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कर्ज को सस्ता करने से आरबीआइ का इन्कार

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कर्ज की दरों में कमी होने की उम्मीद लगाए आम आदमी, कारोबारी जगत और सरकार की उम्मीदों को फिर झटका लगा है। रिजर्व बैंक [आरबीआइ] ने ब्याज दरों में कटौती करने से मना कर दिया है।

By Edited By: Published: Mon, 17 Jun 2013 08:16 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
कर्ज को सस्ता करने से  आरबीआइ का इन्कार

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कर्ज की दरों में कमी होने की उम्मीद लगाए आम आदमी, कारोबारी जगत और सरकार की उम्मीदों को फिर झटका लगा है। रिजर्व बैंक [आरबीआइ] ने ब्याज दरों में कटौती करने से मना कर दिया है।

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मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा करते हुए रिजर्व बैंक ने सोमवार को रेपो रेट, बैंक दर या नकद आरक्षित अनुपात [सीआरआर] को मौजूदा स्तर पर ही रखा है। वजह रुपये की कीमत में लगातार अस्थिरता और महंगाई में संभावित वृद्धि को बताया गया है। आरबीआइ गवर्नर डी सुब्बाराव ने आशंका जताई है कि रुपये की कीमत में यूं ही कमी होती रही तो महंगाई को थामने की रणनीति पर पानी फिर सकता है।

देश की आर्थिक विकास दर के पांच फीसद से नीचे पहुंच जाने और हाल के महीनों में महंगाई दर के लगातार पांच फीसद से नीचे बने रहने से उम्मीद थी कि केंद्रीय बैंक अपनी दरों में कटौती करेगा। उद्योग जगत ने रेपो दर में 0.50 फीसद की कटौती की उम्मीद जताई थी। केंद्र सरकार की तरफ से खुल कर यह कहा गया था कि विकास दर में सुस्ती को देखते हुए रिजर्व बैंक आवश्यक कदम उठाएगा।

मगर आरबीआइ गवर्नर ने एक बार फिर महंगाई रोकने को ही अपनी प्राथमिकता बताया है। उनका मानना है कि अभी ब्याज दरों में नरमी लाने से आने वाले दिनों में महंगाई की दर फिर बढ़ सकती है। यही वजह है कि केंद्रीय बैंक ने सीआरआर को 4, रेपो रेट को 7.25 और बैंक दर को 8.25 फीसद पर ही बरकरार रखा है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन ने कहा कि आरबीआइ ने यथास्थिति बनाए रखने का फैसला बाहरी कारकों के प्रभाव में लिया है। इनमें बढ़ता चालू खाते का घाटा और रुपये की कमजोरी प्रमुख हैं।

उद्योग जगत में निराशा

इसके साथ ही लगभग यह भी तय है कि अगले दो महीने तक ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं होने वाला है। इससे इंडिया इंक में भारी निराशा है। उद्योग चैंबर एसोचैम ने कहा है कि ऐसा लगता है कि मौद्रिक नीति की समीक्षा करते समय गवर्नर ने घरेलू से ज्यादा वैश्विक हालात को ध्यान में रखा है।

सिर्फ रुपये की कीमत और महंगाई बढ़ने की आशंका के आधार पर ब्याज दरें नहीं बढ़ाई गई हैं, जबकि बेहतर मानसून के सकारात्मक असर को नजरअंदाज कर दिया गया है। सीआइआइ का कहना है कि ब्याज दरों को स्थिर रखकर आरबीआइ ने बहुत घिसा- पिटा रास्ता अपनाया है। इसका खामियाजा आगे भुगतना पड़ सकता है। फिक्की अध्यक्ष नैना लाल किदवई का कहना है कि पिछले वर्ष ब्याज दरों में 0.75 फीसद की कटौती के बावजूद निवेश में कोई इजाफा नहीं हुआ है। इसके बावजूद केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को नहीं घटा रहा है।

क्यों नहीं घटाई ब्याज दरें

1. रुपये में गिरावट बेहद चिंताजनक

2. महंगाई फिर भड़कने के आसार

3. चालू खाते में घाटा काफी ज्यादा

4. ग्लोबल कमोडिटी बाजार में फिर तेजी

5. कई विदेशी केंद्रीय बैंकों ने भी नहीं घटाईं ब्याज दरें

जिन उद्योगों पर पड़ेगा असर

1. ऑटोमोबाइल उद्योग : पिछले एक दशक की सबसे बड़ी मंदी से जूझ रहे कार व बाइक निर्माताओं को सस्ते कर्ज की है दरकार

2. इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग : टीवी, फ्रिज सहित तमाम घरेलू उपकरण बनाने वाले घरेलू उद्योग में भारी मंदी। रुपये में गिरावट से दोहरी मार। ब्याज दरों में कटौती से मिलती राहत।

3. विदेश से कर्ज लेने वाली कंपनियां : ये कंपनियां भी झेल रही हैं रुपये की मार। देश में कर्ज अभी भी सस्ता नहीं। आगे निवेश के लिए मुश्किल।

4. निवेश की योजना बना रहीं कंपनियां : कई कंपनियां कर्ज सस्ता होने की बाट जोह रही हैं, ताकि अपनी निवेश योजना को आगे बढ़ाएं। इनके लिए भारी निराशा।


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