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सुस्ती से उबारने में ग्रामीण बाजारों की मांग अहम, रूरल इकोनॉमी पर सरकार की निगाहें

सुस्त इकोनॉमी में जान फूंकने के लिए सरकार की पहल के बाद अब रूरल इकोनॉमी पर सबकी नजरें टिकी हैं।

By NiteshEdited By: Published: Sun, 25 Aug 2019 10:40 AM (IST)Updated: Mon, 26 Aug 2019 09:26 AM (IST)
सुस्ती से उबारने में ग्रामीण बाजारों की मांग अहम, रूरल इकोनॉमी पर सरकार की निगाहें
सुस्ती से उबारने में ग्रामीण बाजारों की मांग अहम, रूरल इकोनॉमी पर सरकार की निगाहें

नितिन प्रधान, नई दिल्ली। सुस्त इकोनॉमी में जान फूंकने के लिए सरकार की पहल के बाद अब रूरल इकोनॉमी पर सबकी नजरें टिकी हैं। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि देश की इकोनॉमी को पूरी तरह सुस्ती से निकालने के लिए ग्रामीण बाजार की मांग को भी पुनर्जीवित करना होगा। मांग के मामले में शहरी बाजार से दो कदम आगे रहने वाले ग्रामीण बाजार का भविष्य मानसून और किसानों को मिलने वाली उनकी पैदावार की कीमत पर तय करेगा।

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घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के एक अध्ययन के मुताबिक बीते दो साल से लगातार मानसून सामान्य से कम रहने की वजह से रूरल इकोनॉमी को काफी झटका लगा है। हालांकि इस बीच सरकार की तरफ से ग्रामीण सड़कों और अफोर्डेबल हाउसिंग पर हुए खर्च ने इस सेक्टर को कुछ राहत दी है जिसकी वजह से रोजगार और आमदनी के वैकल्पिक अवसर बने हैं। लेकिन कृषि उत्पादों की कीमतें नीची रहने से रूरल इकोनॉमी में मांग में गिरावट का रुख रहा क्योंकि बीते दो साल यानी 2017 और 2018 में किसानों की औसत सालाना आमदनी 65 हजार रुपये के आसपास स्थिर बनी रही।

मार्केटिंग रिसर्च एजेंसी नील्सन का मानना है कि ग्रामीण बाजारों में सुधार काफी हद तक देश में बारिश के उचित डिस्ट्रीब्यूशन पर निर्भर करता है। एजेंसी के मुताबिक ग्रामीण बाजारों में सुस्ती की रफ्तार शहरी बाजार से दोगुनी रही है। जबकि आमतौर पर ग्रामीण बाजार में ग्रोथ शहरी बाजार के मुकाबले तीन से पांच परसेंटेज प्वाइंट अधिक रहती है। अप्रैल से जून की तिमाही में ग्रामीण बाजार की ग्रोथ 10.3 परसेंट रह गई। यह पिछले साल की पहली तिमाही में 12.7 परसेंट रही थी। अकेले एफएमसीजी कंपनियों की ग्रामीण बाजार की ग्रोथ घटकर 9.7 परसेंट पर आ गई। नील्सन के मुताबिक खासतौर पर उत्तर भारत के ग्रामीण बाजार में यह गिरावट बाकी क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा रही है।

क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट धर्मकीर्ति जोशी की रिपोर्ट के मुताबिक इकोनॉमी की मौजूदा स्थिति में एग्रीकल्चर सेक्टर इसलिए भी अहम हो गया है क्योंकि ग्रोथ के अन्य महत्वपूर्ण इंजन मसलन खपत, इनवेस्टमेंट और एक्सपोर्ट की हालत ज्यादा पतली है। हालांकि एग्रीकल्चर की जीडीपी में हिस्सेदारी केवल 14 परसेंट है। बावजूद इसके इस वर्ष मानसून का पूरे देश में समान वितरण ज्यादा अहम होगा। क्योंकि यही तय करेगा कि इस बार पैदावार कैसी होगी और उसकी कीमत किसानों को कैसी मिलती है।

अलबत्ता प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत मिलने वाली छह हजार की राशि का कुछ असर ग्रामीण क्षेत्र की आमदनी पर दिख सकता है। लेकिन रूरल इकोनॉमी की ग्रोथ बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगी कि कृषि उपज की कीमतों का बाजार कैसा रहता है। एजेंसी का मानना है कि खाद्य उत्पादों की कीमतों में यदि वृद्धि होती है तो किसानों की आमदनी में आए ठहराव की स्थिति से निकला जा सकता है।

देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन आरसी भार्गव का मानना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषणाएं अर्थव्यवस्था की मजबूती की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगी। तीन से चार महीने के भीतर न केवल ऑटोमोबाइल सेक्टर, बल्कि सभी सेक्टर में जबर्दस्त उछाल आएगा। लेकिन इसके लिए घोषणाओं के अनुरूप तेजी से काम करने की जरूरत है। अर्थव्यवस्था तेजी से मजबूत तब होती है, जब हर सेक्टर में उछाल आए। यदि छोटी इकाइयों में कारोबार प्रभावित होगा तो इसका असर बड़ी इकाइयों पर भी पड़ेगा।

दैनिक जागरण से बातचीत में भार्गव ने कहा कि सरकारी विभागों के लिए नई गाड़ियां खरीदने पर लगी रोक हटा ली गई है। एमएसएमई सेक्टर को लंबित रिफंड 30 दिनों में और भविष्य के रिफंड पहले से तय 60 दिनों की समय-सीमा में निपटाने की घोषणा से माहौल बेहतर होगा। कई साल तक सरकारी विभागों का पेमेंट नहीं आता है। इससे काम करने से कंपनियां पीछे हट जाती हैं। जब तय समय में पेमेंट होगा तो कंपनियां कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगी। भार्गव का कहना था कि पब्लिक सेक्टर के बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपये देने की घोषणा भी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। करदाताओं को नोटिस केंद्रीयकृत प्रणाली से जारी करने की बात कही गई है। इन सभी घोषणाओं का असर तेजी से होगा। 


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