रुपया भी आया मंदी की चपेट में
आम तौर पर जब डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरती है तो इससे निर्यात को फायदा होता है। मगर इस बार ऐसा दावा करना मुश्किल है। जानकारों की मानें तो ग्लोबल बाजार में मांग की कमी और भारतीय निर्यातकों में प्रतिस्पद्र्धा के अभाव की वजह से देश के निर्यात
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आम तौर पर जब डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरती है तो इससे निर्यात को फायदा होता है। मगर इस बार ऐसा दावा करना मुश्किल है। जानकारों की मानें तो ग्लोबल बाजार में मांग की कमी और भारतीय निर्यातकों में प्रतिस्पद्र्धा के अभाव की वजह से देश के निर्यात की स्थिति में खास फायदा होता नहीं दिख रहा है। आज चीन की अर्थव्यवस्था के गहरे संकट में फंसने के आसार गहराने के बाद ग्लोबल बाजारों के साथ रुपये की हालत भी पतली हो गई है। रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की तरफ से साफ तौर पर रुपये को बचाने की हरसंभव कोशिश का आश्वासन भी रुपये को डॉलर के मुकाबले 83 पैसे गिरने से नहीं बचा पाया। रुपया सोमवार को 66.66 पर बंद हुआ। यह भारतीय मुद्रा का पिछले दो वर्षों का न्यूनतम स्तर है। इससे कांग्रेस को रुपये के वेंटीलेटर पर होने का ताना कसने का मौका मिल गया है।
सेंसेक्स सोमवार को सुबह एक हजार से ज्यादा अंकों की गिरावट के साथ खुला। इसका असर मुद्रा बाजार पर पडऩा भी तय था। रुपये में एकमुश्त 62 पैसे की तेज गिरावट को देखते हुए रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन को हस्तक्षेप करना पड़ा। एक सेमिनार के दौरान राजन ने रुपये को यह कर हिम्मत देने की कोशिश की कि देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। इसका इस्तेमाल रुपये को मजबूत बनाने के लिए किया जाएगा। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 355 अरब डॉलर का है। इसके अलावा 25 अरब डॉलर का अतिरिक्त रिजर्व भी है। लेकिन इस आश्वासन का कोई असर नहीं हुआ। बाजार बंद होते वक्त डॉलर के मुकाबले यह 83 पैसे कमजोर गिर चुका था। किसी भी एक कारोबारी दिन में रुपये में दर्ज की गई यह बड़ी गिरावट थी।
निर्यातकों के संगठन फियो के अध्यक्ष एससी रल्हन का कहना है कि रुपये की कीमत में इतनी ज्यादा अस्थिरता से निर्यात को कोई फायदा नहीं होने वाला है। इस अस्थिरता को उत्पादों की कीमतों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। जिन निर्यातकों ने हेजिंग किया हो उनकी लागत बढ़ेगी। जिन्होंने हेजिंग नहीं किया हो उन्हें थोड़ा बहुत फायदा हो सकता है। फियो अध्यक्ष की यह बात डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं की कीमतों मेंं आई गिरावट को देख कर भी साफ हो जाता है। पिछले एक महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया 3.2 फीसद कमजोर हुआ है, जबकि चीन के युआन में 4.4, ब्राजीली रियाल में 4.1, मलयेशिया के रिंगिट में 8.9 और रूस के रूबल में 15.7 फीसद की गिरावट हुई है। यानी इन देशों के साथ भारतीय निर्यातकों का मुकाबला होगा। भारत का निर्यात भी बीते साल नवंबर से लगातार घट रहा है।