खाड़ी क्षेत्र की खस्ताहाल इकोनॉमी से भारत की चिंता बढ़ी, वहां रहने वाले भारतीय हर साल भेजते हैं 50 अरब डॉलर
कोविड-19 ने जिस तरह से क्रूड आधारित इकोनॉमी वाले खाड़ी देशों की माली हालात को नुकसान पहुंचाया है उससे भारत के रणनीतिकार भी खासे चिंतित हैं।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। कोविड-19 ने जिस तरह से क्रूड आधारित इकोनॉमी वाले खाड़ी देशों की माली हालात को नुकसान पहुंचाया है, उससे भारत के रणनीतिकार भी खासे चिंतित हैं। कोरोना वायरस के प्रकोप के साथ ही तलहटी में पहुंच गई क्रूड की कीमतों ने सऊदी अरब, कुवैत, यूएई, बहरीन, ओमान जैसे देशों की तमाम आर्थिक गतिविधियों को लगभग ठप कर दिया है। ऐसे में वहां काम करने वाले भारतीयों के समक्ष भी अनिश्चितता पैदा हो गई है।
पिछले एक महीने में इन देशों में स्थित भारतीय मिशनों में वहां काम करने वाले भारतीयों की तरफ से मदद के लिए कॉल आने की संख्या सैकड़ों गुणा बढ़ चुकी है। रोजगार जाने की बात कहते हुए लाखों लोगों ने भारत लौटने की मंशा जताई है। गुरुवार से जो विशेष उड़ानें इन देशों से भारत के लिए चलाई जानी हैं, उनमें बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए ये मजदूर ही स्वदेश आ रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) के छह सदस्य देशों (बहरीन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, ओमान व कुवैत) में भारतीय दूतावासों से तकरीबन सात-आठ लाख लोगों ने संपर्क स्थापित किया है। इनमें से अधिकांश ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी पर संकट पैदा हो गया है, इसलिए वे भारत लौटना चाहते हैं। इनमें से कई देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कच्चे तेल से चलती है।
कच्चे तेल की कीमतों में दो महीनों में 80 फीसद तक की गिरावट आने से इन देशों की विकास दर बुरी तरह से लड़खड़ाने के संकेत मिलने लगे हैं। कोविड-19 की महामारी ने हालात को और खराब कर दिया है। अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक इन देशों में 10 हजार भारतीय अभी तक कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। स्थिति यह है कि कुवैत सरकार ने हाल ही में कहा है कि अवैध तरीके से रहने वाले भारतीयों को वह अपने पैसे से भारत भेजने को तैयार है।
दूसरे देश भी चाहते हैं कि जिन लोगों के पास रोजगार नहीं है, वे अपने देश चले जाएं। पिछले दिनों विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खाड़ी के देशों के विदेश मंत्रियों से जब बात की थी, तब उन्हें इसका संकेत भी दिया गया था।
आएंगी कई तरह की मुश्किलें : यह हालात भारत के लिए कई वजहों से चिंता का कारण है। सबसे पहले तो जीसीसी के साथ भारत का सालाना कारोबार तकरीबन 165 अरब डॉलर का है जिसके प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है। दूसरा, खाड़ी से श्रमिकों का वापस लौटना भारत के रोजगार ढांचे पर एक अतिरिक्त बोझ होगा। एक बड़ी वजह यह है कि इन लोगों की तरफ से आने वाली विदेशी मुद्रा का प्रवाह थम जाएगा। भारत खाड़ी में काम करने वाले अपने 90 लाख देशवासियों की वजह से ही दुनिया में सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा प्राप्त करने वाला देश है। 2018-19 में 79 अरब डॉलर की राशि दुनियाभर से भारत में भेजी गई थी, जिसमें 49 अरब डॉलर की राशि जीसीसी देशों से आई थी। कहने की जरूरत नहीं कि वे परिवार जो खाड़ी से आने वाले पैसे से चलते हैं, उन्हें कठिन वक्त का सामना करना पड़ेगा।
आगे भी बड़ी चुनौती : खाड़ी देशों से जो सूचना आ रही है, वह निकट भविष्य के लिए भी कोई शुभ समाचार नहीं है। आइएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक खाड़ी देशों में तमाम बड़ी कारोबारी गतिविधियां ठप रहेंगी और वहां रोजगार के अवसरों में भारी कमी होगी। रिपोर्ट कहती है कि जीसीसी देशों को बहुत ही खराब आर्थिक स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। विश्व बैंक ने कहा है कि इन छह देशों की विकास दर घटकर 0.8 फीसद रह सकती है जो पिछले कई दशकों में सबसे कम होगी।
गोल्डमैन सैश की रिपोर्ट कहती है कि अगर क्रूड की कीमतें जल्द नहीं बढ़ती हैं तो दुबई का कंस्ट्रक्शन उद्योग उबर नहीं पाएगा। दुबई के कंस्ट्रक्शन उद्योग में सबसे ज्यादा भारतीय काम करते हैं। फिलहाल इन कंपनियों का काम रुका हुआ है और नई नियुक्तियां भी नहीं हो रही। 90 लाख भारतीयों में से 30 फीसद कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम करते हैं।