Union Budget 2020: मिलेगा दम, लेकिन उठाने होंगे और कदम
Union Budget 2020 बुनियादी ढांचे क्लाउड कंप्यूटिंग तक में निवेश से लेकर आयात शुल्क बढ़ाने जैसे कदम उठाए गए हैं लेकिन रोजगार सृजन के लिए और भी उपाय करने होंगे।
डॉ. भरत झुनझुनवाला
भारत जैसी अर्थव्यवस्था के लिए रोजगार सृजन निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती है। इतनी बड़ी युवा आबादी वाले देश में जहां हर महीने लाखों लोग कामकाजी आबादी का हिस्सा बनकर रोजगार के लिए तैयार हो जाते हैं, वहां यह मुद्दा स्वाभाविक रूप से बहुत महत्वपूर्ण बन जाता है। सरकार भी इससे अनभिज्ञ नहीं है। इसे देखते हुए बजट में कुछ कदम भी उठाए गए हैं।
मसलन फर्नीचर एवं फुटवियर जैसे उत्पादों के मामले में आयात शुल्क बढ़ाया गया है। इससे घरेलू उद्योगों को संरक्षण मिलेगा। चूंकि ये दोनों ही लेबर इंटेंसिव यानी बड़े पैमाने पर श्रम की खपत करने वाले क्षेत्र हैं तो यकीनन घरेलू उद्योगों को मिलने वाले लाभ से रोजगार के मोर्चे पर स्थिति सुधरेगी। इससे स्पष्ट है कि सरकार भी इस चुनौती को समझ रही है, मगर यह जितनी बड़ी समस्या है उसे देखते हुए इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। यह सही दिशा में एक छोटा कदम भर है।
रोजगार के मोर्चे पर स्थिति सुधारने के लिए आयात शुल्क को लेकर सरकार को और सख्ती दिखानी चाहिए थी। उसे विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ जैसी संस्था के मोह को छोड़ना होगा। सरकार यह न ही भूले तो बेहतर कि जब तक घरेलू उद्योगों को पर्याप्त संरक्षण नहीं दिया जाएगा तब तक रोजगार की तस्वीर में अपेक्षाकृत सुधार नहीं हो पाएगा। भले ही सरकारों की ओर से एक के बाद एक बजट में छोटे एवं मझोले उद्योगों यानी एसएमई और एमएसएमई के लिए विशेष रियायतों का पिटारा खोलने की बात होती है, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात एकदम अलग दिखते हैं। राहतों के इन पिटारे में भी मुख्य रूप से ऋण उपलब्ध कराने की बात ही होती है।
मान लीजिए कि आसानी से उपलब्ध होने वाले ऋण से कोई छोटा उद्यमी रोजगार शुरू भी करे तो उसके उत्पाद सस्ते आयातों के सामने कहीं टिकते नहीं। मांग में सुस्ती से भी उनकी कमर टूट रही है। ऐसे में सरकार को यह समझना होगा कि जब तक वह घरेलू उद्योगों खासतौर से छोटे उद्यमों की भलाई के लिए कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठाती तब तक मनवांछित लाभ तो मिलने से रहा। यहां यह याद दिलाना भी जरूरी होगा कि देश में रोजगार के सबसे बड़े सृजक ये छोटे उद्योग ही हैं और निर्यात में भी इनकी अच्छी-खासी हिस्सेदारी है।
सरकार ने अगले पांच वर्षो के दौरान बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 103 लाख करोड़ रुपये के निवेश का एलान किया है जिससे भी रोजगार सृजन होने की उम्मीद है, लेकिन सरकार को और भी बहुत कुछ करना होगा। विशेषकर तकनीक एवं सेवा क्षेत्र में भारत की महारत का लाभ उठना होगा। इसके लिए शिक्षा के ढांचे में आमूलचूल बदलाव की दरकार है। यह अच्छा है कि सरकार ने क्लाउड कंप्यूटिंग और भारतनेट जैसी पहल पर निवेश करने का निर्णय किया है, लेकिन रोजगार के लिए जितने प्रयासों की जरूरत है उसे देखते हुए ये भी पर्याप्त तो नहीं लगते, लेकिन इससे स्थिति के कुछ सुधरने की तो उम्मीद है।
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलूर के पूर्व प्रोफेसर)
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