डगमगाती अर्थव्यवस्था में अगले साल सुधार
अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार और बढ़ती महंगाई ने साल भर अर्थव्यवस्था प्रबंधकों को परेशान किए रखा। अब नए साल में पूरे उद्योग जगत को नई सरकार के गठन के बाद खुशखबरियों की उम्मीद है। देश की आर्थिक वृद्धि दर पूरे साल डगमगाती रही। सरकार ने सुधारों के कई फैसले लिए और रिजर्व बैंक [आरबीआइ] से राहत की उम्मीद करती रही। मगर, बढ़ती महंगाई ने केंद्रीय बैंक को ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं दिया और 2013 ऐसे ही जूझते हुए खत्म हो गया।
नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार और बढ़ती महंगाई ने साल भर अर्थव्यवस्था प्रबंधकों को परेशान किए रखा। अब नए साल में पूरे उद्योग जगत को नई सरकार के गठन के बाद खुशखबरियों की उम्मीद है। देश की आर्थिक वृद्धि दर पूरे साल डगमगाती रही। सरकार ने सुधारों के कई फैसले लिए और रिजर्व बैंक [आरबीआइ] से राहत की उम्मीद करती रही। मगर, बढ़ती महंगाई ने केंद्रीय बैंक को ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं दिया और 2013 ऐसे ही जूझते हुए खत्म हो गया।
2013 में रुपये ने सरकार को खूब रुलाया। भारतीय मुद्रा ऐतिहासिक गिरावट का शिकार हुई और चालू खाते का घाटा [सीएडी] भी ऊपर बढ़ता रहा। इसके चलते सरकार के जख्म और हरे हो गए। पिछले वित्त वर्ष 2012-13 में आर्थिक विकास दर पांच फीसद के निचले स्तर पर पहुंच गई थी। फरवरी में वित्त मंत्रालय के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया कि चालू वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान यह वृद्धि दर 6.1 से 6.7 फीसद के बीच पहुंच जाएगी। यह सरकारी सपना बहुत जल्द टूट गया। अप्रैल-सितंबर की दूसरी तिमाही के दौरान विकास दर 4.6 फीसद पर आ गिरी। प्रमुख क्षेत्रों के संकेतक भी सरकार को राहत देने वाली नहीं रहे। आधारभूत उद्योगों और निर्यात का प्रदर्शन भी निचले स्तर पर रहा। वित्त मंत्री पी चिदंबरम और रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन लगातार प्रयास करते रहे, मगर कोई खास सफलता उन्हें हाथ नहीं लगी।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष [आइएमएफ] और विश्व बैंक की रिपोर्टो में भी वृद्धि दर पांच फीसद से नीचे रहने का अनुमान ही लगाया गया। आइएमएफ ने हाल ही में कहा था कि 2013 में भारत की विकास दर 3.75 फीसद के आसपास रहेगी, जो कि 2014 में पांच फीसद के आसपास पहुंच जाएगी। एशियाई विकास बैंक [एडीबी] ने भी वृद्धि दर अनुमान को छह से घटाकर 4.7 फीसद कर दिया। वैसे, अब एडीबी का कहना है कि 2014 में इसमें सुधार आएगा और यह छह फीसद के पास पहुंच जाएगी। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने भी इसे 6.4 फीसद से घटाकर 5.3 फीसद कर दिया।
वृद्धि दर के मोर्चे पर असफल रहने के बाद आर्थिक प्रबंधक लगातार महंगाई को थामने की कोशिश में जुटे रहे। आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दाम में तेजी के चलते आम आदमी परेशान रहा और सरकार भी जूझती रही। सरकार सबको सांत्वना देती रही कि महंगाई कम होगी मगर ऐसा हो न सका। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई दिसंबर में 11.24 फीसद पर रही। इस दौरान प्याज ने 100 रुपये के आंकड़े को भी छुआ। केंद्र में चल रही कांग्रेस नीत सरकार को इसका खामियाजा चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के रूप में उठाना पड़ा।
गिरता रुपया और बढ़ता सीएडी भी 2013 में सरकार की चिंता का सबब बना रहा। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने जून में घोषणा की कि वह बांड खरीद को धीरे-धीरे कम करेगा। इसके चलते भारत समेत पूरी दुनिया के बाजार धड़ाम हो गए। रुपया भी डॉलर के मुकाबले अगस्त में 68.85 रुपये प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गया। बीएसई के सेंसेक्स में भी भारी गिरावट देखी गई। आरबीआइ और सरकार के तमाम कदमों के बाद भारतीय मुद्रा अब 62 रुपये प्रति डॉलर के आसपास है, जबकि सेंसेक्स 21 हजार के ऊपर पर बना हुआ है। आयात और निर्यात के बीच का अंतर सीएडी सकल घरेलू उत्पादन [जीडीपी] का 4.8 फीसद हो गया। सरकार ने सोने का आयात घटाने और भारत में निवेशकों को लाने के लिए प्रयास शुरू किए। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] नियमों को कई सेक्टर में दुरुस्त किया गया। इन कदमों का 2013 में फायदा नहीं मिला। मगर 2014 में कई विदेशी कंपनियां अपना निवेश भारत में लाने वाली हैं। इनमें टेस्को, एतिहाद, सिंगापुर एयरलाइंस और एयर एशिया जैसे नाम शामिल हैं।