दालें महंगी नहीं होने देगी सतर्क सरकार
बीते साल में नाकों चना चबाने को मजबूर कर देने वाली दाल को लेकर सरकार इस बार पूरी तरह सतर्क है। दालों की आपूर्ति बढ़ाने को लेकर आयात व घरेलू बाजारों में सरकार दलहन की खरीद में तत्पर है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बीते साल में नाकों चना चबाने को मजबूर कर देने वाली दाल को लेकर सरकार इस बार पूरी तरह सतर्क है। दालों की आपूर्ति बढ़ाने को लेकर आयात व घरेलू बाजारों में सरकार दलहन की खरीद में तत्पर है। महंगाई पर कड़ी नजर रखने के लिए गठित सचिव स्तर की समिति दलहन की पैदावार, स्टॉक, घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों की लगातार समीक्षा कर रही है।
खरीफ सीजन की पैदावार में मामूली कमी को भी गंभीरता से लिया गया। आपूर्ति में होने वाली इस कमी को पूरा करने के लिए घरेलू बाजार में सरकारी खरीद एजेंसियां बाजार मूल्य पर खरीद करने को उतर चुकी हैं। खाद्य मंत्रालय की अधिकृत सूचना के मुताबिक खरीफ सीजन में कुल 51 हजार टन दलहन की खरीद हो चुकी है। दलहन की इस खरीद को बफर स्टॉक के तौर पर सुरक्षित कर लिया गया है, जबकि बफर स्टॉक के लिए 50 हजार टन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
इसी तरह सरकार की नजर अंतरराष्ट्रीय जिंस बाजार पर लगी हुई है। खाद्य मंत्रालय ने दालों के आयात को बंद नहीं किया है, बल्कि जब जहां जिस मात्रा में दाल उपलब्ध हो रही है उसकी खरीद तत्काल कर रही है। 8500 टन का हालिया सौदा वाली दलहन किसी भी समय घरेलू बंदरगाह तक पहुंचने वाली है। सरकारी एजेंसियों की ओर से आयात की जाने वाली दालों को भी बफर स्टॉक में शामिल किया जा रहा है।
महंगाई पर नियंत्रण रखने वाली सचिव स्तरीय समिति की बैठक में इस बात पर विचार किया गया कि निजी कंपनियों की आयातित दालों का भी हिसाब-किताब मिलना चाहिए। स्टॉक दबाकर रखने वालों के खिलाफ छापामार कार्रवाई जारी रखी जाएगी। सभी दाल आयात करने वालों को अपनी दालों के स्टॉक के बारे में विस्तृत ब्यौरा देना जरूरी कर दिया गया है। समिति की अध्यक्षता उपभोक्ता मामले मंत्रालय सचिव विश्वनाथ कर रहे थे। बैठक में टमाटर की बढ़ी कीमतों पर चिंता जताई गई। बैठक में उपभोक्ता मंत्रालय के आला अफसरों के साथ कृषि व वाणिज्य सचिव और भारतीय खाद्य निगम, एमएमटीसी और नैफेड के अधिकारी मौजूद थे।
बैठक में तय किया गया कि चालू रबी खरीद सीजन में मसूर और चने की खरीद की जाएगी। रबी में कुल एक लाख टन दालों के खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। दालों की मांग व आपूर्ति में लगातार अंतर बढ़ता जा रहा है, जिसकी भरपाई के लिए आयात पर जोर है।