RBI की MPC बैठक का दूसरा दिन, ब्याज दरों में इजाफा संभव
आरबीआइ के गवर्नर डा. उर्जित पटले की अध्यक्षता वाली समिति तय करेगी कि आने वाले दिनों में देश में होम लोन, ऑटो लोन समेत अन्य बैंकिंग कर्ज लेना कितना महंगा होता है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। देश में महंगाई बढ़ने के संकेतों के बीच सोमवार से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक शुरू हो गई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर डा. उर्जित पटले की अध्यक्षता वाली यह समिति तय करेगी कि आने वाले दिनों में देश में होम लोन, ऑटो लोन समेत अन्य बैंकिंग कर्ज लेना कितना महंगा होता है। जानकारों की मानें तो कर्ज के महंगे होने की जमीन तैयार हो चुकी है और अब यह सिर्फ तय होना है कि यह फैसला कब होता है। कुछ एजेंसियों ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2018-19 में ब्याज दरें 0.50 फीसद तक बढ़ सकती हैं।
छह सदस्यीय एमपीसी के अध्यक्ष आरबीआइ गवर्नर होते हैं जबकि आरबीआइ के दो डिप्टी गवर्नर इसमें सदस्य होते हैं। साथ ही सरकार की तरफ से नामित तीन विशेषज्ञ भी इसमें सदस्य होते हैं। ब्याज दरों को निर्धारित करने वाले रेपो दरों का रुख किस तरफ रखा जाए, यह समिति तय करती है। माना जा रहा है कि जनवरी, 2014 से ब्याज दरों को स्थिर रखने या कम करने को लेकर आरबीआइ की तरफ से जो कोशिशें चल रही थी, अब उसके विपरीत दिशा में कदम उठाए जा सकते है। ऐसा इसलिए कि थोक व खुदरा महंगाई की दरों में वृद्धि हो रही है।
कच्चे तेल की कीमतों में तेजी को देखते हुए आने वाले दिनों में महंगाई और तेज होने की आशंका है। यही वजह है कि एमपीसी की तरफ से रेपो रेट की मौजूदा दर छह फीसद में अब बढ़ोतरी के कयास लगाए जा रहे हैं। इस दर के आधार पर ही बैंक अल्पकालिक ब्याज दरे तय करते हैं। अभी तक कर्ज की दरों को निचले स्तर पर रखने की मांग करने वाला वित्त मंत्रलय भी मानने लगा है कि कर्ज के महंगा होने से रोकना अब मुश्किल होगा। वित्त मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ‘कच्चे तेल की कीमतों में भारी अनिश्चितता को देखते हुए महंगाई के मोर्चे पर उभरी चिंता सही है। वैसे भी ब्याज दरों को आप ज्यादा समय तक निचले स्तर पर नहीं रख सकते। पिछले एक हफ्तों में पीएनबी, एसबीआइ समेत कई बैंकों ने हर तरह के कर्ज को महंगा करने का फैसला किया है जो भविष्य की तरफ इशारा कर रहे हैं।’
कुछ ऐसी ही बातें एचएसबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कही हैं। एचएसबीसी के मुताबिक भारत में महंगाई की स्थिति बहुत हद तक कच्चे तेल की कीमतों से तय होती हैं। कच्चा तेल महंगा होगा तो चालू खाते में घाटा (देश में विदेशी मुद्रा की आय व व्यय का अंतर) की स्थिति बिगड़ेगी तो महंगाई बढ़ सकती है। जानकार मान रहे हैं कि वर्ष 2018-19 में कच्चा तेल 80 डॉलर प्रति बैरल के करीब रह सकता है।
फेडरल रिजर्व बैंक धीमी करे रफ्तार: उजिर्त पटेल
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व बैंक को अपने बैलेंस शीट को संकुचित करने की रफ्तार धीमी करनी चाहिए ताकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में डॉलर की कमी का असर कम किया जा सके। उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स में एक लेख में कहा है कि फेड रिजर्व को मौजूदा आर्थिक हालातों को ध्यान रखकर कदम उठाने चाहिए। पटेल के अनुसार पिछले साल अक्टूबर तक फेडरल रिजर्व के कदमों का असर अन्य देशों में ज्यादा नहीं दिख रहा था। लेकिन जब से उसने अपनी बैलेंस शीट को संकुचित करना शुरू किया है, इसका असर दिखने लगा है क्योंकि उसने स्थितियों के साथ तालमेल नहीं बनाया। अमेरिकी सरकार के अप्रत्याशित रूप से बढ़े कर्जो पर भी गौर नहीं किया जबकि यह बहुत जरूरी है।