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Budget 2020: निर्मला सीतारमण आज पेश करेंगी अपना दूसरा बजट, जानें किन मोर्चों पर आम लोगों को मिल सकती है राहत

Budget 2020 सितंबर 2019 में कॉरपोरेट टैक्स में भारी कमी के बाद देश का मिडिल क्लास इनकम टैक्स के मोर्चे पर रिलीफ की उम्मीद कर रहा है।

By NiteshEdited By: Published: Fri, 31 Jan 2020 05:56 PM (IST)Updated: Sat, 01 Feb 2020 09:23 AM (IST)
Budget 2020: निर्मला सीतारमण आज पेश करेंगी अपना दूसरा बजट, जानें किन मोर्चों पर आम लोगों को मिल सकती है राहत
Budget 2020: निर्मला सीतारमण आज पेश करेंगी अपना दूसरा बजट, जानें किन मोर्चों पर आम लोगों को मिल सकती है राहत

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। Budget 2020: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शनिवार को 11 बजे अपना दूसरा बजट भाषण पढ़ेंगी। Modi Government 2.0 के इस दूसरे बजट पर देश और दुनिया की निगाहें लगी हुई हैं, क्योंकि चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार के एक दशक के न्यूनतम स्तर पर रहने का अनुमान प्रकट किया गया है। दूसरी ओर टैक्स कलेक्शन में भी उल्लेखनीय कमी आई है और राजकोषीय घाटे के भी सरकार के बजट लक्ष्य से अधिक रहने का अनुमान है। सीतारमण के समक्ष इस बजट में संतुलन कायम करने की सबसे बड़ी चुनौती है। सितंबर, 2019 में कॉरपोरेट टैक्स में भारी कमी के बाद देश का मिडिल क्लास इनकम टैक्स के मोर्चे पर रिलीफ की उम्मीद कर रहा है। आइए जानते हैं कि सीतारमण के बजट के पिटारे में क्या कुछ खास रहने की उम्मीद हैः

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1. Income Tax Slab और रेट में बदलावः कंपनियों को टैक्स के मोर्चे पर रिलीफ मिलने के बाद देश के नौकरीपेशा लोग इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि वित्त मंत्री के बजट के पिटारे से इस बार उनके लिए भी राहत का ऐलान हो सकता है। टैक्स एवं निवेश मामलों के विशेषज्ञ बलवंत जैन के मुताबिक, इस समय डिमांड को बूस्ट करने की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि देश के मिडिल क्लास के हाथ में पैसे हों। विशेषज्ञों की राय में वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में पांच लाख रुपये से दस लाख रुपये तक की आय वाले लोगों के लिए कर में कटौती की सबसे ज्यादा जरूरत है, क्योंकि वे 20 फीसद की दर से टैक्स का भुगतान कर रहे हैं।

2. Standard Deduction में बढ़ोत्तरी: ICAI के पूर्व अध्यक्ष अमरजीत चोपड़ा के मुताबिक, सीतारमण इस बार के बजट में स्टैंडर्ड डिडक्शन को बढ़ा सकती हैं। इससे भी लोगों को टैक्स के मोर्चे पर राहत मिलने की उम्मीद है। वर्तमान में टैक्सपेयर को 50,000 रुपये तक का Standard Deduction मिलता है।

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3. टैक्स एक्जेम्पशन एवं 80 (C) की सीमा में बढ़ोत्तरीः कई टैक्स विश्लेषकों का मानना है कि राजकोषीय घाटा एवं टैक्स कलेक्शन में कमी के कारण सरकार के हाथ बंधे हुए हैं और आयकर की दर में कमी की बहुत गुंजाइश नहीं बच गई है। हालांकि, उनका मानना है कि सरकार 80 (C) एवं टैक्स एक्जेम्पशन की सीमा को बढ़ाकर आम लोगों को राहत दे सकती है।

4. होम लोन, एजुकेशन लोन में राहतः आर्थिक मामलों के विश्लेषकों का मानना है कि लोगों को होम लोन एवं एजुकेशन लोन पर विशेष छूट दिए जाने की दरकार है। इससे संकटग्रस्त रियल एस्टेट सेक्टर को भी उबारने में भी बड़ी मदद मिल सकती है, क्योंकि लोग टैक्स सेविंग के लिए इस सेक्टर में अधिक-से-अधिक निवेश करेंगे।

5. किसानों की आय बढ़ाने पर जोरः विश्लेषकों का मानना है कि ग्रामीण आबादी की आय बढ़ाए बिना इकोनॉमी को पटरी पर नहीं लाया जा सकता है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि सरकार किसानों के लिए कुछ अहम घोषणाएं कर सकती है। इसके साथ ही किसान सम्मान निधि एवं मनरेगा के मद में आवंटन बढ़ाया जा सकता है। 2019 के अंतरिम बजट पेश करते समय पीयूष गोयल ने इस योजना की घोषणा की थी। इसके तहत किसानों को हर साल 6,000 रुपये की राशि सीधे उनके बैंक खातों में भेजी जाती है।

6. सड़क, रेलवे और ग्रामीण विकास पर खर्च में बढ़ोत्तरीः सरकार मार्केट में लिक्विडिटी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अपने खर्च में बढ़ोत्तरी कर सकती है। इसके तहत सरकार रोड, रेलवे और ग्रामीण विकास से जुड़ी योजनाओं पर अपने खर्च में वृद्धि की घोषणा कर सकती है। इससे मार्केट में पैसा होगा और जीडीपी ग्रोथ में तेजी आएगी। बहुत संभव है कि सीतारमण अपने बजट भाषण में इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में अगले पांच साल में 105 ट्रिलियन रुपये खर्च करने की योजना देश के समक्ष रख सकती हैं।

7. राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में बढ़ोत्तरी संभव: वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इस बात की संभावना है कि सरकार राजकोषीय घाटे से जुड़े लक्ष्य को कुल जीडीपी के 3.3 फीसद से बढ़ाकर 3.8 कर सकती है।

दुनियाभर में स्लोडाउन के बीच इकोनॉमी को गति देने की चुनौतीः सीतारमण के सामने इस बार बजट में संतुलन कायम करने की चुनौती है, क्योंकि एक तरफ आर्थिक सुस्ती के कारण आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है। दूसरी ओर टैक्स कलेक्शन भी उम्मीद से काफी कम रहने वाला है। चालू वित्त वर्ष में विनिवेश का लक्ष्य काफी अंतर से चूक जाने की संभावना है, ऐसे में यह किसी भी तरह सरकार के लिए राहत की बात नहीं है। दूसरी तरफ अगर सरकार कंज्यूमर डिमांड को बढ़ाने के लिए कुछ बोल्ड कदम उठाए तो उससे राजकोषीय घाटा और बढ़ जाएगा। इसके लिए आने वाले समय में टैक्स में वृद्धि करनी होगी और महंगाई बढ़ जाएगी। सीतारमण के समक्ष इनके बीच संतुलन बनाने की चुनौती है।


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