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दो दशकों में रियल एस्टेट बाजार लेगा बड़ी छलांग

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन ने कहा कि देश की जीडीपी में रियल एस्टेट सेक्टर का सात फीसद योगदान है और 2040 तक यह बढ़कर दोगुना हो सकता है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 01:26 PM (IST)Updated: Sat, 23 Feb 2019 02:00 PM (IST)
दो दशकों में रियल एस्टेट बाजार लेगा बड़ी छलांग
दो दशकों में रियल एस्टेट बाजार लेगा बड़ी छलांग

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारतीय रियल एस्टेट बाजार का अगले दो दशक में पांच गुने से अधिक विस्तार हो सकता है और यह वर्तमान करीब 8,500 अरब रुपये (120 अरब डॉलर) के मुकाबले 2040 तक करीब 46,200 अरब रुपये (650 अरब डॉलर) पर पहुंच सकता है। नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने शुक्रवार को यह भी कहा कि इस दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इस सेक्टर की हिस्सेदारी वर्तमान सात फीसद से बढ़कर दो गुनी हो जाएगी।

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उन्होंने इंडिया सोदबीज इंटरनेशनल रियल्टी द्वारा आयोजित ग्लोबल लक्जरी रियल्टी कॉनक्लेव में कहा कि सरकार रियल एस्टेट सेक्टर के लिए ही नहीं, बल्कि इसके सभी पक्षों के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार इस बात को लेकर काफी सजग है कि इस सेक्टर में क्या चल रहा है और वह इसमें क्या योगदान कर सकती है। अंतरिम बजट से पता चलता है कि इस सेक्टर के विकास के लिए सरकार कदम उठाएगी, ताकि इस सेक्टर का अर्थव्यवस्था में और अधिक योगदान हो।

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन ने कहा कि देश की जीडीपी में रियल एस्टेट सेक्टर का सात फीसद योगदान है और 2040 तक यह बढ़कर दोगुना हो सकता है। रियल एस्टेट बाजार का वर्तमान आकार 120 अरब डॉलर का है और 2040 तक यह बढ़कर 650 अरब डॉलर का हो जाएगा। अभी इस उद्योग में 5.5 करोड़ लोगों को नौकरी मिली हुई है और यह संख्या बढ़कर 6.6 करोड़ पर पहुंच सकती है।

अलग कर्ज प्रबंधन कार्यालय स्थापित करने का आ गया है वक्त: नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय रिजर्व (आरबीआइ) के दायरे से बाहर एक अलग कर्ज प्रबंधन कार्यालय स्थापित करने का समय आ गया है। लोक कर्ज प्रबंधन एजेंसी (पीडीएमए) का प्रस्ताव वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी 2015 के बजट में रखा था। हालांकि उसे अभी तक कार्यान्वित नहीं किया गया है।

नीति आयोग के एक कार्यक्रम में कुमार ने कहा कि इस कार्यालय का अलग होना जरूरी है। इससे लोक कर्ज प्रबंधन पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा। इससे सरकार को अपने कर्ज की लागत घटाने में मदद मिलेगी। अभी सरकार के कर्ज का प्रबंधन आरबीआइ करता है। उन्होंने कहा कि सरकार को यह सोचना है कि आरबीआइ के विभिन्न कार्यो को कैसे अलग किया जा सकता है। आरबीआइ को महंगाई लक्षित करने की जिम्मेदारी देना एक साहसिक फैसला था। लेकिन विकास, रोजगार, कर्ज और अन्य कानूनी मसलों को कौन देखेगा। इस पर विचार होना चाहिए।


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