आरबीआई सरकार का ही हिस्सा, संस्थान की छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया: गडकरी
मंच का कहना है कि रिजर्व बैंक को ऐसे दिशानिर्देश बनाने चाहिए जिससे बैंकों का स्वामित्व भारतीयों के हाथ में रहे।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर के तौर पर शक्तिकांत दास के पद संभालने के अगले ही दिन स्वदेशी जागरण मंच ने कहा है कि केंद्रीय बैंक को निजी बैंकों में स्वामित्व संबंधी दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार करना चाहिए। मंच का कहना है कि रिजर्व बैंक को ऐसे दिशानिर्देश बनाने चाहिए जिससे बैंकों का स्वामित्व भारतीयों के हाथ में रहे।
भारत में बैंकों का भविष्य विषय पर आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्वनी महाजन ने कहा कि कोई नहीं चाहता कि भारत में विकसित हुए बैंकों का स्वामित्व विदेशी हाथों में चला जाएं। इसलिए आवश्यक है कि निजी बैंकों में प्रमोटर की अधिकतम इक्विटी हिस्सेदारी के नियम की भी समीक्षा हो। महाजन का कहना है कि साल 2001 में नए निजी बैंकों को अनुमति देने के पीछे सरकार की मंशा इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना था। उन्होंने कहा कि ऐसा अनिवार्य रूप से प्रमोटर इक्विटी घटाने के मौजूदा दिशानिर्देश प्राकृतिक प्रतीत नहीं होते।
स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि सरकारी बैंकों में भी विदेशी फंड तेजी से अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। जबकि कई निजी बैंकों में विदेशी इक्विटी हिस्सेदारी बैंक प्रबंधन के नियंत्रण के स्तर तक पहुंच गई है। इस संबंध में किसी तरह के बहुपक्षीय समझौते के अभाव में मंच मानता है कि भारत में बैंकों का स्वामित्व भारतीयों के हाथों में ही रहना चाहिए।
कार्यशाला में बैंकों की मौजूदा स्थिति को लेकर भी चर्चा हुई। कई वक्ताओं ने माना कि रिजर्व बैंक की तरफ से लागू प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) बैंकों की हालत और खराब कर रहा है। फिलहाल रिजर्व बैंक ने पीसीए के तहत 11 सरकारी बैंकों को डाला हुआ है। इन नियमों के मुताबिक ये बैंक खास दिशानिर्देशों के अंतर्गत ही कर्ज वितरण कर सकते हैं।
मंच का मानना है कि इन बैंकों के पास पर्याप्त मात्र में नकदी उपलब्ध है। लेकिन छोटे और मझोले उद्योगों को कर्ज नहीं दे सकते। जबकि इस क्षेत्र को आज की तारीख में फंड की बेहद जरूरत है।