एनबीएफसी को नहीं होने देंगे पूंजी की दिक्कत : RBI
इसके साथ ही बैंक यह भी कोशिश करेगा कि गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (एनबीएफसी) की विकास दर पर आंच नहीं आए।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि वह एनबीएफसी सेक्टर में तरलता की चिंता दूर करेगा। इसके साथ ही बैंक यह भी कोशिश करेगा कि गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (एनबीएफसी) की विकास दर पर आंच नहीं आए।
बैंकिंग क्षेत्र के नियामक का यह बयान ऐसे वक्त में आया है, जब बाजार इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आइएलएंडएफएस) ग्रुप की वित्तीय चिंताओं और सेक्टर पर उनके नकारात्मक असर से उबरा नहीं है। आइएलएंडएफएस ग्रुप और उसकी सहयोगी कंपनियों द्वारा कर्ज पर भुगतान में डिफॉल्ट का सिलसिला इस वर्ष अगस्त के आखिरी सप्ताह में शुरू हुआ था। उसके बाद से पूरे एनबीएफसी सेक्टर पर तरलता का संकट है, क्योंकि कर्जदाता इस सेक्टर को कर्ज देने से कतरा रहे हैं। आरबीआइ ने ‘ट्रेंड्स एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन 2017-18’ शीर्षक से शुक्रवार को जारी सालाना रिपोर्ट में कहा कि कर्ज पर डिफॉल्ट और संपत्ति की गुणवत्ता पर क्षणिक सवालों के चलते एनबीएफसी सेक्टर पर चालू वित्त वर्ष में दबाव दिखा है। लेकिन सेक्टर की बुनियादी मजबूती और नियामकीय स्तर पर हमारी पैनी नजर से हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सेक्टर तरलता के मोर्चे पर तनाव-मुक्त हो। रिपोर्ट का कहना था कि एनबीएफसी सेक्टर का आकार देश के वाणिज्यिक बैंकों की कुल बैलेंस शीट का लगभग 15 फीसद है। यह सेक्टर घटते बैंक क्रेडिट के मौजूदा माहौल में कर्ज मुहैया कराने का दमदार विकल्प पेश करता है।
आरबीआइ ने रिपोर्ट में यह भी कहा कि एनबीएफसी सेक्टर ने पिछले वित्त वर्ष (2017-18) के दौरान लाभ अर्जन, संपत्ति की गुणवत्ता और पूंजी पर्याप्तता जैसे मोर्चे पर भी बेहतर प्रदर्शन किया है। हालांकि बैंकिंग नियामक ने आंकड़ा पेश नहीं किया, लेकिन कहा कि पिछले वित्त वर्ष और चालू वित्त वर्ष में अब तक सेक्टर की कंसोलिडेटेड बैलेंस शीट मजबूत हुई है। पिछले वित्त वर्ष में सेक्टर का रिटेल लोन 46.2 फीसद बढ़ा, जो उससे पिछले वित्त वर्ष (2016-17) में महज 21.6 फीसद की दर से बढ़ा था।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि नया दिवालिया कानून इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आइबीसी) कर्ज वसूली के प्रभावी तंत्र के रूप में उभर रहा है। ‘रिपोर्ट ऑन ट्रेंड एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया 2017-18’ के अनुसार वर्ष 2017-18 में आइबीसी के तहत फंसे कर्ज की वसूली के लिए कुल 701 मामले भेजे गए जो 9,929 अरब रुपये के थे। इन मामलों में आइबीसी के जरिये 4925 अरब रुपये वसूल किए गए। इस तरह आइबीसी के तहत जितनी राशि वसूलने की कोशिश की गई उसमें से लगभग 50 फीसद राशि वसूल कर ली गई।
सरकार ने बैंकों के फंसे कर्ज की वसूली के लिए पहले लोक अदालतें बनाईं, फिर ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) बनाए और उसके बाद सरफेसी कानून को भी आजमाया। लेकिन नतीजा कुछ खास नहीं रहा। लेकिन आइबीसी के तहत दिवालियेपन के मामलों को 180 दिनों के भीतर सुलझाया जाता है।
इस अवधि को अधिकतम 90 दिन के लिए बढ़ाया जा सकता है। इस तरह एक निर्धारित अवधि में आइबीसी के तहत फंसे कर्ज के मामले सुलझा लिए जाते हैं।
गौरतलब है कि बैंकों के फंसे कर्ज को वसूलने के चार प्रमुख तंत्र हैं। इनमें लोक अदालतें, डेट रिकवरी टिब्यूनल (डीआरटी), सरफेसी कानून और आइबीसी शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लोक अदालतों के माध्यम से महज चार फीसद, डीआरटी के माध्यम से 5.4 और सरफेसी कानून के माध्यम से 25 फीसद एनपीए राशि की ही वसूली हो पाई।
कुल मिलाकर वर्ष 2017-18 में इन चारों तंत्रों के माध्यम से फंसे कर्ज की वसूली के कुल 34,39,477 मामले पेश किये गए। ये सभी मामले 12,786 अरब रुपये के थे जिसमें से 5,280 अरब रुपये वसूल हुए।