मप्र के सुगंधित चावल को बासमती के दर्जे पर विरोध
बासमती राइस फार्मर्स एंड एक्सपोर्टर्स डवलपमेंट फोरम का कहना है कि सरकार को बासमती ब्रांड की उसी तरह सुरक्षा करनी चाहिए जैसे फ्रांस अपनी शैंपेन की सुरक्षा करता है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। मध्य प्रदेश में उगाए जाने वाले बासमती चावल को भी ज्यॉग्रफीकल इंडीकेटर (जीआइ) पेटेंट दिए जाने के विरोध में उद्योग संगठन उतर आए हैं। संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार को बासमती चावल की ग्लोबल प्रतिष्ठा को बचाना चाहिए और मध्य प्रदेश समेत दूसरे राज्यों को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए। अगर ऐसा किया गया तो उद्योग और बासमती की पैदावार वाले पारंपरिक राज्यों के किसानों पर इसका बुरा असर पड़ेगा।
बासमती राइस फार्मर्स एंड एक्सपोर्टर्स डवलपमेंट फोरम का कहना है कि सरकार को बासमती ब्रांड की उसी तरह सुरक्षा करनी चाहिए जैसे फ्रांस अपनी शैंपेन की सुरक्षा करता है। फोरम की सदस्य प्रियंका मित्तल ने एक बयान में कहा कि मध्य प्रदेश बासमती चावल का ब्रांड हासिल करना चाहता है। अगर बासमती उत्पादक क्षेत्रों में मध्य प्रदेश को भी शामिल किया जाता है तो इससे ब्रांड की खासियत पर असर पड़ेगा। इससे न सिर्फ पारंपरिक राज्यों बल्कि पूरे देश ही इससे नुकसान होगा। हालांकि मध्य प्रदेश बासमती ब्रांड के तहत अपने सुगंधित चावल को शामिल कराने में पहले विफल हो चुका है। लेकिन अब वह फिर से प्रयास कर रहा है। इस समय पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर के दो जिलों में उगने वाले सुगंधित चावल को बासमती का दर्जा हासिल है।
इन राज्यों में उगाए गए सुगंधित चावल को बासमती के तौर पर दर्जा मिलता है। इसके लिए जीआइ का चिन्ह इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे उपभोक्ता को क्वालिटी और उत्पादक क्षेत्र का भरोसा मिलता है। दार्जिलिंग की चाय, महाबलेश्वर की स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू कुछ और जीआइ धारक भारतीय उत्पाद हैं।