महंगाई पर गरीबों की आवाज सुने आरबीआइ: डी सुब्बाराव
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को गरीबों की आवाज सुननी होगी, जिन पर महंगाई का सबसे ज्यादा असर पड़ता है।
हैदराबाद। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को गरीबों की आवाज सुननी होगी, जिन पर महंगाई का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। जबकि नीतिगत दरों को तय करने में उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता है। अलबत्ता, इसमें बड़े कॉरपोरेट घरानों के साथ बैठक कर उनकी राय ली जाती है। आरबीआइ के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने ये बातें कही हैं। साथ में वह यह भी बोले कि निवेश को रफ्तार देने के लिए ब्याज दरों में कटौती जरूरी समाधान नहीं है।
सुब्बाराव 2008 से 2013 तक केंद्रीय बैंक के गवर्नर रहे। यहां सेंटर फॉर ऑर्गनाइजेशन डेवलपमेंट में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति की हर समीक्षा से पहले रिजर्व बैंक विभिन्न हितधारकों जैसे कॉरपोरेट लीडर्स, बैंक, एनबीएफसी और अर्थशास्ति्रयों के साथ राय मशविरा करता है। ऐसी ही एक बैठक को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उसमें 25 बड़े कॉरपोरेट घराने मौजूद थे। उन्होंने उद्योग घरानों से कहा कि वह ब्याज दरों को घटाएंगे। जब सुब्बाराव ने पूछा कि कटौती के बाद उनमें से कितने निवेश से जुड़े निर्णय लेंगे तो एक हाथ ऊपर नहीं उठा। पूर्व आरबीआइ गवर्नर ने कहा कि वह किसी को गलत नहीं ठहरा रहे हैं। वह सिर्फ यह बताना चाहते हैं कि निवेश को रफ्तार देने के लिए ब्याज दरों में कटौती आवश्यक समाधान नहीं है। इसमें और भी कई बाधाएं हैं।
सुब्बाराव के मुताबिक यदि आरबीआइ इन दिग्गजों को पक्ष रखने के लिए न भी बुलाए तो उनके पास अपनी बात कहने को मंच उपलब्ध हैं। इसके उलट गरीबों के पास ऐसा कोई जरिया नहीं है। जबकि महंगाई का सबसे ज्यादा असर गरीबों पर पड़ता है। देश के 50 गरीबों को भी बुलाकर नहीं पूछा जाता कि आखिर वे क्या चाहते हैं। वे जानते ही नहीं कि आरबीआइ क्या है। यदि जानते भी हैं तो उन्हें नहीं पता होता कि ब्याज दरों और बाजार में कीमतों के बीच क्या संबंध है।