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Budget 2020: गन्ना किसानों व चीनी उद्योग की बजट पर नजर, मूल्य नीति में बदलाव के साथ विशेष पैकेज की उम्मीद

किसानों की आय दोगुना करने का वादा पूरा करने के लिए गन्ना मूल्य का भुगतान समय से कराने की पुख्ता व्यवस्था हो।

By NiteshEdited By: Published: Thu, 30 Jan 2020 09:30 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jan 2020 09:39 AM (IST)
Budget 2020: गन्ना किसानों व चीनी उद्योग की बजट पर नजर, मूल्य नीति में बदलाव के साथ विशेष पैकेज की उम्मीद
Budget 2020: गन्ना किसानों व चीनी उद्योग की बजट पर नजर, मूल्य नीति में बदलाव के साथ विशेष पैकेज की उम्मीद

अवनीश त्यागी, नई दिल्ली। वित्तीय संकट से जूझ रहे गन्ना किसानों और चीनी उद्योग को आगामी आम बजट से राहत मिलने की आस है। किसानों को भरोसा है कि विकट होती बकाया गन्ना मूल्य की समस्या का कोई स्थाई समाधान होगा। वहीं, चीनी मिलें गन्ना मूल्य नीति में बदलाव के साथ विशेष पैकेज भी चाहती हैं। किसानों की मुश्किल है कि उनको गन्ना मूल्य का नियमित भुगतान नहीं हो पाता है। गत सत्र का लगभग तीन हजार करोड़ रुपये अभी मिलें चुकता नहीं कर पायी हैं। मौजूदा सत्र में यह धनराशि दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। किसान मजदूर संगठन संयोजक वीएम सिंह का कहना है, समय से भुगतान न होने के कारण 'कैश क्राप' कही जाने वाली गन्ने की खेती घाटे का सौदा बन रही है।

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किसानों की आय दोगुना करने का वादा पूरा करने के लिए गन्ना मूल्य का भुगतान समय से कराने की पुख्ता व्यवस्था हो। पुराने भुगतान निपटाने के लिए विशेष पैकेज दिया जाए। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत कहते है कि गन्ना संकट से निपटने के लिए मिलों को केवल चीनी उत्पादन के भरोसे नहीं छोड़ने का बंदोबस्त हो।उधर मिल संचालकों का मानना है कि बिगड़े हालात में अधिक दिनों तक उद्योग को बचाना मुश्किल है। इस सत्र में 71 मिलों में गन्ना पेराई नहीं हो पा रहा। उत्तर प्रदेश को छोड़ अन्य राज्यों की सभी मिलें नहीं चल पा रही हैं। महाराष्ट्र की गत वर्ष चली 189 चीनी मिलों में से इस बार केवल 139 मिलें ही संचालित संचालित है। इसी तरह कर्नाटक में दो, गुजरात में एक और आंध्र प्रदेश में सात और तमिलनाडू में नौ मिलों में गन्ने की पेराई नहीं हो रही है। चीनी उठान न होने से मिलों की दशा बिगड़ रही है।

गत सत्र की करीब 145 लाख टन चीनी मिलों में पड़ी है। चीनी निर्यात का अपेक्षित लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। श्रीलंका, मलेशिया, बांग्ला देश और इंडोनेशिया जैसे देशों में ही भारतीय चीनी की मांग है। बाजार में चीनी के दाम स्थिर रहने व समय से उठान न हो पाने से मिलों की वित्तीय स्थिति बिगड़ रही है। किसानों का बकाया गन्ना मूल्य पर ब्याज देने का दबाव चीनी मिलों के साथ सरकार का भी सिरदर्द है। मिल संचालकों का कहना है कि 15 फीसद ब्याज देने की व्यवस्था अव्यवहारिक है। बैंक भी मिलों की मदद से हाथ खींचने लगे है।

महानिदेशक अबिनाश वर्मा कहते है, चीनी उद्योग की बेहतरी के लिए गन्ना मूल्य निर्धारण व्यवस्था ठीक हो। चीनी मिलों की आय के आधार पर दाम तय किए जाए। एथनॉल नीति में सुधार हो और मिलों की बैंक लिमिट केवल चीनी स्टाक पर ही नहीं बनायी जाए। किसान चाहे-गन्ना मूल्य का तत्काल भुगतान हो वरना बकाया पर ब्याज दिलाए।

लागत का डेढ़ गुना गन्ना मूल्य देने की पुख्ता व्यवस्था की जाए।जर्जर चीनी मिलों की स्थिति सुधारने को पैकेज दे या अधिग्रहण करें।

मिल संचालक चाहे-गन्ना मूल्य नियंत्रण के लिए नीति बने और फंड भी स्थापित होबकाया गन्ना मूल्य पर ब्याज देने की व्यवस्था समाप्त की जाएबैंकिंग व अन्य सरकारी सुविधा देने में औपचारिकताएं कम हो।


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