दिवालिया प्रक्रिया में घर खरीदारों को मिले अधिकारों की होगी समीक्षा, कंपनियां हो रहीं हलकान
रेरा को यह अधिकार मिलना चाहिए कि कम से कम दो-तिहाई ग्राहकों के समूह की शिकायत के बाद ही कंपनी को दिवालिया प्रक्रिया के लिए आगे ले जाया जाए।
नई दिल्ली जयप्रकाश रंजन। दिवालिया हो रही रियल एस्टेट कंपनियों में उसके घर खरीदारों को वित्तीय कर्जदाता के बराबर हक देना पूरे रियल सेक्टर की फांस बनता जा रहा है। इसे देखते हुए सरकार अब घर खरीदारों को मिले इस हक की समीक्षा करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इसकी वजह यह है कि इस अधिकार का उपयोग करते हुए अब एक-एक घर खरीदार भी कंपनियों के खिलाफ दिवालिया याचिका लेकर एनसीएलटी पहुंचने लगे हैं।
इस वजह से देशभर में दिवालिया प्रक्रिया का सामना कर रही रियल एस्टेट कंपनियों की संख्या 450 को पार कर गई है।पिछले वर्ष सरकार ने लंबित व लटकी हुई आवासीय परियोजनाओं के ग्राहकों को एक बड़ी राहत देने की व्यवस्था की थी। इसके तहत हर घर खरीदार को उसकी लक्षित परियोजना में वित्तीय कर्जदाता का हक दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया था कि अगर कोई रियल एस्टेट कंपनी दिवालिया होती है तो उस प्रक्रिया से प्राप्त राशि में घर खरीदारों का भी अधिकतम हिस्सा सुनिश्चित किया जाए। लेकिन इस व्यवस्था का एक प्रावधान पूरे रियल एस्टेट सेक्टर के गले की फांस बन गया है।
प्रावधान यह है कि अगर एक भी ग्राहक चाहे तो वह रियल एस्टेट कंपनी को दिवालिया कानून के तहत नेशनल कंपनी लॉ टिब्यूनल (एनसीएलटी) में घसीट सकती है।पहले से ही कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे रियल एस्टेट सेक्टर ने इस मामले को सरकार के विभिन्न मंत्रलयों व विभागों के सामने उठाया है। सूत्रों का कहना है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) में संबंधित प्रावधानों को बदलने पर उच्चस्तरीय समिति में विचार हो रहा है।
एक सुझाव है कि किसी भी आवासीय परियोजना से जुड़े मामले को तभी आइबीसी में शामिल किया जाए तब उसके कम से कम 100 ग्राहकों की तरफ से शिकायत आए। अगर ऐसा नहीं भी हो, तो कम से कम इतने ग्राहक हों जिनका कंपनी पर संयुक्त रूप से पांच प्रतिशत बकाया हो। लेकिन सरकार की तरफ से इस बारे में आश्वासन मिलने के बावजूद रियल एस्टेट सेक्टर बहुत उत्साहित नहीं है।
रियल एस्टेट कंपनियों के सबसे बड़े संगठन क्रेडाई के गवर्निग काउंसिल सदस्य रोहित राज मोदी का कहना है कि जब सेक्टर में एक नियामक का गठन हो गया है तो फिर उसे इस बारे में क्यों नहीं अधिकार दिया जाता। अभी बिल्डिंग के प्लान को बदलने के लिए आवासीय परियोजना के दो-तिहाई सदस्यों की मंजूरी जरूरी होती है। लेकिन उस परियोजना का संचालन कर रही कंपनी को दिवालिया में ले जाने के लिए सिर्फ दो-चार ग्राहकों का आवेदन चाहिए।
रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी यानी रेरा को यह अधिकार मिलना चाहिए कि कम से कम दो-तिहाई ग्राहकों के समूह की शिकायत के बाद ही कंपनी को दिवालिया प्रक्रिया के लिए आगे ले जाया जाए। क्रेडाई (उत्तर भारत क्षेत्र) के कोषाध्यक्ष प्रशांत सोलोमन का कहना है कि अभी देशभर में 1,600 और रियल एस्टेट कंपनियों के खिलाफ मामला एनसीएलटी में ले जाने की तैयारी है।
ज्यादातर मामलों में इक्के-दुक्के ग्राहकों की शिकायतों पर कदम उठाया जा रहा है। इससे भी ज्यादा मुश्किल यह है कि अभी एनसीएलटी में रियल एस्टेट सेक्टर से जुड़े एक भी मामले का निपटान नहीं हो पाया है। उनका कहना है कि पहले से ही देश के सात बड़े शहरों में 220 परियोजनाएं लंबित हैं और इसमें 1.74 लाख घरों का काम पूरा नहीं हो पा रहा है। अगर दिवालिया कानून के तहत इसी तरह से मामले शामिल किए जाते रहे तो यह आंकड़ा और बड़ा हो सकता है।
सेक्टर दे रहा यह सुझाव
इस स्थिति से निपटने के लिए सेक्टर का सुझाव है कि किसी भी आवासीय परियोजना से जुड़े मामले को तभी आइबीसी में शामिल किया जाए तब उसके कम से कम 100 ग्राहकों की तरफ से शिकायत आए। या फिर जो ग्राहक जाएं, कंपनी की कुल देनदारी में उनकी कम से कम पांच प्रतिशत हिस्सेदारी हो।