अनधिकृत शुल्क बन रहा ई-पेमेंट की राह का रोड़ा
अनधिकृत शुल्कों और ऊंची मर्चेट डिस्काउंट दर (एमडीआर) की वजह से ऑनलाइन भुगतान व्यवस्था गति नहीं पकड़ रही है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। अनधिकृत शुल्कों और ऊंची मर्चेट डिस्काउंट दर (एमडीआर) की वजह से ऑनलाइन भुगतान व्यवस्था गति नहीं पकड़ रही है, जबकि सरकार इसे बढ़ावा देने की हर संभव कोशिश कर रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मुंबई द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक एमडीआर की बाजार को खराब करने वाली मूल्य नीति और बैंकों और बड़े मर्चेट्स की ओर से सरचार्ज लिए जाने की धोखाधड़ी के कारण ऑनलाइन भुगतान रफ्तार नहीं पकड़ रही है। छोटे व मझोले मर्चेट्स और आम ग्राहकों को होने वाले नुकसान के कारण डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने की सरकार की कोशिशों को धक्का पहुंच रहा है।
अध्ययन में कहा गया है कि 2018 में मर्चेट्स पर क्रेडिट कार्ड एमडीआर का करीब 10,000 करोड़ रुपये का अनुमानित बोझ पड़ा है। यह डेबिट कार्ड एमडीआर के मद में आई कुल 3,500 करोड़ रुपये की लागत के मुकाबले काफी अधिक है। जबकि मूल्य के लिहाज से क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड से 2018 में 5.7 लाख करोड़ रुपये का लगभग समान लेन-देन हुआ है।
स्टैटिस्टिक्स के प्रोफेसर आशीष दास द्वारा कराए गए अध्ययन ‘टु सरचार्ज और नॉट टु सरचार्ज’ में कहा गया है कि अनधिकृत शुल्कों का डिजिटल भुगतान करने वालों पर भी काफी बोझ पड़ा है। ऑनलाइन भुगतान प्रणाली के मामले में इसके कारण बैंकों और उनके पेमेंट फैसिलिटेटर्स/एग्रीगेटर्स द्वारा अकेले 2018 में 200 करोड़ रुपये की वसूली हुई है। यह न्यूनतम अनुमान है क्योंकि यह अध्ययन सिर्फ ऑनलाइन क्रेडिट और डेबिट कार्ड पेमेंट तक ही सीमित है। साधारण कार्ड उपयोगकर्ताओं को यह पता नहीं होता है कि इस वसूली की देनदारी बैंकों की बनती है। बैंकों की यह जिम्मेदारी है कि वह कार्ड और भीम-यूपीआइ उपयोगकर्ताओं को इन अवैध शुल्कों से बचाए।