सुधारों पर मोदी सरकार के सुर विरोधाभासी: राहुल बजाज
बोले राहुल बजाज, सरकार और विपक्ष के बीच आपातकाल से बदतर तनाव भरे हालात।
नई दिल्ली। मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के बारे में सत्ता संभालने के बाद से ही परस्पर विरोधी संकेत दे रही है। राजग सरकार और विपक्ष के बीच तनाव के हालात आपातकाल से भी बदतर हो चुके हैं।
मशहूर उद्योगपति राहुल बजाज ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए बुधवार को कहा कि भाजपा को कांग्रेस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए ताकि संसद का मौजूदा गतिरोध खत्म हो सके। इसके लिए सत्तारूढ़ दल को खुल पहल करनी चाहिए। उन्होंने कांग्रेस को भी भाजपा की दोस्ती स्वीकार करने की सलाह दी। बजाज इकोनॉमिक इंडिया समिट में बोल रहे थे।
बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल अपनी बेलाग बातों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने मोदी सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है सुधारों के बारे में विरोधी संकेत दे रही है। एक तरफ इसके कर्ताधर्ता कहते हैं कि वे सुधारों में लगे हैं... दूसरी तरफ, उनका कहना है उनकी नई सरकार का हनीमून 100 दिन नहीं, छह महीने नहीं बल्कि एक साल का है। तो भाई आप आर्थिक सुधारों के मामले में धमाका क्यों चाहते हैं?
वित्त मंत्री अरुण जेटली कहते हैं कि 15 महीनों में आप जादू की उम्मीद नहीं कर सकते, क्योंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है। मजदूर संगठन विरोध कर रहे हैं। अगर ऐसा है, तो नरसिंह राव कैसे 1991 में एक साल के भीतर बिग बैंग आर्थिक सुधार लाने में कामयाब रहे थे।
बजाज ने मौजूदा सूरतेहाल में आर्थिक सुधारों को अपरिहार्य बताते हुए कहा कि सरकार विपक्ष के साथ बने तनाव को दूर करे। भाजपा कांग्रेस की तरफ बढ़ने के लिए खुद पहल करे। कांग्रेस भी भाजपा की दोस्ती स्वीकार करे। अन्यथा देश की यह सबसे पुरानी पार्टी कहीं वे वोट भी न खो दे, जो उसे पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान मिले थे।
राजन को तय करने दो ब्याज दरें
राहुल बजाज सुधारों से इतर ब्याज दरों के मसले पर भी सरकार की आलोचना करने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि ब्याज दरें घटाने या नहीं घटाने का फैसला पूरी तरह रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन पर छोड़ देना चाहिए। आखिरकार वह इस मुद्दे को सरकार से बेहतर समझते हैं।
राजन महंगाई को काबू में रखना चाहते हैं, जो गरीबों को सबसे ज्यादा सताती है। उन्होंने बैंकों को भी आड़े हाथ लिया। कहा कि केंद्रीय बैंक की ओर से नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) में कटौती के किए जाने के बावजूद उन्होंने कर्ज की दरों में खास कमी नहीं की।