जानिए, ब्रिटेन के ईयू छोड़ने का भारतीय बाजार पर क्या पड़ा असर
भारत के वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर जिस गंभीरता से इसके असर को कम करने की बात कह रहे हैं ।
नई दिल्ली। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (ईयू) के बाहर निकलने के फैसले का दुनिया भर की बाजारों पर असर होगा, भारत भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। भारत के वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर जिस गंभीरता से इसके असर को कम करने की बात कह रहे हैं उससे समझ में आता है कि भारत के लिए इसके परिणाम कितने गहरे और दूरगामी हो सकते हैं। भारत के वित्त मंत्री ने अाश्वासन देते हुए कहा कि भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, इसलिए भारत इससे निपटने के लिए सक्षम है।
आर्थिक असर
ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (ईयू) के बाहर निकलने के फैसले अाने के साथ शेयर मार्केट में तेजी से गिरावट अाई। सेंसेक्स 1000 से अधिक अंकों की गिरावट के साथ खुला लेकिन अंत तक 400 अंक रिकवर कर करीब 600 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुअा।
क्यों अाई गिरावट
-शेयर मार्केट में आने वाली अस्थिरता से जो नुक़सान होगा वो तो होगा ही, भारत और ब्रिटेन दोनों बड़े व्यापारिक साझीदार हैं। ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति डवांडोल होने का मतलब होगा भारत पर सीधा असर।
-भारत की सैकड़ों बड़ी और मझोली कंपनियां ब्रिटेन में सक्रिय हैं, उन पर आर्थिक अस्थिरता का जो असर पड़ा, वह भारत को भी प्रभावित किया।
-मिसाल के तौर पर टाटा समूह ब्रिटेन की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है, टाटा समूह निश्चित तौर पर जनमत संग्रह के परिणाम को लेकर चिंतित है क्योंकि टाटा मोटर्स की कमाई का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा ब्रिटेन से आता है।
-यूरोप और ब्रिटेन में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों और ऐसी फर्मों जिनकी वहां उत्पादन इकाइयां हैं इस फैसले से बुरी तरह प्रभावित हुई।
-भारत की करीब 800 कंपनियां ब्रिटेन में ऑपरेट कर रही हैं जिससे करीब 10 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है। टाटा मोटर्स के स्टॉक पहले से ही 12 प्रतिशत गिर चुके हैं।
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कहां से मिला सपोर्ट
- विदेशी मुद्रा भंडार की संतोषजनक स्थिति, मुद्रास्फीति के नीचे आने तथा बुनियादी सुधारों पर आगे बढ़ने की वजह से भारत को मिला सपोर्ट।
- निवेशकों का कमोडिटी मार्केट की अोर रुख होने से मार्केट में सुधार हुअा।
- वित्त मंत्री अरुण जेटली अौर रिजर्व बैंक के गवर्नर रगुराम राजन के अाश्वासन से सुधरा शेयर बाजार।
जानिए, क्या अागे क्या होगा असर
-ब्रिटेन में काम कर रहीं टीसीएस, एचसीएल टेक, इन्फोसिस जैसी आईटी कंपनियों पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इनका 25 से 30 फीसदी रेवन्यू यूरोजोन से ही आता है।
-फार्मा कंपनी अरबिंदो फार्मा और आईसीआईसीआई, एक्सिस बैंक भी ब्रिटेन में काम कर रही हैं। कई भारतीय कंपनियां ब्रिटेन से अपने ऑपरेशंस पूरे ईयू के लिए चला रहीं हैं । ब्रेग्जिट के कारण ब्रिटेन अब घरेलू कानून बदलेगा ऐसी स्थिति में इन कंपनियों को भी अपनी रणनीति बदलनी पड़ेंगी।
-करीब 12 फीसदी कोरस का निर्यात ईयू को होता है। ब्रेग्जिट के बाद ईयू देशों में इंपोर्ट टैरिफ बढ़ा सकते हैं जिस से स्टील की मांग में गिरावट आ सकती है।
-सबसे ज्यादा असर टाटा मोटर्स पर पड़ने की संभावना है। टाटा मोटर्स ने ब्रिटेन की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) का अधिग्रहण किया हुआ है। जेएलआर बाकी यूरोप में करीब 35 से 40 प्रतिशत कारों की सप्लाइ करता है। ब्रेग्जिट से जेएलआर की कारें बाकी लग्जरी गाड़ियों के मुकाबले महंगी हो जाएंगी।
-भारत की करीब 800 कंपनियां ब्रिटेन में ऑपरेट कर रही हैं जिससे करीब 10 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है।
-ट्रेड के मामले में भारत को ब्रेग्जिट से फायदा होने की उम्मीद है। पिछले एक दशक से भारत का ब्रिटेन के साथ ट्रेड बढ़ा है और पिछले पांच सालों से ब्रिटेन का ईयू के साथ ट्रेड कम होता चला गया है। भारत अब ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय ट्रेड अग्रीमेंट को अपने ज्यादा फायदे के हिसाब से कर सकता है।
-भारत पिछले आठ सालों से ईयू के साथ मुक्त व्यापार संधि करना चाहता है लेकिन ईयू के कठिन कानूनों के कारण यह अब तक संभव नहीं हो पाया है। भारत का ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय ट्रेड 2016 में 14 बिलियन डॉलर के करीब है। भारत करीब 9 बिलियन डॉलर के गुड्स और सर्विसेज का निर्यात करता है और ब्रिटेन से केवल 5 बिलियन डॉलर के आसपास का आयात करता है।
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कच्चे तेल में गिरावट से भारत को मिलेगा लाभ
ब्रिटेन के ईयू से अलग होने की घटना से हालांकि कच्चे तेल का कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन, इससे यूरोपियन यूनियन मंदी अाने की संभावना है। इसके चलते पिछले कुछ दिनों से चढ़ रही कच्चे तेल की कीमतों में फिर गिरावट की संभावना है। यह भारत के लिए फायदे की बात होगी। इससे भारत एक्सपोर्ट में कमी से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकेगा अौर विदेशी मुद्रा भंडार में मजबूती बनाए रखने में सफलता मिलेगी।
आवाजाही पर पड़ेगा असर
-ऐसे भारतीयों की संख्या काफी बड़ी है जिनके कारोबार और परिवार बेल्जियम, इटली, फ्रांस और नीदरलैंड्स जैसे देशों में है लेकिन यूरोप में उनका मुख्य ठिकाना ब्रिटेन ही है।
-ऐसी बहुत सारी भारतीय कंपनियाँ भी हैं जिनका यूरोपीय मुख्यालय ब्रिटेन में है जबकि कारोबार कई दूसरे यूरोपीय देशों में, ऐसे लोगों और कारोबारियों पर इस फैसले का सीधा प्रभाव होगा।
-जो भारतीय कंपनियां, खास तौर पर आईटी कंपनियां अपने कर्मचारियों को आसानी से ब्रिटेन और यूरोप के दूसरे देशों में कारोबारी जरुरत के हिसाब से भेजती रही हैं उन्हें दिक्कतों का सामना करना होगा।
-अब तक ब्रिटेन का पासपोर्ट यूरोपीय पासपोर्ट है और यूरोपीय पासपोर्ट धारक ईयू के किसी भी देश में रह सकते हैं या काम कर सकते हैं लेकिन ब्रिटेन के बाहर निकलने के बाद ऐसा नहीं रह जाएगा।
भारत के गोवा में रहने वाले हजारों लोगों के पास पुर्तगाली पासपोर्ट है जबकि पुड्डुचेरी के बहुत सारे लोगों के पास फ्रांसीसी पासपोर्ट है, इनमें से बहुत सारे लोग अपने पुर्तगाली और फ्रांसीसी पासपोर्ट के साथ ब्रिटेन में रह रहे हैं, ब्रिटेन के यूरोपीय संघ का हिस्सा नहीं रहने पर वे वहां नहीं रह पाएंगे।
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