ट्रांसपोर्टरों ने ट्रकों पर थर्ड पार्टी बीमा प्रीमियम दरों में बढ़ोतरी के प्रस्ताव का किया विरोध
ट्रांसपोर्टरों के विरोध व चक्का जाम की धमकी को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा इरडा के अफसरों के साथ ट्रांसपोर्टरों की बैठक बुलाई थी
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। ट्रांसपोर्टरों ने ट्रकों पर थर्ड पार्टी बीमा प्रीमियम दरों में 26 फीसद की बढ़ोतरी के प्रस्ताव का विरोध करते हुए थर्ड पार्टी प्रीमियम को डीटैरिफ यानी नियंत्रण मुक्त करने और दुर्घटना मुआवजे पर सीमा बंदी लागू करने का सुझाव दिया है। बीमा नियामक प्राधिकरण इरडा ने इस पर विचार का भरोसा दिया है।
थर्ड पार्टी प्रीमियम दर में बढ़ोतरी के प्रस्ताव पर ट्रांसपोर्टरों के विरोध व चक्का जाम की धमकी को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा बीमा नियामक प्राधिकरण के अफसरों के साथ ट्रांसपोर्टरों की बैठक बुलाई थी। इसमें ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआइएमटीसी) के प्रतिनिधियों ने थर्ड पार्टी बीमा प्रीमियम दर में बार-बार होने वाली बढ़ोतरी को अनुचित बताते हुए थर्ड पार्टी बीमा को डीटैरिफ यानी नियंत्रण मुक्त करने तथा दुर्घटना की स्थिति में देय मुआवजे की राशि पर सीमा बंदी लागू करने का सुझाव दिया।
प्रतिनिधियों का कहना था कि ट्रांसपोर्टरों तथा ट्रक वालों के हितों के साथ किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता है। इसलिए न केवल बढ़ोतरी के प्रस्ताव को वापस लिया जाए। जिन ट्रांसपोर्टरों ने नई पॉलिसी ली है या पिछली पालिसी का नवीकरण कराया है, उन्हें पिछले वर्ष से वसूला गया अतिरिक्त प्रीमियम वापस किया जाए। एआइएमटीसी के अध्यक्ष एस. के. मित्तल के अनुसार बीमा नियामक ने सदस्य कंपनियों के साथ सुझावों पर विचार करने तथा अगले सप्ताह एक और बैठक करने का भरोसा दिया है।
इस बीच इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग (आइएफटीआरटी) ने थर्ड पार्टी बीमा पर ट्रांसपोर्टरों के रुख को आधा सही और आधा गलत करार दिया है। आइएफटीआरटी के संयोजक एस. पी. सिंह ने कहा कि जहां थर्ड पार्टी प्रीमियम को डीटैरिफ करने की ट्रांसपोर्टरों की मांग उचित है। वहीं बीमा कंपनी के दायित्व को सीमित करने का विचार एकदम बेतुका है। इस तथ्य को जितनी जल्दी समझ लिया जाए, अच्छा होगा।
उन्होंने कहा कि दुर्घटना क्षतिपूर्ति के मामले को पूरी तरह एक्सीडेंट क्लेम्स टिब्यूनल (मैक्ट) पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि मैक्ट मुआवजे का निर्धारण पीड़ित की आयु, शैक्षिक योग्यता, आमदनी तथा आश्रितों के आधार पर करता है। न कि बीमा कंपनी की सुविधा पर। वैसे भी मुआवजे पर सीमा बंदी सड़क सुरक्षा के बुनियादी सिद्धांत के विरुद्ध है। इस संबंध में सरकार को भी अपनी सोच में बदलाव करना चाहिए।