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नेट जीरो लक्ष्य पर काम शुरू: हर उद्योग के लिए होगी अलग नीति, ग्रीन हाइड्रोजन इंधन पर अगले वर्ष से युद्धस्तर पर होगा काम

ग्रीन हाइड्रोजन से सबसे कम कार्बन उत्सर्जन होता है और इसे हर देश के नेट जीरो लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी माना जा रहा है। इलेक्ट्रोलाजर एक ऐसी पद्धति है पानी से हाइड्रोर्जन व आक्सीजन कर देती है। ऐसे में जब ग्रीन हाइड्रोर्जन का इस्तेमाल किया जाता है

By NiteshEdited By: Published: Fri, 24 Dec 2021 08:52 PM (IST)Updated: Fri, 24 Dec 2021 08:52 PM (IST)
नेट जीरो लक्ष्य पर काम शुरू: हर उद्योग के लिए होगी अलग नीति, ग्रीन हाइड्रोजन इंधन पर अगले वर्ष से युद्धस्तर पर होगा काम
Work started on net zero target There will be a different policy for every industry

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से ग्लास्गो में आयोजित काप-26 सम्मेलन में भारत के लिए घोषित नेट जीरो लक्ष्यों को लेकर काम की शुरुआत हो चुकी है। इस लक्ष्य के तहत वर्ष 2070 तक भारत को अधिकांश उद्योगों में कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह से खत्म करना है। लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र सरकार सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले देश के आठ बड़े उद्योगों को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार कर रही है। रोडमैप के तहत रिफाइ¨नग, स्टील, उर्वरक, सीमेंट, जहाजरानी, रसायन, मोबिलिटी और रसोई गैस उद्योग में ऊर्जा की जरूरत का स्वरूप पूरी तरह से बदलने का खाका होगा।

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इसके तहत ही नेशनल हाइड्रोजन मिशन लागू किया जाएगा जिसे मार्च, 2022 तक कैबिनेट से मंजूरी दिलाने की तैयारी चल रही है।बिजली व अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत (रिनीवेबल ऊर्जा-आरई) मंत्री आर के ¨सह ने दैनिक जागरण को सरकार को इन तैयारियों के बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2070 तक देश में कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह से खत्म करने के लिए अभी से तैयारी शुरू हो गई है लेकिन चरणबद्ध तरीके से कार्यक्रम को लागू करने का काम वर्ष 2024-25 से शुरु होगा। अलग अलग उद्योगों में क्या क्या बदलाव लाने हैं, इसको लेकर हमने शुरुआती तौर पर एक कैबिनेट प्रस्ताव तैयार किया था लेकिन कुछ मंत्रालयों से इसमें और बदलाव के सुझाव आये हैं। यह एक रोडमैप होगा जो विभिन्न उद्योगों में लागू किया जाएगा। मसलन, रिफाइ¨नग उद्योग एक बड़ा सेक्टर है जहां कार्बन उत्सर्जन होता है।

इस सेक्टर में हमारा मकसद यह है कि वर्ष 2030 तक वहां 50 फीसद ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल शुरु हो जाएगा। इसके लिए हमें बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रोलाजर घरेलू स्तर पर बनाने की जरूरत होगी। हमारी योजना यह है कि वर्ष 2024 से देश में इलेक्ट्रोलाइजर का निर्माण शुरू हो जाए। पहले चरण में ही हम 8800 मेगावाट क्षमता का इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण प्लांट लगाने की ठेका देंगे। इसे प्रोडक्शन ¨लक्ड इंसेटिव (पीएलआइ) स्कीम के तहत लगाया जाएगा।बताते चलें कि अभी पेट्रोलियम रिफाइ¨नग सेक्टर में ग्रे हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है जो प्राकृतिक गैस या कच्चे तेल से निकाला जाता है। इससे काफी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है। जबकि ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में रिनीवेबल इनर्जी (सौर, पवन आदि) का इस्तेमाल होता है और इसे बनाने के लिए इलेक्ट्रोलाजर जरूरी होते हैं।

ग्रीन हाइड्रोजन से सबसे कम कार्बन उत्सर्जन होता है और इसे हर देश के नेट जीरो लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी माना जा रहा है। इलेक्ट्रोलाजर एक ऐसी पद्धति है जो पानी से हाइड्रोर्जन व आक्सीजन कर देती है। ऐसे में जब ग्रीन हाइड्रोर्जन का इस्तेमाल किया जाता है तो उत्सर्जन के तौर पर पानी ही बाहर निकलता है। पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जिस राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की बात की है उसका देश में ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल बढ़ाना ही उद्देश्य है। अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत (आरई) मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से शुरूआत में 12000 मेगावाट क्षमता के लिए इलेक्ट्रोलाजर निर्माण को पीएलआइ के तहत मंजूरी देने का प्रस्ताव किया था।

अभी 6000 मेगावाट क्षमता की मंजूरी मिली है।सरकार की योजना आगे चल कर रसोई गैस में भी ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करने की है। लेकिन इसके लिए गैस पाइपलाइन के साथ ही गैस चूल्हों में भी कुछ बदलाव करने होंगे। इस बारे में आरई मंत्रालय और देश की प्रमुख गैस कंपनी गेल लिमिटेड के साथ बातचीत की जा रही है। बिजली मंत्री आर के ¨सह ने बताया कि हम चाहते हैं कि रसोई गैस में भी पांच फीसद ग्रीन हाइड्रोर्जन का मिश्रण से शुरुआत हो। जहाजरानी उद्योग के बारे में उन्होंने बताया कि पायलट परियोजना के तौर पर दो बड़े जहाजों को बिजली चालित बैट्री से चलाने पर काम शुरू किया जाएगा। इस उद्योग को लेकर अभी काफी शोध करने की जरूरत होगी। जबकि उर्वरक उद्योग के बारे में उन्होंने बताया कि यहां भी काफी कार्बन उत्सर्जित होता है। यहां ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल जल्दी व बड़े स्तर पर किया जाएगा। कोशिश यह होगी कि वर्ष 2034-35 तक 75 फीसद उर्वरक उद्योग में पर्यावरण अनुकूल ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल होने लगे।


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