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रिलायंस से छिन सकता है दिल्ली-आगरा हाइवे 6 लेनिंग प्रोजेक्ट

काम में लापरवाही करने के मामले में रिलायंस के हाथ से दिल्ली-आगरा हाइवे के छह लेन वाला प्रोजेक्ट हाथ से निकल सकता है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 03 Aug 2016 12:45 AM (IST)Updated: Wed, 03 Aug 2016 03:24 AM (IST)
रिलायंस से छिन सकता है दिल्ली-आगरा हाइवे 6 लेनिंग प्रोजेक्ट

नई दिल्ली [संजय सिंह]। दिल्ली-आगरा हाईवे सिक्स लेनिंग प्रोजेक्ट रिलायंस के हाथ से जा सकती है। सरकार ने परियोजना में विलंब और गड़बडि़यों के चलते इसका ठेका निरस्त करने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। एनएचएआइ जल्द ही कंपनी को टर्मिनेशन नोटिस जारी कर सकता है। इस बात के संकेत सोमवार को उत्तर प्रदेश की राजमार्ग परियोजनाओं की समीक्षा बैठक में मिले। बैठक की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने परियोजना की प्रगति को लेकर गहरा असंतोष जताया। साथ ही एनएचएआइ अध्यक्ष राघव चंद्रा को निर्देश दिए कि कांट्रैक्टर को तत्काल टर्मिनेशन नोटिस भेजा जाए।

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बैठक में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए आगरा के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने मंत्री को बताया कि परियोजना का काम लगभग ठप पड़ा हुआ है। जो काम अब तक हुआ है उससे भी लोगों की परेशानी कम होने के बजाय बढ़ गई है। बरसात के चलते हाईवे पर जगह-जगह जलभराव हो गया है और फिलहाल सारी मशक्कत उसे निकालने के लिए हो रही है।

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इंडिपेंडेट इंजीनियर द्वारा 25 जून को किए गए प्रोजेक्ट के निरीक्षण से पता चला कि जगह-जगह दरारों और गढ्डों के कारण सड़क पर दुर्घटनाओं का गंभीर खतरा पैदा हो गया है। कई हिस्सों में सड़क के किनारे और बीच के क्रैश बैरियर तथा विभिन्न ओवरब्रिजों की हैंड रेलिंगों टूट गई है। कुछ जगहों पर सड़क किनारों तो कुछ जगहों पर मीडियन (डिवाइडर) पर डाला गया कचरा और गोबर मुख्य सड़क तक फैले हुए हैं। कांट्रैक्टर की रुचि न तो निर्माण में दिखाई देती है और न रखरखाव में। नतीजा यह है कि हाईवे के इस हिस्से पर 338 से अधिक दुर्घटनाओं में 41 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि 140 लोगों को गंभीर व 459 लोगों को साधारण चोटे आई हैं। और तो और 817 निरीह जानवर भी वाहनों से टकरा कर दम तोड़ चुके हैं।

एनएच-2 की इस परियोजना में दिल्ली से आगरा के बीच 79.5 किमी सड़क को चार लेन से छह लेन में चौड़ा किया जाना है। कायदे से इसे मार्च, 2015 में पूरा हो जाना था। लेकिन विलंब के कारण 1928 करोड़ रुपये की मूल लागत वाली परियोजना दोगुनी महंगी हो चुकी है। जबकि कन्सेशनेयर ने सरकार से 180 करोड़ रुपये का अनुदान भी ले रखा है।

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परियोजना का ठेका रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की कंपनी दिल्ली आगरा टोल रोड प्रा. लि. को दिया गया था। जो रिलायंस यूटिलिटी इंजीनियर्स प्रा. लि. के जरिए इसे क्रियान्वित कर रही है। इसकी निगरानी का जिम्मा यूआरएस स्कॉट विल्सन इंडिया तथा रोडिक कन्सल्टेंट्स के संयुक्त उद्यम के पास है।

मई, 2010 में संप्रग सरकार द्वारा अवार्ड यह प्रोजेक्ट शुरू से ही विवादों में फंस गया था। एक तो सड़क चौड़ी होने से पहले टोल वसूली को लेकर, जबकि दूसरे संग्रहीत रकम को दूसरे प्रोजेक्ट में डाइवर्ट करने को लेकर। आखिरकार मामला सुप्रीमकोर्ट तक पहुंचा था, जिसने कंपनी को पूरी रकम वापस प्रोजेक्ट के खाते में जमा करने के आदेश दे दिए। लेकिन इससे परियोजना और सुस्त हो गई। इसे लेकर पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआइएल भी दाखिल की गई थी।

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