RTI में खुलासा: 2015 से मुंबई में 19671 करोड़ के फ्रॉड, 12 साल में दोगुने हो गए वित्तीय अपराध
मुंबई की आर्थिक विंग की ओर से आरटीआई के जरिए मिले आंकड़ो के मुताबिक साल 2006 से अब तक वित्तीय अपराधों की संख्या दोगुनी हो गई है।
नई दिल्ली (मिड डे)। नीरव मोदी, विजय माल्या और ललित मोदी सिर्फ ऐसे अपराधी नहीं हैं जो पुलिस को अपने आगे पीछे भगा रहे हैं। जब ये तीनों मामलों की जांच सीबीआई कर रही है तब मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध विंग (ईओडब्ल्यू) 184 वित्तीय अपराधियों की तलाश में है, जो कि भाग चुके हैं। आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 से अब तक ईओडब्ल्यू कुल 19,671 करोड़ के मामले दर्ज कर चुकी है, लेकिन इसमें से सिर्फ 2.5 करोड़ रुपए ही निवेशकों तक वापस पहुंच पाए हैं।
ऐसे में जब सीबीआई ललित मोदी, नीरव मोदी और विजय माल्या का पीछा कर रही है मुंबई में भी ईओडब्ल्यू की स्थिति बेहतर नहीं है। यहां तक कि जिन मामलों में विभाग ने कामयाबी हासिल की, उसमें सजा की दर काफी कम है। साल 2015 से 9 फरवरी 2018 तक अदालत में गए 80 मामलों में से सिर्फ 20 मामलों में ही अपराध सिद्ध हो पाया, जबकि 60 मामलों में अपराधियों को बरी कर दिया गया।
मुंबई की आर्थिक विंग (EOW) की ओर से आरटीआई के जरिए मिले आंकड़ो के मुताबिक साल 2006 से अब तक वित्तीय अपराधों की संख्या दोगुनी हो गई है। वहीं बीते तीन वर्षों में मुंबई में 19,671 करोड़ रुपए के फ्रॉड सामने आए हैं। इन फ्रॉड के कुल 80 मामले अदालत तक गए जिनमें सिर्फ 20 मामलों में ही अपराध सिद्ध हो पाया।
बढ़ता अपराध:
यह जानकारी उस वक्त सामने आई जब आरटीआई कार्यकर्ता जितेंद्र घाडगे ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मुंबई पुलिस से कुछ जानकारी मांगी थी। उन्होंने कहा कि कानून ऐसे अपराधियों के लिए निवारक साबित नहीं हुआ है। घाडगे ने बताया, “अब एक प्रवृत्ति बन चुकी है कि लोगों से पैसा झटको और फिर गायब हो जाओ। इस तरह के आर्थिक अपराधों को रोकने के लिए अधिक कठोर नियमों को पेश करने की आवश्यकता है।”
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी घाडगे की बात को तस्दीक करते हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, बीते एक दशक के दौरान देश के भीतर आर्थिक अपराधों का संख्या में 80 फीसद का इजाफा देखने को मिला है। साल 2006 में आर्थिक अपराध की दर प्रति 100,000 लोगों पर 6.6 फीसद थी, लेकिन यह अब 2015 में बढ़कर 11.9 फीसद हो गई।
आर्थिक अपराध विंग (ईओडब्ल्यू) की मुश्किल:
ईओडब्ल्यू अधिकांशता उन्हीं मामलों की जांच करता है जिनकी कीमत 50 लाख से ऊपर की होती है। शहर के पुलिस ऐसे मामलों को ईओडब्ल्यू को ट्रांसफर कर देती है ताकि इनकी तेज जांच हो सके। हालांकि ईओडब्ल्यू के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक विभाग इस समय कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। हर साल मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, यह विभाग के कुल प्रदर्शन पर असर डालती है।
इस विंग में 200 अधिकारियों को मंजूरी मिली है, लेकिन इनमें से 50 फीसद पद रिक्त हैं। विशेषकर, पुलिस सब-इंस्पेक्टर (पीएसआई) स्तर पर कर्मचारियों की संख्या सबसे कम है,101 में से 79 पद रिक्त हैं। ऐसे में सिर्फ कुछ अधिकारियों को ही काम का बोझ आ जाता है।