हाट बाजारों की पुरानी स्कीम को नए रूप में पेश करने की तैयारी, स्कीम को रफ्तार के लिए आम बजट में विशेष प्रावधान की संभावना
माना जा रहा है कि आगामी बजट में अपनी मंडी कानून में सुधार करने वाले राज्यों के लिए कुछ प्रोत्साहन देने के प्रावधान किये जा सकते हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। हाट बाजारों की पुरानी स्कीम ग्रामीण एग्रीकल्चरल मार्केट (ग्राम) को नये रंग रुप में पेश करने की केंद्र सरकार की तैयारी है। कृषि उपज बेचने की सहूलियत के लिए किसानों के नजदीक तक मंडियों की सुविधा देने की दिशा में दो साल पहले यह स्कीम शुरु की गई थी। लेकिन यह रफ्तार नहीं पकड़ पाई, जिसके लिए आगामी आम बजट में विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं। घोषित 22 हजार में से मुश्किलन गिनती की मंडियों में ही मूलभूत सुविधाएं मुहैया हैं। किसानों की आमदनी में सुधार के लिए सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में कई अहम घोषणाएं कर रखी थी, जिन्हें पटरी पर लाने के लिए अभी बहुत कुछ करनां बाकी है। इसी क्रम में उपज की बिक्री के लिए मंडियां विकसित करने की योजना 'ग्राम' से बड़ी उम्मीदें हैं। लेकिन इनका विकास न होने से इसका फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है। इनमें राज्यों की भूमिका भी अहम है।
मंडी कानून में सुधार के लिए राज्यों को कई तरह के प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। आम बजट में इसके लिए विशेष प्रावधान की संभावना है। मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अभी तक केवल 60 फीसद मंडियों का ही सर्वेक्षण हो सका है। इन दो सालों में केवल इन ग्रामीण बाजारों की जरूरतों को जानने की कोशिश की गई है। सर्वेक्षण के मुताबिक 72 फीसद मंडियों में खुदरा कारोबार होता है, जबकि 4 फीसद में केवल थोक व्यवसाय होता है और 24 फीसद ऐसे ग्रामीण बाजार में थोक व खुदरा दोनों तरह के कारोबार होते हैं। इनमें से 69 फीसद साप्ताहिक बाजार लगते हैं, जबकि 11 फीसद रोजाना लगते हैं। 20 फीसद अन्य हैं। देश के 70 फीसद ग्रामीण बाजारों का मालिकाना हक स्थानीय निकायों के पास है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि इन ग्रामीण हाट व बाजारों में मूलभूत सुविधाओं का नितांत अभाव है। पक्की सड़कों के जुड़े बाजार केवल 15 फीसद है, जबकि शौचालय केवल तीन फीसद बाजारों में है। 10 फीसद बाजारों में चहारदीवारी का निर्माण किया गया है। चार फीसद बाजारों के पास ही गोदाम हैं। दरअसल, इन बाजारों को विकसित करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय की तमाम योजनाओं को इसमें लगा दिया गया, लेकिन तालमेल के अभाव में बहुत कुछ नहीं हो सका है। ग्रामीण बाजारों को विकसित करने के साथ उन्हें मंडी कानून से अलग रखने की कवायद जारी है। केंद्र सरकार से बाबत अपील की है। माना जा रहा है कि आगामी बजट में अपनी मंडी कानून में सुधार करने वाले राज्यों के लिए कुछ प्रोत्साहन देने के प्रावधान किये जा सकते हैं।