका पैसा
Blackhole of your money, 9 out of 10 people are facing loss in stock market

धीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली। सेबी ने हाल ही में एक स्टडी जारी की है। इसके अनुसार, 'इक्विटी वायदा एवं विकल्प (एफएंडओ) सेग्मेंट में ट्रेड करने वाले 89 प्रतिशत लोग (यानी ट्रेड करने वाले 10 में से 9 व्यक्ति) नुकसान झेलते हैं। वित्त वर्ष 2022 में इनका औसत नुकसान 1.1 लाख रुपये रहा।' जो भी इक्विटी मार्केट पर नजर रखता है, उसके लिए ये कोई अचरज की बात नहीं।

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लगभग सभी व्यक्तिगत ट्रेडर एफएंडओ में भारी नुकसान उठाते हैं। मगर अब जो बड़ी बात हुई है, वो ये कि सेबी की इस स्टडी ने इसे एक नंबर दे दिया है। असल में, अगर ट्रेडरों को और लंबे समय के लिए ट्रैक किया जाता, तो ये नंबर 95-99 प्रतिशत होता। बड़ा सवाल है कि अब सेबी का अगला कदम क्या होगा? पर हां, रेग्युलेटर को कुछ करना चाहिए, ये बात कई लोगों को बुरी लग सकती है।

कितना सच, कितना मिथक

पिछले हफ्ते जब ये स्टडी जारी हुई, तब खबरों में एक आम प्रतिक्रिया थी कि इस मुश्किल की जिम्मेदारी सिर्फ ट्रेडरों पर है। मगर, ये पूरी तरह से गुमराह करने वाली प्रतिक्रिया है। ऐसे निवेश, जिसमें लंबे समय तक रखे गए शेयर या म्यूचुअल फंड्स या दूसरे किसी भी वैध निवेश के लिए मान सकते हैं कि नुकसान ट्रेडर की अपनी जिम्मेदारी है।

एफएंडओ के केस में सच्चाई कुछ और है। स्टाक एक्सचेंज और ब्रोकर, दोनों के लिए डेरिवेटिव इस बिजेनस का ब्रेड, बटर और जैम हैं। पूरी ट्रेडिंग इंडस्ट्री का बिजनेस माडल ही ये है कि डेरिवेटिव की संख्या बढ़ाई जाए। इसमें शामिल हर कोई यही कोशिश कर रहा है कि कैसे वो अपने क्लायंट को सिर्फ स्टाक खरीदकर रखने से दूर करके एफएंडओ की तरफ ले जाए, क्योंकि मुनाफा वहीं है। जैसा सेबी की स्टडी साबित करती है, एक निवेशक के लिए घाटा वहीं है।

निवेशक को असलियत का कुछ पता नहीं

हमारे पास एक ऐसी इंडस्ट्री है, जो अपने आप में काफी जहर-बुझी है। एक्सचेंज और ब्रोकर, दोनों के लिए। ज्यादा मुनाफे का रास्ता ट्रेडर के ज्यादा लेन-देन से होकर गुजरता है। ऐसा लेन-देन जिसमें 90 प्रतिशत से ज्यादा घाटा खाने का चांस होता है। और हां, असल निवेशक को इस सारे काम की असलियत का कुछ पता नहीं होता। कुछ लोग जो खुद समझने में लग जाते हैं कि डेरिवेटिव क्या हैं, उन्हें इसके फायदों की घुट्टी पिलाई जाती है कि कैसे ये किसी भी ट्रेडर के सुरक्षित ट्रेड करने के लिए सही होते हैं, कैसे ये लिक्विडिटी प्रमोट करते हैं, कैसे ये प्राइस पहचानने में मदद करते हैं, आदि, आदि।

हालांकि, इस सारी लफ्फाजी में इंडस्ट्री से कोई भी इंसान एक साधारण सी सच्चाई बयान नहीं करेगा कि-हर बार जब कोई मुनाफा कमाता है, उस मुनाफे से किसी दूसरे का नुकसान होता है। ऐसा असली इक्विटी खरीदने में नहीं होता। वहां अर्थव्यवस्था की ग्रोथ उसकी ताकत होती है। पर एफएंडओ एक जीरो सम गेम है कि हजारों-करोड़ों डेरिवेटिव की ट्रेडिंग एक्टिविटी में से 90 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय एक्सचेंजों पर कोई पैसा नहीं बनाती। कुल मिलाकर ये गंभीरता से सोचने की बात है।

लोभ का कुचक्र

अगर कोई अमीर हो रहा है, तो सिर्फ इसलिए कि कोई दूसरा गरीब हो रहा है। ब्रोकर और एक्सचेंज और वो लोग जो स्टाक दे रहे हैं, वो इससे पैसे बनाते हैं, और उनका एकमात्र लक्ष्य यही है। तो आप इसके लिए क्या करें?

व्यक्तिगत तौर पर, बात साफ है, डेरिवेटिव से दूर रहें। आप पैसे गंवाएंगे और ज्यादातर बड़े पैसे ही गंवाएंगे। सेबी की स्टडी दिखाती है कि दस प्रतिशत ट्रेडर पैसे बनाते हैं, और 100 प्रतिशत ट्रेडर मानते हैं कि वो इस 10 प्रतिशत का हिस्सा होंगे। हालांकि, ये सिर्फ आपको फुसलाने का तरीका है। आप इसमें मत फंसिए। बड़ा सवाल है कि क्या रेग्युलेटर इसे लेकर कुछ करेगा? जरूर, इस स्टडी के बाद कुछ-न-कुछ एक्शन तो होगा।

(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार है।)

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